मुजफ्फरपुर के इस इलाके का नाम कंपनीबाग पड़ने के पीछे क्या है कहानी? आइये जानें
ब्रिटिश राजकुमार प्रिंस ऑफ वेल्स के स्वागत के लिए बने ईस्ट इंडिया कंपनी के उस गार्डन को कालांतर में कंपनी का बाग कहा जाने लगा। माना जाता है कि इस कारण ही क्षेत्र का नाम कंपनीबाग हो गया।करीब सात बीघा जमीन तत्कालीन कलेक्टर के नाम की गई थी रजिस्ट्री।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में मुजफ्फरपुर का योगदान स्वर्णिम रहा है। खुदीराम बोस व प्रफुल्ल चाकी की शहादत हो या जुब्बा सहनी की कुर्बानी। बापू ने भी स्वतंत्रता संघर्ष से पहले मुजफ्फरपुर में ही रणनीति बनाई। यही कारण है कि शहर व जिले का एक-एक कोना स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी कहता है। ऐसे में कंपनीबाग क्षेत्र की चर्चा लाजिमी है।
लिखित अभिलेख तो नहीं
बताया जाता है कि यह क्षेत्र ब्रिटिश पदाधिकारियों के आवास, खेलकूद की जगह व आरामगाह हुआ करता था। यही कारण था कि जिस बग्घी को किंग्सफोर्ट का समझकर शहीद खुदीराम बोस ने 1908 में बम फेंका था। इसमें दो ब्रिटिश महिलाएं थीं। वे क्लब से निकलकर घर जा रही थीं। यह क्षेत्र वर्तमान में मुजफ्फरपुर क्लब के आसपास का था। ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता था। इसका नाम कंपनीबाग होने को लेकर लिखित अभिलेख तो नहीं हैं।
चिल्ड्रेंस पार्क अब मीनाबाजार बना
मगर, इस क्षेत्र की जानकारी रखने वाले उपेंद्र ठाकुर कहते हैं कि, 1883 में प्रिंस ऑफ वेल्स यहां आए थे। उनके स्वागत के लिए इस क्षेत्र में गार्डन बनाया गया। इसके लिए तत्कालीन कलेक्टर के नाम से करीब सात बीघा जमीन रजिस्ट्री की गई। इसका अभिलेख मौजूद है। वर्तमान में नगर भवन क्षेत्र से लेकर सदर अस्पताल का यह इलाका है। ब्रिटिश राजकुमार के स्वागत के लिए बने ईस्ट इंडिया कंपनी के उस गार्डन को कालांतर में कंपनी का बाग कहा जाने लगा। माना जाता है कि इस कारण ही क्षेत्र का नाम कंपनीबाग हो गया। सदर अस्पताल भी उसी जमीन पर बनी। साथ ही वर्षों तक इस क्षेत्र में चिल्ड्रेंस पार्क भी रहा। जो अब मीनाबाजार बन चुका है। वहीं इस इलाके में बने सिटी पार्क व इंदिरा प्रियदर्शिनी पार्क जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। पूर्व वार्ड पार्षद शीतल गुप्ता कहते हैं कि इस क्षेत्र में पहले दो पेट्रोल पंप भी थे। बुजुर्गों से यह सुना हूं कि ब्रिटिशकाल में भी यह इलाका प्रशासन का मुख्य केंद्र हुआ करता था।