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Vat savitri 2022: व्रत कल, इस व‍िधि से पूजन करने के बाद सिद्ध होती हैं मनोकामनाएं

Vat savitri 2022 in Bihar व्रत का संदेश अपने जीवनसाथी का हर परिस्थिति में साथ देना है। पति की लंबी आयु स्वास्थ्य व उन्नति तथा संतान की प्राप्ति के लिए सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं वटसावित्री का व्रत। 29 मई रविवार को रखा जाएगा व्रत।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 28 May 2022 12:30 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 12:30 PM (IST)
Vat savitri 2022: व्रत कल, इस व‍िधि से पूजन करने के बाद सिद्ध होती हैं मनोकामनाएं
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। फाइल फोटो

मोतिहारी, जासं। अखंड सौभाग्य व संतान प्राप्ति की कामना पूर्ण करनेवाला व्रत वटसावित्री यह इस वर्ष 29 मई रविवार को मनाया जाएगा। आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य व ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने कहा कि यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष अमावस्या तिथि रविवार दोपहर के बाद पड़ रही है। इसलिए रविवार को ही व्रत मनाया जाएगा। यह व्रत हर परिस्थिति में अपने जीवनसाथी का साथ देने का संदेश देता है। इससे ज्ञात होता है कि पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है। वहीं सास-ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है। मान्यता है कि इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं।

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यह है व्रत की कथा

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। सावित्री से प्रसन्न होकर यमराज ने चने के रूप में सत्यवान के प्राण सौंपे थे। चने लेकर सावित्री सत्यवान के शव के पास आई और सत्यवान में प्राण फूंक दिए। इस तरह सत्यवान जीवित हो गए। तभी से वट सावित्री के पूजन में चना पूजन का नियम है।

जानिए कैसे करें व्रत

वट वृक्ष को दूध और जल से सींचना चाहिए। इस दिन चने बिना चबाए सीधे निगले जाते हैं। वट सावित्री व्रत के दिन दैनिक कार्य कर घर को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। ब्रह्माजी की बाईं ओर सावित्री तथा दूसरी ओर सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद टोकरी को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख देना चाहिए। इसके पश्चात सावित्री व सत्यवान का पूजन कर, वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करना चाहिए। पूजन के समय जल, मौली, रोली, सूत, धूप, चने का इस्तेमाल करना चाहिए। सूत के धागे को वट वृक्ष पर लपेटकर सात बार परिक्रमा कर सावित्री व सत्यवान की कथा सुनना चाहिए। 


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