kargil vijay divas :जान की किस को भी नहीं थी परवाह, चोटी पर कब्जा करने का था लक्ष्य
kargil vijay divas परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज पांडेय की टीम में शामिल थे सूबेदार मनबहादुर राय सुनाई आपबीती। वर्तमान में 2 बिहार बटालियन एनसीसी में हैं कार्यरत।
मुजफ्फरपुर, [प्रमोद कुमार]। गोरखा राइफल की पहली बटालियन के जांबाज सिपाही सूबेदार मनबहादुर राय कारगिल युद्ध के गवाह हैं। वे परमवीर चक्र विजेता शहीद मनोज पांडेय की टीम में शामिल थे, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर खलुबार चोटी पर कब्जा किया था। सूबेदार राय की पोस्टिंग इन दिनों 2 बिहार बटालियन एनसीसी मुजफ्फरपुर में है। दो दशक बाद भी उनको वह दिन याद है जब उनकी बटालियन ने डेढ़ दर्जन पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला खलुबार चोटी पर तिरंगा लहराया था। चोटी पर कब्जा के बाद खींची गई तस्वीर उनके पास है जिसे देख वह रोमांचित हो उठते हैं।
एक ही लक्ष्य था खलुबार चोटी पर कब्जा करना
खलुबार चोटी पर कब्जे को लेकर हुई निर्णायक लड़ाई की वीर गाथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि वहां चार चौकियों से दुश्मन लगातार गोलीबारी कर रहे थे। उन्होंने वायुसेना के एक हेलीकॉप्टर तक को नष्ट कर दिया था। चोटी पर कब्जे का कई प्रयास सफल नहीं हो पाया था। चार जुलाई 1999 को चोटी पर कब्जे का निर्णायक हमले का निर्णय लिया गया। गोरखा राइफल की पहली बटालियन को जिम्मेदारी सौंपी गई। इसका नेतृत्व कैप्टन मनोज पांडेय के पास था। सुबह नौ बजे निर्णायक हमला किया गया। जान की परवाह नहीं थी, बस एक ही लक्ष्य था खलुबार चोटी पर कब्जा करना।
डेढ़ दर्जन पाकिस्तानी सैनिकों को मारा
दुश्मनों की मशीनगनों से हो रही गोलियों की बौछार के बीच वे आगे बढ़ रहे थे। हम लोग जुबार टॉप पर कब्जा कर आगे बढ़ रहे थे, लक्ष्य करीब था इसी बीच कैप्टन मनोज पांडेय के सिर में गोली लगी और वे शहीद हो गए। लेकिन, उनकी शहादत बेकार नहीं गई। हमने चोटी पर कब्जा कर लिया। पांच घंटे से अधिक चली भीषण लड़ाई में हमने डेढ़ दर्जन पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के नींद सुलाया। इस लड़ाई में कैप्टन मनोज पांडेय के साथ दो हवलदार व एक जवान भी शहीद हुए थे। हमने दुश्मनों की तीन मिसाइल भी अपने कब्जे में ली थीं। सूबेदार मन बहादुर नेपाल के पूर्वा जिले के रहनेवाले हैं। वर्ष 1993 में वे भारतीय सेना में शामिल हुए थे। कारगिल युद्ध शुरू होते ही उनकी यूनिट की पोस्टिंग बाटालिक क्षेत्र में हुई थी। उनका कहना है कि जबतक जिंदा रहेंगे उन पांच घंटों को भूल नहीं पाएंगे।