Sitamarhi Lockdown Day 6: दिल्ली से ट्रक में भरकर भागे मजदूर, बोले- घर नहीं लौटते तो भूखे मर जाते
दिल्ली से सीतामढ़ी 25 मजदूर अपने परिवार के संग गांव लौट आए। मजदूरों ने कहा-हम जाते भी तो कहां रहते कहां काम-धंधा सब बंद हो चुका था। बोले-रोटी नहीं मिली घर नहीं लौटते तो मर जाते।
सीतामढ़ी, जेएनएन। दिलवालों की दिल्ली में रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाया तो 25 मजदूर अपने परिवार के संग गांव लौट आए। ठौर-ठिकाना और निवाले की आफत आने पर दिल्ली छोड़ने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं रह गया था। सीतामढ़ी के डुमरा प्रखंड के रहने वाले ये सभी मजदूर रविवार को ट्रक में भरकर गांव लौट आए। उनका दर्द सुनकर कलेजा हाथ में आ जाता है। हफ्तेभर से वहां जिंदगी की जद्दोजहद कर रहे थे। भुखमरी की नौबत के बाद उन्हें दिल्ली छोड़ना पड़ा।
डुमरा प्रखंड के रंजीतपुर कुआरी, धर्मवन्ना, मिश्रौलिया, धोधना गांव के रहने वाले ये सभी वहां फैक्ट्रियों में मजदूरी किया करते थे। कहते हैं- 'हम जाते भी तो कहां, रहते कहां, काम-धंधा बंद हो चुका था। मकान मालिक का भाड़ा, बीवी-बच्चों की रोटी का जुगाड़ भारी पड़ने लगा। रोज कमाने-खाने वाले हम लोगों की आमदनी इतनी नहीं कि लॉकडाउन में परिवार का गुजारा हो सके। यातायात के सभी साधन बंद थे। दुकानदार भी उधार देने से हाथ खड़े कर लिए। इस कारण घर लौटने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं था। दिल्ली सरकार से कोई मदद नहीं मिल पाई। वहां रहने-ठहरने और खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं हुआ।'
गांव लौटते गांव वालों ने रोक दिया रास्ता
गांव लौटने पर भी इन मजदूरों की मुसीबत कम नहीं हुई। तीन दिनों की जद्दोजहद के बाद गांव में ट्रक घुसते ही ग्रामीणों ने रास्ता रोक दिया। तुरंत कंट्रोल रूम को सूचना दी। मेडिकल टीम को बुलाया। डुमरा पीएचसी के डॉ. धनंजय कुमार मेडिकल टीम लेकर पहुंचे। हालांकि, ये मजदूर ट्रक लौटाकर डुमरा पीएचसी पहुंच गए। वहां पहुंचते ही इन सबके हाथ धुलवाए गए। थर्मल स्क्रीनिंग हुई। सभी मजदूरों के हाथ पर स्टाम्पिन्ग कर होम क्वारंटाइन के लिए छोड़ा गया। चिकित्सकों की टीम उनपर नजर रख रही है।
ट्रक मालिक ने घर लौटने के लिए दे दिया ट्रक
खुशबू देवी अपने पति अनिल दास के साथ रहती थीं। मो. इस्लाम के तीन पुत्र मो.कलाम, मो. मुजीत, मो. इदु साथ रहते थे। उसी तरह नजीर नदाफ, कासिम नदाफ, मो. चांद, मो. कलाम, मो.छोट, श्याम सुंदर, मो. निराले, बबलू कुमार, मो. जमशौर, जितेंद्र कुमार सिंह, मो. हासिम, मो. मुस्ताक, राजा कुमार, राजू कुमार, अशोक कुमार, दरोगी नदाफ, राहुल कुमार, मो. अनिश, मो. साहिद, मो. सलमान इनके साथ ही आए हैं। उनका कहना है कि वहां की फैक्ट्रियों में टेलरिंग, मजदूरी व ड्राइवरी करते थे।
जहां काम कर रहे थे, उनके मालिकों व प्रबंधन ने लॉकडाउन में अपनी-अपनी फैक्ट्रियां बंद कर हम सबको काम पर नहीं आने को कह दिया। कुछ दिनों तक किसी तरह गुजारा किया। मगर भुखमरी की नौबत आने पर घर लौटने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं सूझ रहा था। हमारी दुर्दशा पर तरस खाकर वैशाली के एक ट्रक ऑनर संजय कुमार ने अपना ट्रक (डीएल19/1526) दिया। इसी ट्रक पर सभी सवार होकर दिल्ली से चले। तीन दिनों की यात्रा में जगह-जगह रोक-टोक होती रही मगर हमारी व्यथा सुनकर पुलिस वालों ने दरियादिली दिखाई। भंडारे में खाने का इंतजाम कराया।