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बाल वैज्ञानिकों ने दिखाया पर्यावरण बचाने की राह

नालंदा। बिहारशरीफ के आरपीएस मकनपुर स्कूल में आयोजित 23वीं बाल विज्ञान कांग्रेस कार्यक्रम क

By Edited By: Published: Mon, 21 Sep 2015 02:56 AM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2015 02:56 AM (IST)
बाल वैज्ञानिकों ने दिखाया पर्यावरण बचाने की राह

नालंदा। बिहारशरीफ के आरपीएस मकनपुर स्कूल में आयोजित 23वीं बाल विज्ञान कांग्रेस कार्यक्रम के दूसरे दिन विभिन्न जिलों से आए प्रतिभागियों ने अपने-अपने मॉडल के बारे में निर्णायकों को जानकारी दी। निर्णायक मंडली ने स्पॉट पर छात्रों को नंबर दिया तथा रिजल्ट की जानकारी सोमवार को दी जायेगी। फेस टू फेस कार्यक्रम में मौजूद विशेषज्ञों ने छात्रों के सवालों का जबाव देकर उनका मार्गदर्शन किया। प्रतियोगिता में 36 जिलों के छात्र-छात्राएं भाग ले रही हैं। बाल विज्ञान कांग्रेस में शामिल वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कारों से पर्यावरण बचाने पर विशेष जोर दिया।

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प्रदूषित जल आबादी से दूर ले जाने की जरूरत

गोपालगंज से आयी शालू कुमारी ने बताया कि ईंट भट्ठों के चिमनियों से निकले धुएं से वायू प्रदूषित होती है। उससे कैसे बचाव किया जाए। प्रदर्शनी के माध्यम से वायू प्रदूषण मुक्त चिमनी भट्ठा लगाने की जानकारी दी गयी है। साथ ही कल-कारखाने निकले पानी से नदी, नाले के पानी प्रदूषित हो जाते हैं। इस पानी को शहरी आबादी से दूर ले जाकर गिराने की जरूरत है।

खाद से खेती को हो रहा नुकसान

मधुबनी से आयी छात्रा सुषमा झा ने खेती में खाद का उपयोग कम करने की सलाह दी और कहा कि ज्यादा खाद से पौधों को कैसे नुकसान पहुंचता है, उससे बचाव कैसे किया जायेगा। मॉ़डल के माध्यम से पूरी जानकारी दी गई। यह उपाय किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा। प्रदर्शनी को देख निर्णायक मंडली काफी प्रभावित हुआ।

पौधों को बचाव को बताए तरीके

मधुबनी से आयीं गरिमा आनंद ने ग्लोबल वार्मिंग से पौधों को कैसे नुकसान पहुंचता है इसके बारे में प्रदर्शनी में जानकारी दी गई थी। गरिमा ने बताया कि ठंड प्रदेशों में पौधे ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाते हैं। गरिमा के प्रदर्शनी में पौधे कैसे अधिक दिन तक बचा रहे और उससे लोगों को फायदा मिलता रहे, इसकी जानकारी दी गयी थी। इस नयी सोच को निर्णायक मंडली ने काफी सराहा।

कृषि वैधशाला को मिले जानकारी

बिहारशरीफ गुरुकुल विद्यापीठ के राजेश रंजन ने पशु पक्षियों के माध्यम से मौसम की जानकारी दी गयी थी। उन्होंने बताया कि मौसम की जानकारी पशु-पक्षियों को पहले हो जाती है। राजेश ने बताया कि 21वीं सदी में मनुष्य को मौसम की पूर्व जानकारी नहीं हो पाती है। अधिकतर किसानों को कृषि वैधशाला की जानकारी नहीं है। इस वैद्यशाला के माध्यम से किसान मौसम के पूर्वानुमान जानकारी हासिल कर सकते हैं।

जैविक खेती से संतुलित होगा मौसम

आरपीएस स्कूल के छात्र आनंद मोहन ने जैविक खेती से समेकित खेती के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जैविक खेती कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाला विधि है। इससे मौसम भी बैलेंस रहेगा और खेतों की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी। इसे किसान अपने स्वयं भी बना सकते हैं। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा अनुदान भी मिलता है।


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