Water Conservation: मुजफ्फरपुर में सूख रहे पोखर-तालाब, नहीं बुझ रही धरती की प्यास
Water Conservationपोखरों एवं तालाबों से भरा हुआ था उत्तर बिहार का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र मुजफ्फरपुर। पोखरों के समाप्त होने से नहीं हो पा रहा वर्षा जल का संचय। नगर निगम ने पोखर एवं तालाब को बना दिया कूड़ादान।
मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। उत्तर बिहार का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र मुजफ्फरपुर पोखरों एवं तालाबों से भरा हुआ था। सिर्फ शहर की बात करें तो यहां एक या दो नहीं दो दर्जन तालाब एवं पोखर हैं। कई ऐतिहासिक महत्व वाले भी हैं। लेकिन उनमें से अधिकांश दाम तोड़ चुके हैं, और जो दो-चार बचे है वे भी अंतिम सांसे गिन रहे हैं।
कुछ पोखरों को शहरवासियों के स्वार्थ ने काल के गाल में पहुंचा दिया तो कुछ को नगर निगम की लापरवाही नें। अधिकांश पोखरों को अतिक्रमणकारी निगल गए। वहीं नगर निगम को कूड़ा डंप करने को जगह नहीं मिली तो उसने पोखर एवं तालाब को कही कूड़ादान बना दिया। परिणाम यह निकला कि जहां कभी पोखर था वहां आज कूड़े के पहाड़ बन गया। इसका परिणाम जल संकट के रूप में दिखने लगा है।
गर्मी बढऩे के बाद भूगर्भ जल का स्तर तेजी से नीचे गिरा और शहरवासियों को पानी के लाले पडऩे लगे है। कारण अब धरती की प्यास बुझाने वाले पोखर जो अब नहीं रहे। दैनिक जागरण के सहेज लो हर बूंद अभियान के तहत जब लोगों से बात की गई तो उन्होंने पोखर को वर्षा जल संचय का सबसे सशक्त माध्यम बताया और पोखरों को समाप्त करने को बड़ी भूल।
सामाजिक कार्यकर्ता संजय गुप्ता ने कहा है कि भूगर्भ जल का स्तर बनाए रखने में पोखर एवं तालाब अहम रोल अदा करते थे। लेकिन लोगों की लापरवाही एवं निगम की उदासीनता के कारण शहर के अधिकांश पोखरों को समाप्त कर दिया गया। प्रशासन के साथ आम लोगों को भी पोखारों को बचाने के लिए आगे आना होगा। समाजसेवी संजीव रंजन ने कहा कि पोखर के सांस्कृतिक महत्व की कम नहीं थे। ङ्क्षहदुओं के महान पर्व छठ तालाब एवं पोखरों में बनाए जाते थे। शादी हो या श्राद्ध , पोखर पर अनुष्ठान होते थे। इस प्रकार पोखर-तालाबों के धार्मिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय महत्व को देखते हुए ही पहले इसे खुदवाए जाते थे। यदि हम इस कार्य को करे तो पेयजल संकट कभी नहीं होगा।
छात्रा ज्योति कुमारी के अनुसार पोखर एवं तालाबों को अतिक्रमणमुक्त किया जाए और उसकी सफाई की जाए। उसके चारो ओर से सीढ़ी घाट बनाकर संरक्षित किया जाए। इससे वर्षा जल का संचय होगा और भू-जल स्तर रीचार्ज होता रहेगा।