शहीद के गांव में नहीं मनी दीपावाली, पाकिस्तान से बदला लेंगी बेटियां
बीएसएफ के शहीद हेड कांस्टबल जीतेंद्र के गांव में लोगों ने दीपावली नहीं मनाई। इस बीच उनकी संतानों ने देश की रक्षा करने व पाकिस्तान से बदला लेने का संकल्प लिया है।
By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 30 Oct 2016 11:27 AM (IST)Updated: Mon, 31 Oct 2016 11:33 PM (IST)
पटना [संजय कुमार उपाध्याय]। देश की रक्षा करते शहीद हो गए बीएसएफ हेड कांस्टेबल जीतेंद्र सिंह के गांव में आज दीपावाली में अंधेरा छाया रहा। ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाने का फैसला किया था। इस बीच शहीद की बेटियों ने सेना ज्वायन कर अपने दम पर पाकिस्तान से बदला लेने की घोषणा की है।
सिसवा कचहरी टोला निवासी स्व. लक्ष्मी सिंह के घर कल रात अंधेरा पसरा रहा। हां, उनके घर भीड़ जरूर लगी रही। लेकिन, यह भीड़ दीपावली की मुबारकबाद देने के लिए नहीं, परिवार को ढ़ाढस बंधने के लिए जुटी। गांव की दीपावली तो इस घर के लाल के शहीद हो जाने के कारण अंधेरी ही बीती।
दीपावली से एक दिन पूर्व शनिवार को तिरंगे में लिपटा शहीद का पार्थिव शरीर जैसे ही जिले की सीमा में सेना की गाड़ी से आया, नम आंखें सड़क किनारे निहारने लगीं। शहीद की वीरगाथा गाई जाती रही। आवास पर भीड़ जुटी तो पत्थर दिल भी फूट पड़ा।
शहीद की शहादत व ईमानदारी कितनी महंगी है, यह साफ दिखा। जीतेंद्र का घर तो है, पर कहने को। घर की बड़ेरी (छत की मोटी लकड़ी) पर ठीक से फूस भी नहीं है। कमरे के अंदर दाखिल हुए तो पता चला दिन में ही घना अंधेरा छाया दिखा।
गरीबी की भयावहता से बेपरवाह जीतेंद्र भी थे और अब उनकी दो बेटियां और इकलौता पुत्र रोहित भी देशभक्ति के भाव से लबरेज हैं। यह दीगर बात है कि रोहित को यह समझ नहीं आ रहा है कि उसके साथ क्या हो गया?
गरीबी भले है, लेकिन शहीद की बड़ी पुत्री अर्चना उर्फ गुडिय़ा ने देशभक्ति और देश के दुश्मनों के साथ क्या किया जाना चाहिए, इसे खूब समझा है। उसने जाना कि देश के नागरिक का क्या धर्म है? गुडिय़ा को अपने पिता पर नाज है। दिल में दर्द है। लेकिन, तमन्ना है कि दुश्मनों ने जिस तरह से बीएसएफ जवान और उसके पिता को वीरगति को पहुंचाया है, उसका हिसाब पाकिस्तान से करेंगे।
दीपावली की रात जब ग्रामीण ढ़ाढ़स बंधाने के लिए जुटे, तब गुडिय़ा घर के अंधेरे को चीरते हुए बोली, 'हमने अपने पापा से जो सीखा है, उसके बूते सेना की ही नौकरी करेंगे। हमने यह संकल्प लिया है। हम तीनों -भाई बहन सेना में जाएंगे। पापा से बड़ा अफसर बनेंगे और पाकिस्तान को सजा देंगे'
गुडिय़ा ने कहा, केंद्र सरकार को चाहिए कि वह अब इंतजार नहीं, दुश्मन देश से उसके किए का हिसाब करे।'
शहीद की तीन संतानें
सिसवा कचहरी टोला निवासी स्व. लक्ष्मी सिंह के पुत्र जीतेन्द्र कुमार सिंह को तीन बच्चे हैैं। इनमें गुडिय़ा बड़ी है। उससे छोटी प्रीति है। सबसे छोटा है इकलौता पुत्र रोहित। दस साल के रोहित ने तिलावे नदी के तट पर अंतिम संस्कार के बाद कहा, मैं अपने पापा की तरह सेना में ही जाऊंगा। जीतेंद्र तो शहीद हो गए। लेकिन, घर में पीछे छोड़ गए तीन देश के रक्षक।
एक अदद घर भी नहीं बनवा सके
कचहरी टोला निवासी स्व. लक्ष्मी सिंह के दो पुत्रों में छोटे जीतेंद्र सिंह अपने भाई से अलग रहते थे। वे बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करने में कामयाब रहे। लेकिन, रहने के लिए एक अदद घर भी नहीं बना सके। परिवार के लोग बताते हैं कि सालों पहले रक्सौल के मौजे टोला में महज साढ़े छह धुर जमीन है। उक्त जमीन पर घर तो है, लेकिन कहने भर का। जमीन पर विवाद होने के कारण घर नहीं बना।
यहां आनेवाले हर आदमी की जुबान पर एक ही बात है, कैसे कटेगी जिंदगी। लेकिन, बेटियों की हिम्मत देख सभी कहते हैं, ईश्वर ऐसी देशभक्ति हर देशवासी के अंदर दें।
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