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'प्लीज गिव मी ए बुक' कैंपेन से आबाद हो रही अनूठी लाइब्रेरी

शब्दों से ही आकार लेती जिंदगी। हर शब्द अर्थवान। शब्दों के ज्ञान के बिना जिंदगी निरर्थक। इस सार को समझकर ही ये दान मांगते हैं, लक्ष्मी नहीं सरस्वती (पुस्तक) की। उद्देश्य सिर्फ एक, निर्धन छात्र महंगी पुस्तकों के अभाव में पढ़ाई से वंचित न हों। जिस किताब की जरूरत हो, निश्शुल्क उपलब्ध हो सके।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 12:59 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 12:59 PM (IST)
'प्लीज गिव मी ए बुक' कैंपेन से आबाद हो रही अनूठी लाइब्रेरी
'प्लीज गिव मी ए बुक' कैंपेन से आबाद हो रही अनूठी लाइब्रेरी

मुजफ्फरपुर । शब्दों से ही आकार लेती जिंदगी। हर शब्द अर्थवान। शब्दों के ज्ञान के बिना जिंदगी निरर्थक। इस सार को समझकर ही ये दान मांगते हैं, लक्ष्मी नहीं सरस्वती (पुस्तक) की। उद्देश्य सिर्फ एक, निर्धन छात्र महंगी पुस्तकों के अभाव में पढ़ाई से वंचित न हों। जिस किताब की जरूरत हो, निश्शुल्क उपलब्ध हो सके। चार महीने पहले विष्णु निरंजन उर्फ विष्णु झा की सोशल मीडिया से शुरू की गई 'प्लीज गिव मी ए बुक' नामक दान की यह अनोखी पहल आज कारवां बन गई है। उनके प्रयास से लक्ष्मी चौक, ब्रह्मापुरा स्थित लाइब्रेरी में किताबों का संसार आकार ले रहा है। तकरीबन पांच हजार किताबें जमा हो गई हैं। इस तरह आया विचार :

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बीआरए बिहार विश्वविद्यालय से गणित से एमएससी कर रहे विष्णु साधारण परिवार से आते हैं। ट्यूशन पढ़ाकर खर्च निकालते हैं। कोर्स और प्रतियोगी परीक्षाओं की महंगी किताबें खरीदना आसान नहीं है। लाइब्रेरी में भी जरूरत की पुस्तकें नहीं मिलतीं। अन्य गरीब छात्रों को भी इसी तरह की समस्या से दो-चार होते उन्होंने देखा। तब उनके मन में विचार आया कि क्यों न ऐसा पुस्तकालय खोला जाए, जहां कोर्स और प्रतियोगी परीक्षा के अलावा अन्य पुस्तकें उपलब्ध हों। इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए बीते जून में 'प्लीज गिव मी ए बुक' नामक फेसबुक पेज बनाया। इस पर उन्होंने लोगों से अपील की कि आप जब भी मुझसे मिलें कम से कम एक किताब दान दें। वह नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा, प्रतियोगी परीक्षा, साहित्य, धर्म या उपन्यास में कोई भी हो सकती है। लक्ष्मी चौक, ब्रह्मापुरा के पते पर भी पहुंचकर किताब दे सकते हैं। विष्णु कहते हैं, सोशल मीडिया पर यह अपील बहुत काम आई। विवि के कई छात्र और क्षेत्र के लोग आगे आए। उनमें से कई ने अपने क्षेत्र में पुस्तक जमा करने की जिम्मेदारी ले ली। अभी फेसबुक पेज से 250 लोग जुड़े हैं। वाट्सएप पर भी दो ग्रुप बनाया है। पहला यह अभियान चलाने वाले छात्रों और दूसरा दान देने वालों का। दान से अब तक तकरीबन पांच हजार पुस्तकें जमा हो गई हैं। संख्या लगातार बढ़ रही है।

इस तरह ले सकते पुस्तक

किसी छात्र को पुस्तक की जरूरत है तो वह लाइब्रेरी से ले सकता है। उसे अपना नाम, पता दर्ज कराना होता है। विष्णु का कहना है कि उनका विचार बिहार के सभी जिलों में इस तरह का पुस्तकालय खोलने का है, ताकि अमीर-गरीब बच्चे आकर पढ़ सकें। जरूरत पड़ने पर किताब ले जा सकें। दूसरे के काम आ रहीं पुस्तकें

इस अभियान जुड़े छात्र गौरव कुमार, सतीश पाठक, अनुराग कुमार, अनुपम दर्शन, पंकज कुमार, सोनू कुमार और विनीत का कहना है कि इससे किसी के पास बेकार पड़ी पुस्तक दूसरे के उपयोग में आ जाती है। विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बसंत कुमार सिद्धू इस पहल की सराहना करते हैं। एलएस कॉलेज के प्राचार्य प्रो. ओमप्रकाश राय का कहना है कि युवाओं में इस तरह की सोच बड़े बदलाव का द्योतक है। दम तोड़ रहे सरकारी पुस्तकालय के बीच यह प्रयास महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।


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