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Bihar: मोतियों की खेती कर मधु ने बनाई पहचान, सालाना कर रहीं बारह से पंद्रह लाख तक कमाई

Pearl Farming in Bihar राजगीर की मधु मोती से सालाना 12 से 15 लाख की आमदनी कर रहीं हैं। वह मछलियों के तालाब में ही मोती उपजा रही हैं। शाकाहारी मछलियां सीप को नुकसान नहीं पहुंचाती और सीप को खाने के लिए अलग से शैवाल भी नहीं देना पड़ता है।

By rajnikant sinhaEdited By: Ashish PandeyPublished: Mon, 30 Jan 2023 09:28 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jan 2023 09:28 AM (IST)
Bihar: मोतियों की खेती कर मधु ने बनाई पहचान, सालाना कर रहीं बारह से पंद्रह लाख तक कमाई
बिहार, राजगीर की मधु पटेल मोती की खेती करने वाली जिले की एकमात्र किसान हैं। फोटो- जागरण

राकेश कुमार वीरेंद्र, हरनौत: राजगीर की मधु पटेल मोती की खेती करने वाली जिले की एकमात्र किसान हैं। इससे वह सालाना 12 से 15 लाख रुपए की आमदनी कर लेती हैं। इससे कई लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। वह मछलियों के तालाब में ही मोती उपजा रही हैं। शाकाहारी मछलियां सीप को नुकसान नहीं पहुंचाती और सीप को खाने के लिए अलग से शैवाल भी नहीं देना पड़ता है। मधु के अनुसार, शुरू में यह चुनौतीपूर्ण व्यवसाय लग रहा था। लेकिन अब सब कुछ आसान हो गया है। वह तीन साल से मोती की खेती कर रहीं हैं।

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इनके तालाब में इन दिनों चार हजार सीप हैं, जिनमें मोती का निर्माण हो रहा है। मधु दो तरह की मोतियां उपजा रहीं हैं। एक प्रकार के मोती की कीमत तीन सौ रुपए तक होती है। हाफ कटिंग प्रकार के मोतियों की कीमत 1200 से 1500 रुपए तक होती है। मधु पटेल बताती हैं कि समेकित खेती का यह पार्ट टाइम बढ़िया व्यवसाय है। घर में छोटे टैंक में भी इसका उत्पादन कर अच्छी कमाई की जा सकती है। इन्होंने मोती की खेती का प्रशिक्षण भुवनेश्वर से लिया है। मधु मूलरूप से हिलसा के गजिन बिगहा की निवासी हैं।

मोती बनने में लगते एक से पांच साल

मोती पूरी तरह से निर्मित होने में एक से पांच साल लग जाते हैं। कुछ किस्में एक से डेढ़ साल में तैयार हो जाती हैं, जबकि कुछ किस्मों को पूरी तरह से बनने में पांच साल लग जाते हैं।

मोती की खेती में हर दिन अधिक समय नहीं देना पड़ता है। शुरुआत में सीप की सर्जरी के बाद दो सप्ताह तक अधिक समय देना पड़ता है। इसके बाद मामूली देखभाल ही करनी पड़ती है। मीठे पानी जैसे गंगा की सीप में मोती तैयार करने के लिए नालंदा की जलवायु और पानी अनुकूल है। सीप की उपलब्धता मछुआरों से हो जाती है। आज के समय में मोतियों की मांग बहुत है, इसलिए बाजार की समस्या नहीं है।

कैसे होती है मोतियों की खेती

शुरुआत में सीप को कुछ दिन छोटे टैंक में रखा जाता है ताकि उसका कवच मुलायम हो जाए। उसके बाद उसे निकाल कर मुंह के पास के हिस्से को टूल्स के माध्यम से खोला जाता है। उसके बाद सर्जरी कर उसमें मोती के डिजाईन की गोली (न्युकली) डाली जाती है। इस क्रिया के बाद सीप को एंटीबायोटिक मिश्रित पानी के टैंक में एक सप्ताह तक रखा जाता है ताकि उसका जख्म ठीक हो जाए। इसके बाद नायलान की थैली में एक या एक से अधिक सीप को रखकर तालाब में आर-पार तने तार से लटका कर पानी में डूबो देते हैं। साल-सवा साल में सीपों को निकाल कर उसका कवच उतार कर मोती निकाल लेते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में डेंटिस्ट टूल्स का ही इस्तेमाल किया जाता है।

इस तरह बनती है डिजाईन

मधु पटेल बताती हैं कि मोती निकालने में सीप की मौत हो जाती है। इसके बाद उसके कवच को, जो कैल्सियम कार्बोनेट से बना होता है, अच्छे से साफ कर महीन पीस लेते हैं। फिर उसे गीला कर मोती के डिजाईन के फ्रेम में ढाल लेते हैं। इसी डिजाईन को सीप में सर्जरी कर डाला जाता है।

"एक बीघे के तालाब में 25 हजार सीप डाले जा सकते हैं। मछली के साथ मोती की खेती इसलिए फायदेमंद है क्योंकि इसमें अलग से सीप को भोजन नहीं देना पड़ता है। मोती उपजाना बहुत बढ़िया व्यवसाय है। आमदनी भी खूब होती है। तालाब के कुछ हिस्से में सीप का तार नहीं ताना जाता है ताकि मछली पकड़ने के लिए जाल डाला जा सके।"

-मधु पटेल, किसान


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