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Positive India: बीड़ी बनाना छोड़ महिलाएं कर रहीं मशरूम की खेती, बदली गांव की तस्वीर

पश्चिम चंपारण की एक महिला के प्रयास से अन्य को मिला रोजगार। दो साल में बदल गई रामनगर के शिवपुरवा गांव की तस्वीर। 150 महिलाएं महीने चार से पांच हजार रुपये कर रहीं आमदनी।

By Murari KumarEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 02:51 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 02:51 PM (IST)
Positive India: बीड़ी बनाना छोड़ महिलाएं कर रहीं मशरूम की खेती, बदली गांव की तस्वीर
Positive India: बीड़ी बनाना छोड़ महिलाएं कर रहीं मशरूम की खेती, बदली गांव की तस्वीर

पश्चिम चंपारण(रामनगर)[गौरव वर्मा]। सिर्फ एक महिला के प्रयास से शिवपुरवा गांव की तस्वीर बदल गई है। पहले यहां घर-घर बीड़ी बनाने का काम होता था। इससे जुड़ीं महिलाएं कई तरह की बीमारियों से ग्रसित थीं। लेकिन, जागरूक महिलाएं अब मशरूम की खेती कर रही हैं। माह में चार से पांच हजार रुपये आमदनी कर रहीं। इससे इनके घरों में पैसों की किचकिच भी खत्म हो गई है। 

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 बगहा अनुमंडल के रामनगर प्रखंड के बंगाली समुदाय के बाहुल्य वाले गांव शिवपुरवा की आबादी तकरीबन एक हजार है। यहां के अधिकतर घरों में बीड़ी बनाने का काम होता था। गांव की सरस्वती दत्ता ने दो साल पहले बीड़ी बनाने के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया। इस पर महिलाओं ने बेरोजगारी का रोना रोया तो मशरूम की खेती करने को कहा। वे जीविका से जुड़ी होने के साथ खुद इसकी खेती करती थीं। उन्होंने महिलाओं को निशुल्क प्रशिक्षण दिलाने की व्यवस्था कराई। बीज भी उपलब्ध कराया। धीरे-धीरे गांव की तस्वीर बदलने लगी। अब बीड़ी बनाना छोड़ गांव की तकरीबन 150 महिलाएं मशरूम की खेती कर रहीं। इसमें जीविका का भी सहयोग मिला। 

 गांव की आरती दत्ता, शिप्रा, कानन दत्ता, सोनेका मंडल, रेखा देवी, अनिता, विशाखा, रेणुका मंडल और शांति देवी का कहना है कि वे घर पर ही मशरूम की खेती करती हैं। जीविका की ओर से बीज उपलब्ध कराया जाता है। बीड़ी बनाने से प्रतिदिन महज 30 से 40 रुपये की आमदनी होती थी। तंबाकू के चलते अल्सर, गैस, सांस की समस्या और आंख में परेशानी सहित अन्य बीमारियां होती थीं। कमाया हुआ रुपया इलाज पर खर्च हो जाता था।

 अब, मशरूम की बिक्री से महीने में चार से पांच हजार रुपये कमा लेती हैं। सरस्वती दत्ता का कहना है कि महिलाओं को मशरूम की खेती के तौर-तरीके के साथ ही इसके लाभ के बारे में बताया गया। इसके खाने से होने वाले शारीरिक फायदों की जानकारी दी गई। धीरे-धीरे महिलाएं इससे जुडऩे लगीं। लॉकडाउन के कारण काम कुछ दिनों तक प्रभावित था, लेकिन अब वह समस्या नहीं है। जीविका के क्षेत्रीय समन्वयक संतोष कुमार कहते हैं कि जल्द ही एक सेंटर खोला जाएगा, जहां तैयार मशरूम की खरीद की जाएगी। इससे महिलाओं को बिक्री के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। 


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