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पूर्वी चंपारण में जिउतिया की तैयारी में जुटीं महिलाएं, व्रत 29 सितंबर को, जान‍िए व्रत की विधि

Jitia Vrat 2021 मोतिहारी में जिउतिया पर्व की चल रही तैयारी व्रत को लेकर बाजार सजने लगे और पूजा सामग्री की बिक्री होनी प्रारंभ हो गई है। आचार्य चंदन ने कहा संतान की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए व्रत काफी लाभकारी।

By Dharmendra Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 26 Sep 2021 03:40 PM (IST)Updated: Sun, 26 Sep 2021 03:40 PM (IST)
पूर्वी चंपारण में जिउतिया की तैयारी में जुटीं महिलाएं, व्रत 29 सितंबर को, जान‍िए व्रत की विधि
मोत‍िहारी में ज‍िउत‍िया पर्व की चल रही तैयारी। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पूर्वी चंपारण (मोतिहारी), जासं। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष यानी पितृ पक्ष के अंतर्गत अष्टमी तिथि को जीवत्पुत्रिका जिउतिया व्रत मनाया जाता है। इस वर्ष 29 सितंबर बुधवार को यह व्रत मनाया जाएगा। इस दिन माताएं संतान की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। महिलाएं कुश से निर्मित जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर पूजा कर कथा सुनती हैं। व्रत की तैयारी को लेकर बाजार सजने लगे हैं। व्रत और पूजा सामग्री की बिक्री होनी प्रारंभ हो गई है। आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि जिउतिया व्रत (जितिया) व्रत इस व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से नहाय-खाय के साथ ही प्रारंभ हो जाती है और नवमी को पारण के साथ इसका समापन होता है। मंगलवार को नहाय खाय किया जाएगा। महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र की कामना के लिए पूरे दिन और रात के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। पुत्र की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला जिउतिया व्रत इसे जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया भी कहा जाता है।

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व्रत की कथा

इस व्रत का महाभारत काल से भी जुड़ाव है। कथा के अनुसार जब अश्वथामा ने पांडवों के सोते हुए सभी बेटों और अभिमन्यु के अजन्मे बेटे को मार दिया था, उस समय श्रीकृष्ण ने अर्जुन के पोते को गर्भ में ही जीवित कर दिया।

इसी वजह से अर्जुन के इस पोते का नाम जीवित्‍पुत्रिका पड़ा और मान्यता के अनुसार यही कारण है कि माताएं अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं।

जिउतिया व्रत की विधि

जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए उपवास शुरू करने से पहले सुबह ही कुछ खाया-पिया जा सकता है। सूर्योदय होने से पहले महिलाएं पानी वगैरह ग्रहण करती हैं लेकिन इसके बाद कुछ भी खाने या पीने की मनाही रहती है। खास बात ये भी है कि इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है। इसके बाद तड़के गंगा स्नान और पूजन का महत्व है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है।पारंपरिक तौर पर बिहार-यूपी आदि जगहों पर दाल-भात, झिंगनी, साग आदि खाकर व्रत का पारण किया जाता है।


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