पारू प्रखंड के तालाबों में दो महीने भी नहीं रहता पानी Muzaffarpur news
पहले तालाब किनारे होती थी छठ पूजा। सूखे तालाबों से घट रहा सरकारी राजस्व। हमारी सोच ने हमें जलसंकट से जूझने को विवश कर दिया है। तालाब को खेत बनाने से बना जलसंकट का गवाह।
मुजफ्फरपुर, [शिवशंकर विद्यार्थी]। हमारी सोच ने हमें जलसंकट से जूझने को विवश कर दिया है। आज पीने को पानी खोजने लगे हैं। यदि हमने अपनी सोच नहीं बदली तो वह समय दूर नहीं, जब हमें पूर्वजों का घर छोड़कर पानी के लिए पलायन करना पड़ सकता है। एक जमाना था जब हमारे पूर्वजों ने पानी के महत्व को समझा और पोखर- कुएं खुदवाए। उस पोखर में सालों भर पानी रखना चुनौती बनी रही। लेकिन आज हम इतने बदल चुके हैं कि हम तालाब को खेत बनाने की ओर चल पड़े है जो जलसंकट का गवाह बना हुआ है।
सरकार की उदासीनता भी तालाबों व पोखरों की पहचान खत्म करने में कम जिम्मेदार नहीं है। हमने अपने स्वार्थ की खातिर गांवों का भूगोल तक बदल दिया। अधिकतर निजी पोखर खेत में बदल गए। सरकार की चुप्पी भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है।
प्रखंड में हैं 105 तालाब
प्रखंड की 34 पंचायतों में 105 तालाब हैं जिससे सरकार को अच्छी खासी राजस्व की प्राप्ति होती थी। तालाबों में जल संरक्षण नहीं होने के कारण मछुआरे भी तालाब की बंदोबस्ती कराने में आनाकानी करने लगे हैं। प्रखंड क्षेत्र में मात्र 10-12 तालाब ही हैं जिसे मछुआरों ने जलसंग्रह कर जीवित बना रखा है, शेष सूखे पड़े हैं।
अतिक्रमण व उड़ाही नहीं होने से परेशानी
इन तालाबों की उड़ाही नहीं होने के कारण ये जल्द ही खेत की शक्ल में आ जाएंगे। ऐतिहासिक तालाबों की पहचान अतिक्रमण से मिटती जा रही है। लोगों का कहना है कि शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं होती।
बंद होने लगी तालाब किनारे छठ पूजा
एक समय था जब गांव की महिलाएं तालाब किनारे छठ पूजा करतीं थीं। लेकिन, तालाबों के सूखने से यह परंपरा खत्म होने लगी है और दरवाजे पर पोखर बनाकर लोग छठ पर्व मनाने लगे हैं। इतना ही नहीं, पहले गांव के तालाब किनारे बरात को ठहराया जाता था। यह परंपरा तो काफी अर्से पूर्व समाप्त हो चुकी है।
पशुओं की भी बढ़ी परेशानी
वीरेंद्र कुमार पटेल, मदन प्रसाद, केदार चौधरी व प्रमोद कुमार यादव ने कहा कि विशुनपुर सरैया पोखर एक जमाने में मछली पालन और पशुओं को नहलाने व पानी पिलाने सहायक था। लेकिन दो दशकों से पोखर पानी को तरस रहा है। बारिश के दिनों में कुछ महीनों के लिए थोड़ा बहुत पानी रहता है जो धीरे-धीरे फिर सूख जाता है।
मगर सरकार अपने स्तर से पोखर बचाव में कुछ नहीं करती, जबकि पोखर से सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती थी। पारू स्थित पोखर की भी हालत कुछ ऐसी ही है। बिजली चालित मोटर लगाकर इन पोखरों में पानी संग्रह कर सरकार अच्छा राजस्व प्राप्त कर सकती है। आज जरुरत है सरकार और बुद्धिजीवियों को मिलकर इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की।