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यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा-जदयू की राहें हुईं जुदा, मुजफ्फरपुर में लोग पूछ रहे- खेला होबे?

UP Assembly Election 2022बिहार की एनडीए सरकार में प्रमुख सहयोगी भाजपा व जदयू यूपी चुनाव साथ-साथ लड़ने को लेकर सहमत थे लेकिन बात नहीं बनी। वहीं राजद ने जदयू को कुछ दिनों पहले ही साथ आने का प्रस्ताव दिया था। इसके बाद मुजफ्फरपुर के लोग पूछ रहे- खेला होबे?

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 09:03 AM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 09:10 AM (IST)
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा-जदयू की राहें हुईं जुदा, मुजफ्फरपुर में लोग पूछ रहे- खेला होबे?
UP Assembly Election 2022:लोग बिहार में इसके प्रभाव की चर्चा कर रहे हैं। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, आनलाइन डेस्क। बिहार के पड़ोसी राज्य यूपी समेत पांच राज्यों में चुनावी घमासान चरम पर है, किंतु उत्तर प्रदेश के चुनाव पर पूरे देश की नजर है। बिहार के लोगों की कुछ खास ही। इसकी वजह है बिहार सरकार के दो सहयोगी दलों का भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरना। दरसअल वर्तमान बिहार सरकार के तीन प्रमुख सहयोगी दल भाजपा, जदयू और विकासशील इंसान पार्टी उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में अलग-अलग अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। भाजपा और वीआइपी की राह तो पहले ही अलग हो गई थी, अब जदयू ने भी अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का फैसला कर लिया है। बात केवल इतनी भर नहीं है। कुछ दिन पहले राजद के प्रदेश अध्यक्ष ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा तथा जातीय जनगणना के मुद्​दे पर सीएम नीतीश कुमार को फिर से महागठबंधन में आने का न्योता दिया था। मकर संक्रांति के बाद खेला होबे की बात कही थी। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बहाने ही सही भाजपा और सीएम नीतीश कुमार की पार्टी की राह अलग होने के बाद बिहार के लोगों को इसके परिणाम की चिंता हाेने लगी है। यहां मुजफ्फरपुर के लोग दबी जुबान ही सही, एक-दूसरे से पूछ रहे- खेला होबे?

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बिहार यूनिवर्सिटी के पीजी राजनीति विज्ञान के छात्र सौरभ इस घटनाक्रम को दो रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यदि कोई यह सोच रहा है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव संपन्न हाेते ही बिहार में सत्ता बदल जाएगी तो यह थोड़ी जल्दबाजी की बात हो जाएगी। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस चुनाव में राह-जुदा हाेने का प्रभाव ही नहीं होगा। वैसे भाजपा और जदयू उत्तर प्रदेश से पहले भी दूसरे राज्यों में अलग-अलग एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं। तुरंत बदलाव की सोच उचित नहीं है।

कपड़े के कारोबारी दिनेश की राजनीति में गहरी रुचि है। वे इस घटनाक्रम को एक अलग संदर्भ में देखते हैं। कहते हैं, यह केवल भाजपा और जदयू का अलग-अलग चुनाव लड़ने जैसा नहीं है। यदि मंत्री मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी के कड़े तेवर, राजद की ओर से सीएम नीतीश को आमंत्रण और अब भाजपा-जदयू की अलग राह को एक साथ रखकर देखा जाए तो बिहार की राजनीति पर इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। हां, तत्काल शायद कुछ खास बदलाव देखने को नहीं मिले। उनका कहना है कि आगामी विधानपरिषद चुनाव के दौरान भी थोड़ा-बहुत प्रभाव महसूस किया जा सकता है। वैसे राजनीति की चाल इतनी भी सीधी नहीं होती है। केंद्र में अब भी भाजपा की सरकार है और इसके प्रभाव को कम नहीं अांका जा सकता है।  


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