देसी मछलियों के अस्तित्व पर संकट, कभी होता था बहुत उत्पादन
वर्ष 2011 में देसी मांगुर घोषित हुई थी राजकीय मछली। देसी मछलियों में कतलाÓ अब सिर्फ चर्चाओं में ही शेष। मछलियों के अस्तित्व को बचाना मुश्किल सा लग रहा है।
मधुबनी, [कपिलेश्वर साह]। कभी तालाब और जल संसाधन मधुबनी की पहचान थी। यहां मछलियों का बहुत उत्पादन होता था। आज तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। 10 हजार से अधिक तालाब वाले मधुबनी में देसी मछलियों के अस्तित्व को बचाना मुश्किल सा लग रहा है। हाल यह है कि बहुत से तालाब या तो सूख गए या अतिक्रमण के शिकार हैं। इससे मछली उत्पादन प्रभावित हुआ है। खासतौर से देसी मछलियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा। कभी इचना, पोठी, मारा, कबई, गरई, सौरा, गैैंचा, सुहा, कांटी, गोलही, ङ्क्षसगी, मांगुर, छही, बुआरी, चेचरा, भुल्ला, ढलई सहित अन्य देसी मछलियां काफी मात्रा में यहां होती थीं।
अब जिले में आंध्रप्रदेश से लाई जा रहीं मछलियां बिक रहीं। इतना ही नहीं, वर्ष 2011 में मांगुर को राजकीय मछली घोषित किया गया। बावजूद इसके इनको संरक्षित करने की दिशा में कुछ भी नहीं किया जा रहा। समय रहते यदि कुछ नहीं किया गया तो ये देसी मछलियां तस्वीरों में ही नजर आएंगी। ऐसे ही मछलियों में 'कतला' अब सिर्फ चर्चाओं में रह गई हैं।
देसी मछलियां अधिक स्वादिष्ट
देसी मछलियों की कई विशेषताएं रही हैं। यह अधिक स्वादिष्ट और सुपाच्य हैं। चिकित्सकों की राय है कि इसको खाने से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता। प्रोटीन मिलता है। जिले में प्रति वर्ष 29 हजार मीट्रिक टन मछली की खपत है। जबकि उत्पादन सिर्फ 19,413 मीट्रिक टन ही है। मछलियों के भोजन, उचित दवा एवं खाद का छिड़काव, सही देखभाल नहीं करने से मछली उत्पादन में कमी हुई है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर मत्स्य पालकों को नुकसान उठाना पड़ता है।
तालाबों पर संकट
जिले में 5891 निजी एवं 4864 सरकारी तालाब हैैं। करीब 7800 हेक्टेयर जल क्षेत्र है। वर्तमान में तालाबों को बचा पाना मुश्किल लग रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों के सूखने तथा भरने से मछली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। अतिक्रमण ने भी परेशानी बढ़ा दी है। इस बारे में जिला मत्स्य पदाधिकारी सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी सूर्य प्रकाश राम ने मछलियों का उत्पादन बढऩे का दावा किया है। यहां की मछलियां यूपी के गोरखपुर सहित अन्य जिलों में भेजी जा रही हैं। मांगुर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभागीय स्तर पर प्रयास जारी है।
इसके उत्पादन के लिए आवेदन आने पर उसे विभागीय स्तर पर स्वीकृति प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। जिले में तालाबों को बचाने के लिए समय-समय पर संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए लिखा जाता रहा है। वहीं, मछली उत्पादक श्याम सहनी, ललित सहनी, राजकिशोर सहनी ने बताया कि इन मछलियों को बचाने के लिए विभागीय स्तर पर ठोस प्रयास की जरूरत है।
कम नहीं इसके मुरीद
देसी मछलियों के शौकीन लाल झा, सुनील कुमार, रोहित कुमार, शशिकांत झा आदि ने बताया कि इसका स्वाद लाजवाब होता है। इसके बाजार में उपलब्ध नहीं होने से निराशा होती है। यदि देसी मछलियों को बचाकर उत्पादन बढ़ाया जाए तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।