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मुजफ्फरपुर के उपेंद्र बने मूक-बधिर की आवाज, शिक्षा के साथ साथ दिला रहे सम्मान

उपेंद्र ने वर्ष 2001 में बाबा गरीबनाथ मूक-बधिर आवासीय विद्यालय की शुरुआत कलमबाग चौक पर की। यहां ऐसे बच्चों के लिए कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई के साथ कंप्यूटर और सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। प्रशिक्षण दे 70 ऐसे युवाओं को रोजगार से जोड़ा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 07:51 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 07:51 AM (IST)
मुजफ्फरपुर के उपेंद्र बने मूक-बधिर की आवाज, शिक्षा के साथ साथ दिला रहे सम्मान
लोगों के सहयोग से अब तक ऐसे करीब 500 बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं।

मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। मूक-बधिर बच्चों का जीवन संवारने का काम कर रहे कलमबाग निवासी उपेंद्र चौधरी। इसके लिए 19 साल से एक स्कूल चला रहे। लोगों के सहयोग से अब तक ऐसे करीब 500 बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं। अभी 90 पढ़ रहे। प्रशिक्षण दिलाकर 70 ऐसे युवाओं को रोजगार से जोड़ा है। ये सिलाई-कढ़ाई या अन्य काम कर रहे हैं। 

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उपेंद्र के रिश्तेदार अमित कुमार के बेटा व बेटी मूक-बधिर थे। वे उन्हें पढ़ाना चाहते थे, लेकिन मुजफ्फरपुर में ऐसा कोई स्कूल नहीं था। बाहर भेज नहीं सकते थे। उनकी समस्या जान उपेंद्र ने वर्ष 2001 में बाबा गरीबनाथ मूक-बधिर आवासीय विद्यालय की शुरुआत कलमबाग चौक पर की। यहां ऐसे बच्चों के लिए कक्षा एक से आठ तक की पढ़ाई के साथ कंप्यूटर और सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई।

शुरुआत में कुछ बच्चे आए। धीरे-धीरे संख्या बढऩे लगी। अभी 90 बच्चे हैं। आठ स्पेशल शिक्षक और सात सहयोगी हैं। कोरोना के चलते अभी स्कूल बंद है, लेकिन प्रतिदिन चार-पांच अभिभावक बच्चों को लेकर आते हैं। उनकी काउंसलिंग व मदद की जाती है। यहां प्रशिक्षण लेने के बाद मूक-बधिर जो युवक-युवतियां अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं, उनकी शादी भी कराई जाती है। ऐसे आठ जोड़ों का विवाह बिना दहेज कराया जा चुका है।

अब बेटी किसी की मोहताज नहीं

कच्ची पक्की की स्वाति के पिता एके दास कहते हैं कि पहले बड़े परेशान थे मूक-बधिक बेटी का क्या होगा? उपेंद्र के सहयोग से बेटी ने उनके स्कूल के बाद स्नातक तक पढ़ाई की। प्रशिक्षण लेकर सिलाई का काम कर रही। मझौलिया की कविता कहानी भी ऐसी ही है। उसके पिता कुशेश्वर पासवान कहते हैं कि बेटी एक दुकान में काम करती है। वह किसी की मोहताज नहीं।

इस स्कूल में गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा सहित अन्य नेता व अधिकारी आ चुके हैं। बेहतर काम के चलते पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी 2018 व 2019 में सूबे के ग्रामीण विकास मंत्री सम्मानित कर चुके हैं। उपेंद्र कहते हैं कि शिक्षकों के वेतन, बच्चों के भोजन व रहने पर प्रतिमाह करीब डेढ़ लाख खर्च होते हैं। यह लोगों के सहयोग से आता है। सरकार से भी मदद मिलती है। रेडक्रास और स्थानीय सांसद अजय निषाद भी समय-समय पर मदद करते हैं। शिक्षक खुशबू कुमारी व रंजन कुमार कहते हैं कि सेवाभाव से पढ़ाते हैं। जिला सामाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक बृजभूषण कुमार कहते हैं कि उपेंद्र ऐसे बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का काम कर रहे। उनसे प्रेरणा लेने की जरूरत है। 


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