विद्यार्थियों के साथ राजभवन को भी बरगला रहा विश्वविद्यालय
मुजफ्फरपुर। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में लंबित परीक्षाओं को लेकर विद्यार्थियों में जबरदस्त आक्रोश ह
मुजफ्फरपुर। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में लंबित परीक्षाओं को लेकर विद्यार्थियों में जबरदस्त आक्रोश है। मगर, विश्वविद्यालय बेफिक्री में दिख रहा है। कुलपति समेत तमाम अधिकारी छात्रों की मांग को अनसुनी कर रहे, सिर्फ आश्वासन ही दे रहे हैं। राजभवन भी जब तलब करता है तो कुलपति व रजिस्ट्रार वहां भी आश्वासन देकर ही काम चला लेते हैं। जबकि, सच तो यह है कि कुलपति डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव खुद भी असमंजस की स्थिति में हैं। उस एजेंसी ने सबको असमंजस में डाल दिया है जिसका 51 लाख रुपये बकाया है। दरअसल, छात्र-छात्राओं से परीक्षा शुल्क ले तो लिए गए, मगर इस मद की राशि उस एजेंसी तक पहुंच ही नहीं पायी है। लिहाजा, एजेंसी ने बिना भुगतान प्रश्नपत्र देने से इंकार कर दिया है। बड़ा सवाल यह है कि पैसे के अभाव में प्रश्नपत्रों की छपाई न होना और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ पर कुलपति कोई एक्शन क्यों नहीं ले रहे? इस चक्कर में तकरीबन चार लाख छात्र-छात्राओं की परीक्षाएं अधर में लटकी हैं। इनमें फिलहाल टीडीसी पार्ट वन एवं टू, पीजी सेकेंड सेमेस्टर, फोर्थ सेमेस्टर, बीएड सेकेंड ईयर व बीबीए की परीक्षाएं मुख्य रूप से सिर पर हैं। उधर, होम्योपैथी, आयुर्वेद व यूनानी की परीक्षाओं की अभी कोई चर्चा तक नहीं है। इनमें कुछ रेगुलेशन के चक्कर में तो कुछ प्रशासनिक उदासीनता के चलते अटकी हुई हैं। परीक्षाएं नहीं होने के कारण छात्रसंघ ने परीक्षा नियंत्रक कार्यालय में ताले जड़ दिए।
सिर्फ टीडीसी पार्ट वन व टू के ढाई लाख छात्र
टीडीसी पार्ट टू-2017 की परीक्षा तो ऐन वक्त पर टल गई। यह परीक्षा 16 अप्रैल से होनी थी। परीक्षा कार्यक्रम भी घोषित कर दिया गया था। कई विद्यार्थियों को अभी तक एडमिट कार्ड भी नहीं मिल पाया है। यह परीक्षा हो तो पार्ट वन की परीक्षा ली जाए। इन्हीं दोनों कक्षाओं के तकरीबन ढाई लाख विद्यार्थी अधर में लटके हैं। इसी के साथ पीजी सेकेंड सेमेस्टर, फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षा भी अभी सिर पर है। कुछ दिन के बाद फर्स्ट सेमेस्टर का भी समय आ जाएगा। बीएड सेकेंड ईयर की परीक्षा तो बाकी है ही। ये सब मुख्य परीक्षाएं हैं। वोकेशनल की परीक्षाएं भी लंबित हैं। इनका फार्म पिछले ही महीने भरा गया है।
अब आर-पार की लड़ाई के मूड में छात्रसंघ
परीक्षाएं समय पर नहीं होने से विद्यार्थियों में जबरदस्त आक्रोश है। छात्रसंघ के नवनिर्वाचित प्रतिनिधि तो अब इस मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरने की तैयारी में हैं। विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष बसंत कुमार व आरडीएस कॉलेज छात्रसंघ के अध्यक्ष राजा बाबू का कहना है कि विश्वविद्यालय की गलतियों का खामियाजा हर बार विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है। ऐसी कोई परीक्षा नहीं जो पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार हो जाए। इतनी तादाद में विद्यार्थी परीक्षा के राह देख रहे हैं और उनकी सुनवाई नहीं हो रही।
अपनी डफली अपना राग
विवि के अधिकारी 'अपनी डफली अपना राग' अलाप रहे हैं। परीक्षाओं के लिए सीधे-सीधे कुलपति को ही कटघरे में खड़े करते हैं। जानकार बताते हैं कि प्रतिकुलपति, रजिस्ट्रार, परीक्षा नियंत्रक व कुलपति के बीच आपसी समन्वय का अभाव है। सभी लोग आपस में मिल बैठकर कोई रास्ता नहीं निकाल पा रहे हैं।
कहां गए छपाई के पैसे
परीक्षा विभाग के लोग सिर्फ इतना बताते हैं कि कुछ पेच फंस गया है। जानकारों का कहना है कि प्रश्नपत्र छापने वाली एजेंसी ने प्रश्नपत्र रोक रखा है। वही एजेंसी यूजी से लेकर पीजी तक के प्रश्नपत्र छापकर विश्वविद्यालय को देती है। उसका कहना है कि पहले बकाया भुगतान हो तब प्रश्नपत्र देंगे। उसका वर्षो का बकाया है। एजेंसी को पैसे नहीं मिले तो उसने प्रश्नपत्र रोककर कोई गलती नहीं की। जब छात्र-छात्राओं से परीक्षा शुल्क लिए गए तो छपाई के पैसे एजेंसी तक क्यों नहीं पहुंचे?
परीक्षा नियंत्रक ने गिनाई अपनी लाचारी
परीक्षा नियंत्रक डॉ. ओपी रमण का कहना है कि परीक्षाएं नहीं होने के पीछे सिर्फ और सिर्फ एक अडं़गा है। और वह है एजेंसी को पैसे का भुगतान न होना। उसका डिमांड है कि पहले भुगतान करो तो प्रश्नपत्र छापकर देंगे। अब भुगतान का मसला तो सीधे कुलपति से जुड़ा है। वे ही कुछ कर सकते हैं। प्रश्नपत्र छपाई का मसला सुलझ जाए तो परीक्षाएं लेने में देर नहीं लगेगी।
रजिस्ट्रार कहते, कंट्रोलर
के जिम्मे है काम
रजिस्ट्रार डॉ. अजय कुमार श्रीवास्तव इस बारे में पूछने पर आश्वासन ही देते हैं। कहते हैं देखा जाएगा। समय निकला जा रहा है और विश्वविद्यालय अभी देख ही रहा है, की बात पर कहा कि कंट्रोलर को ही यह सब देखना होता है। बावजूद छात्रों के भविष्य को देखते हुए कोई रास्ता जल्द निकालने का प्रयास किया जाएगा।
मनमाने ढंग से एजेंसी को सौंपा गया काम
जानकार बताते हैं कि प्रश्नपत्र छापने वाली कोलकाता की एजेंसी के साथ बिना करार डील कर लिया गया। मनमाने ढंग से उस एजेंसी को छपाई का काम सौंपने के चलते ही ऐन वक्त पर परीक्षाएं अटक गई हैं। मौजूदा कुलपति के कार्यकाल में ही उस एजेंसी को यह काम सौंपा गया। इससे पहले महाराष्ट्र की एजेंसी यह काम करती थी। तब पंडित पलांडे ने अपने हिसाब से उस एजेंसी को यह जिम्मेवारी दी थी। मतलब साफ है कि कुलपति बदलते ही प्रश्नपत्र छपाई वाली एजेंसी भी बदल जाती है और इस चक्कर में विद्यार्थियों के भविष्य दांव पर लग जाते हैं।