क्या मंत्री मुकेश सहनी का भी चिराग पासवान जैसा ही हाल होने वाला है? चर्चाओं का बाजार गर्म
VIP dispute Bihar Politics विश्लेषक पूछ रहे चिराग जैसी तो नहीं तैयार हो रही मुकेश सहनी की भी पटकथा। एनडीए का घटक दल होने के बावजूद भाजपा के विरोध पर वीआइपी में उठने लगे विरोध के स्वर। तीनों विधायकों की पृष्ठभूमि भाजपा से होने के कारण बढ़ सकती परेशानी।
मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की पृष्ठभूमि में बिहार में राजनीतिक उठापटक जारी है। राजनीति के जानकारों को यह आशंका है कि वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी की कहानी भी लोजपा के चिराग पासवान जैसी हो सकती है। वीआइपी के अंदर से विरोध के सुर बुलंद होने के बाद इस आशंका को और बल मिला है। दरसअल बिहार में कभी लोकसभा की अपनी एक सीट तक नहीं बचा पाने वाले लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान जब एनडीए के साथ आए तो पार्टी के छह-छह सांसद बने। उनके इस निर्णय में पुत्र चिराग पासवान की बड़ी भूमिका थी। उनके निधन के बाद चिराग का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से संबंध खराब होने लगा। बिहार विधानसभा में एनडीए से अलग होकर लोजपा के चुनाव लड़ने से नीतीश से संबंध पूरी तरह टूट गया। चिराग के इस निर्णय से पार्टी के अन्य नेताओं और सांसद खुश नहीं थे। उनकी सलाह को दरकिनार कर दिया गया। परिणाम यह हुआ कि पार्टी टूट गई। चाचा पारस और भाई प्रिंस ने भी साथ छोड़ दिया। छह में से पांच सांसद अलग हो गए। एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह भी जदयू में शामिल हो गए। अब चिराग अपने गुट से अकेले सांसद हैं। सिंबल भी फिलहाल छिन गया है।
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विधायक राजू सिंह का खुला प्रतिवाद
बिहार के बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में कुछ इसी तरह की पटकथा तैयार होने की सुगबुगाहट राज्य की एनडीए सरकार में शामिल वीआइपी के लिए महसूस होने लगी है। पार्टी सुप्रीमो मुकेश सहनी एनडीए में रहते हुए लगातार भाजपा के विरोध में बयान दे रहे हैं। यूपी में भाजपा के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा भी उन्होंने कर दी है। साथ ही कभी लालू प्रसाद तो कभी नीतीश कुमार को ही अपना नेता बता रहे। उनका यह स्टैंड वीआइपी के विधायकों को रास नहीं आ रहा है। यह इसलिए भी कि वीआइपी के वर्तमान तीनों विधायकों की पृष्ठभूमि भाजपाई रही है। भाजपा से वर्ष 2015 में चुनाव लड़ चुके वीआइपी के साहेबगंज से विधायक राजू सिंह ने तो खुलकर विरोध कर दिया है। उन्होंने कहा है कि एनडीए में रहकर लालूवादी विचार की बात करना गलत है। गठबंधन धर्म का पालन नहीं हो रहा। उन्होंने पार्टी सुप्रीमो के विचार को नापसंद करने की भी बात कही।
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भाजपा विरोध के कारण खुश नहीं
दरभंगा के गौड़ाबौराम से विधायक सवर्णा सिंह का खुले तौर पर तो बयान नहीं आया है, किंतु माना जा रहा कि मुकेश सहनी के बयान से वह भी खुश नहीं हैं। उनके ससुर सुनील सिंह भाजपा के विधान पार्षद थे। इस कारण उनका झुकाव ीाी भी भाजपा की तरफ रहा है। वहीं इसी जिले के अलीनगर सीट से विधायक मिश्री लाल यादव की पृष्ठभूमि भी भाजपाई रही है। सवर्णा और मिश्री लाल को पार्टी का टिकट भी इसी कारण से ही मिला था। बोचहां से चुने गए एक अन्य विधायक मुसाफिर पासवान का निधन हो गया है। ऐसी स्थिति में मुकेश सहनी का भाजपा के विरोध में लगातार बयान देना उनके लिए कहीं संकट न पैदा कर दे।
अजय निषाद कर रहे पुरजोर विरोध
उनके स्वजातीय और मुजफ्फरपुर सांसद अजय निषाद उनपर लगातार निशाना साध रहे हैं। वे कह रहे कि मुकेश सहनी को अधिक अहमियत देने की जरूरत नहीं। उन्होंने एनडीए में वीआइपी को शामिल करने को भाजपा की भूल तक करार दे दिया है। साथ ही मुकेश के जनाधार पर भी सवाल उठाए। कहा, बिहार में जनाधार ही नहीं है। ऐसे में यूपी विधानसभा में उतरने की बात कहकर निषाद समाज को बरगला रहे। इस समाज का उनको ख्याल नहीं। एनडीए ने राज्य में 11 सीट दी थी। इसमें वीआइपी ने निषाद समाज को दो सीटें ही दीं। खुद निषाद बहुल सिमरी बख्तियारपुर सीट से मुकेश लड़े। यह सीट भी नहीं जीत सके। ऐसे में उनके एनडीए में रहने या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। दरअसल यह लड़ाई बोचहां की खाली हुई सीट को लेकर भी है। भाजपा के जिला स्तर के नेता वीआइपी की जगह अपने लिए यह सीट मांग रहे। सांसद अजय निषाद इस मांग का समर्थन भी कर रहे हैं। वे भाजपा पिछड़ा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। ऐसे में भाजपा के खिलाफ लगातार बयान दे रहे मुकेश सहनी के लिए आगे का रास्ता जरूर मुश्किल पैदा कर सकता है।