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पश्चिम चंपारण में लॉकडाउन के कारण जब बंद हुई पाठशाला तो खुली संस्कारशाला

बैरिया प्रखंड के ओझवलिया गांव स्थित उमानाथ महादेव पंचशिव मंदिर परिसर में मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह से शुरू यह अभियान अनवरत जारी है। नौ माह से मंदिर में चल रही संस्कृत और संस्कार की पढ़ाई। चौथी से दसवीं कक्षा के छात्रों को निशुल्क शिक्षा दे रहे प्रशांत।

By Ajit kumarEdited By: Published: Sat, 02 Jan 2021 07:40 AM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 07:40 AM (IST)
पश्चिम चंपारण में लॉकडाउन के कारण जब बंद हुई पाठशाला तो खुली संस्कारशाला
तीन घंटे लगने वाली कक्षा में सिर्फ संस्कृत और संस्कार की शिक्षा दी जाती है। फोटो: जागरण

पश्चिम चंपारण, [सुनील आनंद]। कोरोना काल और लॉकडाउन में जब पाठशाला बंद हुई तो संस्कृत के शिक्षक प्रशांत कुमार ने संस्कारशाला की नींव डाली। किताब और विद्यालय से दूर बच्चों की मनोवृत्ति न बदले इसलिए उन्हें संस्कार और संस्कृति के साथ संस्कृत की शिक्षा दे रहे हैं। बैरिया प्रखंड के ओझवलिया गांव स्थित उमानाथ महादेव पंचशिव मंदिर परिसर में मार्च, 2020 के अंतिम सप्ताह से शुरू यह अभियान अनवरत जारी है। सिसवां सरेया पंचायत के मुखिया रंजीत कुमार झा के सहयोग से शुरू संस्कारशाला से गांव के चौथी कक्षा से लेकर मैट्रिक तक के तकरीबन 20 छात्र शिक्षा ले रहे हैं। प्रतिदिन तीन घंटे लगने वाली कक्षा में सिर्फ संस्कृत और संस्कार की शिक्षा दी जाती है।

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प्राइवेट स्कूल के भी बच्चे 

सिसवा सरेया पंचायत के मुखिया रंजीत कुमार झा ने बताया कि संस्कारशाला में प्राइवेट व अंग्रेजी माध्यम के स्कूल के बच्चे भी हैं। महज दो-तीन माह के प्रयास में सभी संस्कृत बोल रहे हैं। उनके मन में संस्कृत के प्रति श्रद्धा बढ़ी है। अभिभावकों का भी रूझान बढ़ा है। बच्चों को नियमित भेजते हैं। छात्र रोशन कुमार व ओम कुमार का कहना है कि जितने सरल तरीके से संस्कृत बोलना सीखा, वैसी कल्पना नहीं की थी। गांव के दिव्यांशु कुमार, अनुज, आदित्य, आराध्या, मान्यता, केशव, लव व कुश आदि भी संस्कृत बोलने लगे हैं।

नैतिक व व्यावहारिक ज्ञान भी

प्रशांत का मानना है कि संस्कृत की शिक्षा के अभाव में बच्चों में संस्कार की कमी दिख रही। इससे अनुशासन का भी ह्रास हो रहा है। बच्चे अनुशासित हों तो वे शिक्षा से खुद जुड़ सकते हैं। इसे ध्यान में रख मनोवैज्ञानिक आधार पर नैतिक व व्यावहारिक ज्ञान भी देते हैं। संस्कृत ऐसी भाषा है, जो बच्चों को संस्कार से जोड़ती है। यदि वातावरण हो तो बच्चे आसानी से संस्कृत सीख व बोल लेंगे। यही सोचकर कक्षा प्रारंभ की थी। पहले दो दिनों तक तो बच्चों की संख्या कम रही, लेकिन धीरे-धीरे और बच्चे आ गए। कोरोना से बचाव के लिए सभी बच्चे मास्क अनिवार्य रूप से लगाते हैं। संस्कृत भारती के बिहार प्रांत के शिक्षण प्रमुख देवनिरंजन दीक्षित बताते हैं कि यदि माहौल मिल जाए तो दस से पंद्रह दिन में कोई भी संस्कृत बोलना सीख सकता है। जिला शिक्षा पदाधिकारी विनोद कुमार विमल ने बताया कि यह प्रयास सराहनीय है। अन्य शिक्षकों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।  


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