...तब राष्ट्रीय भावना से लबरेज जनता ने कृपलानी को पहुंचाया था संसद
वर्ष 1957 के चुनाव में आचार्य जेबी कृपलानी सीतामढ़ी से थे उम्मीदवार। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़ा था चुनाव विरोध में थे निर्दलीय बुझावन साह।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसने परिस्थितियों से समझौता नहीं किया। जिस पार्टी में रहकर आधा से अधिक जीवन गुजार दिया, उससे भी विचारों में समझौता नहीं किया। भारी मन से त्याग दिया और आदर्श पर डटे रहे। सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र उनके प्रतिनिधित्व से खुद को गौरवान्वित महसूस करता है। यह व्यक्तित्व है जेबी कृपलानी यानी जीवटराम भगवानदास कृपलानी का। की कर्मभूमि पूरा देश रहा। कांग्रेस से नीतिगत मामलों में मतभेद के कारण उन्होंने 1951 में इस्तीफा दे दिया था।
इसके बाद कृषक मजदूर प्रजा पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ राजनीतिक सफर पूरा किया। वर्ष 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विरोध में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ही सबसे मुखर थी। पंडित नेहरू से कई मुद्दों पर मतभेद थे। आचार्य कृपलानी कांग्रेस के खिलाफ झंडा उठाए थे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें सीतामढ़ी लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाने का निश्चय किया।
उम्मीदवार बनाने के ये रहे कारण
आचार्य कृपलानी वर्ष 1912 से 1917 तक मुजफ्फरपुर के तत्कालीन ग्रियर्स भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज में अंग्रेजी और इतिहास के प्राध्यापक रहे। इन चार वर्षों में उनकी लोकप्रियता और ख्याति फैल गई थी। इसके बाद चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी से यहीं मुलाकात हुई। गांधी जी से वे पहले से प्रेरित थे। इस आंदोलन के बहाने स्थानीय लोगों में उनकी चर्चा होने लगी। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने इस वस्तुस्थिति को समझा और उनकी उम्मीदवारी तय की।
नहीं था कोई बड़ा नाम
उस साल के चुनाव में आचार्य कृपलानी के खिलाफ कोई बड़ा चेहरा नहीं था। कांग्रेस ने उनके खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि सम्मान इतना था कि उनके खिलाफ कोई उतरना भी नहीं चाहता था। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बुझावन साह चुनौती दे रहे थे। जातीय आधार पर राजनीतिक स्थिति भांपने वाले लोगों ने राष्ट्रीय भावना को तवज्जो दिया। आचार्य कृपलानी की जीत हुई। उन्हें एक लाख 25 हजार 613 मत प्राप्त हुए। जबकि, प्रतिद्वंद्वी बुझावन साह को 54 हजार 835 मत मिले और वे दूसरे नंबर पर रहे।