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सड़क हादसे में हर माह 20 से ज्यादा लोगों की जा रही जान, फिर भी मौन है प्रशासन

बिहारशरीफ। जिले में बढ़ते सड़क हादसे लोगों की जान के दुश्मन बन गए हैं। अभी साल 2018 पूरा होने में दो

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 10:47 PM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 10:47 PM (IST)
सड़क हादसे में हर माह 20 से ज्यादा लोगों की जा रही जान, फिर भी मौन है प्रशासन
सड़क हादसे में हर माह 20 से ज्यादा लोगों की जा रही जान, फिर भी मौन है प्रशासन

बिहारशरीफ। जिले में बढ़ते सड़क हादसे लोगों की जान के दुश्मन बन गए हैं। अभी साल 2018 पूरा होने में दो माह शेष हैं लेकिन हादसों में बाइक चालकों की मौत के आंकड़े डेढ़ सौ की संख्या पार कर चुके हैं जो वाहन चालकों के साथ पुलिस महकमे के लिए भी ¨चता का कारण बने हुए हैं। अस्पताल कर्मियों की मानें तो अप्रैल से जून तक दुर्घटना में मरने वालों की संख्या सबसे अधिक होती है। इस बार सितंबर भी रिकॉर्ड ब्रेक दुर्घटना हुई है। 1 सितंबर से अब तक 20 लोगों की जान जा चुकी है। रविवार को बिहारशरीफ-राजगीर रोड में कोसुक पुल के पास स्कूटी और ट्रैक्टर की टक्कर में दो सगी बहनों की मौत हो गई थी। वहीं, अन्य दो गंभीर जख्मी हो गए थे। इस हादसे में ट्रैक्टर की बेलगाम रफ्तार तो कारण थी ही, स्कूटी चालक का हेलमेट नहीं पहनना भी दूसरा कारण था। ठंडे बस्ते में रोड सेफ्टी के नियम, थानों में संसाधनों का अभाव: रोड सेफ्टी के नियम, सड़क की तकनीकी खामियों में सुधार पर हादसों के बाद कुछ दिन तक अफसर-जनता गंभीर नजर आते हैं लेकिन फिर यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। जिले में हाईवे की स्थिति ज्यादा डरावनी है। नालंदा के दीपनगर, चंडी, राजगीर, सिलाव, वेना ऐसे थाना क्षेत्र हैं जहां अक्सर गंभीर सड़क हादसे होते हैं। जिले के इन थाना क्षेत्रों में दस माह में हादसों में 150 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई है। फिर भी हाईवे के थानों को हादसों पर रोक के लिए जरूरी संसाधन व मैन पावर मुहैया नहीं कराए गए हैं। शहर में यातायात नियंत्रित करने के लिए तैनात की गई पुलिस भी लहरिया कट वाले बाइकरों को देख मुंह फेर लेती हैं। अधिकांश चौक-चौराहे पर बिना बाइक वाले होमगार्ड ही तैनात हैं। इस साल अप्रैल माह में 23 से 30 तारीख तक सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया गया। यह 23वां आयोजन था। इस दौरान कुछ रैलियां निकालकर रस्म अदायगी कर ली गई।

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चिन्हित हैं हादसों के ब्लैक स्पॉट, फिर भी सुधार नहीं : सड़क हादसों के ब्लैक स्पॉट चिन्हित हैं फिर भी उन जगहों पर तकनीकी सुधार नहीं किया जा सका है। जिले में दो बार परिवहन महकमे के अधिकारियों ने सर्वे किया। इस दौरान सड़क की घुमाव, सर्विस रोड, डिवाइडर, संकेतक के अलावा अन्य तकनीकी सुधार के निर्देश जारी किए लेकिन परिवहन विभाग व हाईवे की अथॉरिटी के बीच समन्वय न होने से ये अनुशंसा और निर्देश फाइलों तक ही सिमटे हैं। गुरू-शिष्य परंपरा वाले ड्राइवर व संकेतकों की कमी हादसों की वजह: सड़क पर ड्राइ¨वग के नियमों की अधूरी जानकारी, उनका उल्लंघन, सड़कों की तकनीकी त्रुटि, ज्वाइंट पर रोशनी व संकेतकों की कमी और सर्विस रोड बनाए बिना सड़कों को सीधे हाईवे पर जोड़ना सड़क हादसों की कुछ प्रमुख वजहें हैं। यहां अधिकांश बड़े व छोटे वाहनों के ड्राइवर गुरू-शिष्य परम्परा के हैं। जितना गुरू ने सिखाया बस वहीं जानकर ये नौसिखिये सड़क पर निकल जाते हैं। डीटीओ शैलेंद्र नाथ की माने तो हाईवे की अलग-अलग अथॉरिटी है जिन्हें इसका ख्याल रखना चाहिए। परिवहन व पुलिस महकमा नहीं करा पाता तय स्पीड का पालन :

सड़क पर हो रही दुर्घटनाओं के कारणों की बात करें तो हर सड़क पर तय स्पीड का पालन न होना बड़ी वजह है। एक सर्वेक्षण के अनुसार हाई वे पर ओवर स्पी¨डग वाहनों की संख्या 66 फीसद से अधिक है। परिवहन और पुलिस महकमा भी तय स्पीड का अनुपालन नहीं करा पाता और न ही किसी सड़क पर ऑटोमेटिक स्पीडो मीटर लगे हैं। जिससे वाहनों की गति जांची जा सके। मरने वालों में युवा सबसे ज्यादा : सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में सबसे ज्यादा युवा ही हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों में 15 वर्ष से 35 वर्ष के युवा सबसे ज्यादा होते हैं। सड़कों पर स्टंट करना व ओवरटेक करने के चक्कर में हमेशा हादसे होते ही रहते हैं। इयर फोन भी कई बार हादसे की वजह बनी हैं। बिना कठिन ड्राइ¨वग टेस्ट के नहीं दिए जाएं लाइसेंस : महलपर निवासी सारिब की मानें तो वाहन चलाने का लाइसेंस यहां बहुत आसानी से मिल जाता है जबकि विदेशों में लाइसेंस लेने की बड़ी कठिन प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि प्रक्रिया ऐसी हो कि सही लोगों के हाथ में ही गाड़ी की स्टेय¨रग हो जिससे दूसरे सुरक्षित रहें। बिना दो-तीन चरण के ड्राइ¨वग टेस्ट के लाइसेंस न दिए जाएं।

ट्रैक्टर की चपेट में आते है सबसे ज्यादा लोग : सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौत सबसे ज्यादा ट्रैक्टर की चपेट में आने से होती है। खासकर वैसे वाहन जिसकी स्टेय¨रग नबालिग के हाथों में हो। सुबह में बालू से लदे ट्रैक्टर तेज गति में सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं। लोकल टाउन में भी इनकी स्पीड घटने का नाम नहीं लेती। इन पर पुलिस या परिवहन महकमे का कोई नियंत्रण नहीं है। इनसेट

प्रेमनबिगहा मोड़ पर पुल टेढ़ा होना आए दिन बन रहा हादसे की वजह

संवाद सूत्र, नगरनौसा : थाना क्षेत्र के राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या 30 ए पर प्रेमनविगहा मोड़ के निकट 11 अक्टूबर को अज्ञात वाहन की ठोकर से बाइक पर जा रहे आरएमपी डॉक्टर उदय कुमार की मौत हो गई। इस स्थान पर यह 24वीं या 25वीं दुर्घटना थी। वजह प्रेमनबिगहा मोड़ पर नए बन रहे पुल का एलाइनमेंट है। यह पुल टेढ़ा है जिससे अचानक दोनों ओर से आने वाले वाहन आमने-सामने हो जाते हैं। कुछ बच निकलते हैं तो कई बार टक्कर भी हो जाती है। स्थानीय लोगों की राय है कि पुल को पूर्व दिशा से पश्चिम की ओर बढ़ाया जाना चाहिए तब यह पुल काफी हद तक सीधा हो जाएगा और हादसों में कमी आएगी। जानकारों का यह भी कहना है कि इस मोड़ पर सड़क की सतह मानक के अनुरूप नहीं है जिस कारण वाहन अनियंत्रित होकर दुर्घटना की वजह बन जाते हैं। यह संबंधित विभाग के इंजीनियरों के लिए जांच का विषय है।

याद दिला दें कि सड़क हादसे में मारे गए आरएमपी डॉक्टर उदय मकरौता के वा¨शदे थे। वे महज 35 साल के थे। वे 11 अक्टूबर की रात बाइक से नगरनौसा से चंडी जा रहे थे। इसी बीच अज्ञात वाहन ने ठोकर मार दी थी। कुछ साल पहले भी स्कूल के बच्चों से भरी एक बस इस मोड़ पर अनियंत्रित होकर गड्ढे़ में पलट गई थी जिसमें दर्जन भर से ज्यादा बच्चे चोटिल हुए थे।


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