शिल्पावतार हैं बाबा विश्वकर्मा
देवशिल्पी विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण न केवल मानव अपितु देवों के भी बीच आदि काल से ही पूजित और वंदित हैं।
मुजफ्फरपुर। देवशिल्पी विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण न केवल मानव अपितु देवों के भी बीच आदि काल से ही पूजित और वंदित हैं। ग्रंथों में बाबा विश्वकर्मा वैदिक देवता के रूप में मान्य हैं, किंतु उनका पौराणिक स्वरूप अलग प्रतीत होता है। वे सृष्टि के प्रथम सूत्रधार कहे गए हैं।
पं.जयकिशोर मिश्र बताते हैं कि विष्णु पुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देव-बढ़ई कहा गया है तथा भगवान के शिल्पावतार की संज्ञा दी गई है। यही मान्यता कई पुराणों में आई है, जबकि शिल्प के ग्रंथों में वह सृष्टिकर्ता भी कहे गए हैं। स्कंद पुराण में उन्हें देवायतनों का सृष्टा कहा गया है। कहा जाता है कि वह शिल्प केइतने ज्ञाता थे कि जल पर चल सकने योग्य खड़ाऊं तैयार करने में समर्थ थे।
सिकंदरपुर चौक स्थित बाबा अजगैबी नाथ हनुमान मंदिर के पुजारी पं.संजय मिश्र बताते हैं कि भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यो को देखा जाए तो इंद्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा ही किया गया है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है। कर्ण का कुंडल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड आदि का निर्माण बाबा विश्वकर्मा ने ही किया है।
यह है मान्यता
कहा जाता है कि प्राचीनकाल में जितनी भी राजधानियां थीं, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं। यहां तक कि स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका, हस्तिनापुर आदि उनके द्वारा ही रचित हैं। सुदामापुरी के बारे में भी कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। इससे आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले लोगों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है।
कैसे हुई भगवान
विश्वकर्मा की उत्पत्ति
वैदिक ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। उनकी नाभि-कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म और धर्म के पुत्र वास्तुदेव हुए। कहा जाता है कि धर्म की वस्तु नामक स्त्री से उत्पन्न वास्तु सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। वास्तुदेव की अंगिरसी नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भाति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने।
औद्योगिक जगत, अभियंताओं
व मजदूरों के लिए खास दिन
हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा बताते हैं कि विश्वकर्मा पूजा जन कल्याणकारी है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी व राष्ट्रीय उन्नति के लिए सृष्टिकर्ता, शिल्प कलाधिपति, तकनीकी और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए। इस दिन का औद्योगिक जगत और भारतीय कलाकारों, मजदूरों, अभियंताओं आदि के लिए खास महत्व है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वे अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही पूजा करें।
हर चौराहे पर भगवान विश्वकर्मा
विश्वकर्मा पूजन भगवान विश्वकर्मा को समर्पित एक दिन है। उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है। शनिवार को विश्वकर्मा पूजा है। औद्योगिक क्षेत्र, फैक्ट्री, कल-कारखाने, हार्डवेयर की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में विशेष रूप से बाबा विश्वकर्मा की पूजा की तैयारी की गई है। इस मौके पर जगह-जगह पूजन के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रखा गया है। कई चौक-चौराहों पर लोगों ने बाबा विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित कर पूजा की तैयारी की है। कई लोग अपने-अपने घरों में बाबा विश्वकर्मा की तस्वीर की पूजा करेंगे। चांदनी चौक, जेल चौक, नया टोला विद्युत सब स्टेशन परिसर व एनएच 28 के भगवानपुर-रामदयालु पथ स्थित विश्वकर्मा मंदिर सहित विभिन्न प्रतिष्ठानों में पूजा की तैयारी अंतिम चरण में है। शनिवार को सभी औद्योगिक कंपनियों व दुकानों में विशेष रूप से सभी उपकरणों और मशीनों की पूजा होगी। रेलवे कोचिंग डिपो, भारत वैगन, क्रू लॉबी, रेलवे के दूरसंचार व बिजली विभाग, सुधा डेयरी, औद्योगिक क्षेत्र बेला, बहलखाना व राज ट्रांसपोर्ट सहित विभिन्न चौक-चौराहों पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा की तैयारी है।
ऐसे करें पूजन
यज्ञकर्ता पत्नी सहित पूजा स्थान में बैठें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें। हाथ में पुष्प, अक्षत लेकर मंत्र पढ़ें और चारों ओर अक्षत छिड़कें। अपने हाथ में रक्षासूत्र बाधें एवं पत्नी को भी बाधें। पुष्प जलपात्र में छोड़ें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें। दीप जलाएं, जल के साथ पुष्प एवं सुपारी लेकर संकल्प करें। शुद्ध भूमि पर अष्टदल कमल बनाएं। उस पर जल डालें। इसके बाद पंचपल्लव, सप्त मृतिका, सुपारी, दक्षिणा कलश में डालकर कलश की तरफ अक्षत चढ़ाएं। चावल से भरा पात्र समर्पित कर विश्वकर्मा बाबा की मूर्ति स्थापित करें और वरुण देव का आह्वान करें। पुष्प चढ़ाकर बाबा विश्वकर्मा से मूर्ति में विराजने और पूजा स्वीकार करने की प्रार्थना करें। इस प्रकार पूजन के बाद सभी तरह के औजारों और यंत्र आदि की पूजा कर हवन यज्ञ करें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की आरती करके देवताओं का विसर्जन करें एवं प्रसाद वितरण करें।
पूजा का मुहूर्त
प्रात:काल 7:31 से 9:51 बजे तक
फिर 10:25 से संध्या 5 बजे तक