परिवार से ही तय होती स्त्री की नियति, खींच दी जाती लक्ष्मण रेखा
लड़का व लड़की के बीच भेद घर से ही शुरू होता।
मुजफ्फरपुर। लड़का व लड़की के बीच भेद घर से ही शुरू होता। उनके पालन में भी अंतर होता। लिंग भेद को आधार मानकर दायरे को सीमित कर दिया जाता। यहीं स्त्री के दायरे की लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। इस तरह परिवार से ही स्त्री की नियति तय हो जाती। ये बातें स्त्री विमर्श की लेखिका पद्मश्री ऊषा किरण खान ने कहीं। वे बुधवार को एमडीडीएम के ¨हदी विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में 'स्त्री की नियति और मुक्ति का स्वप्न' विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रही थीं। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के पूर्व कुलपति डॉ. रिपुसूदन श्रीवास्तव ने की। मुख्य वक्ता लेखक शिवनारायण थे। ¨हदी समालोचक डॉ. रेवती रमण ने कहा कि स्त्री ही स्त्री की नियति को बदल सकती।
ये सवाल भी उठे
कवि व चिंतक मदन कश्यप ने विषय पर सवाल उठाया। कहा कि सेमिनार का विषय 'स्त्री की नियति और मुक्ति का स्वप्न' नहीं, बल्कि 'स्त्री की नियति और मुक्ति का संघर्ष' होना चाहिए।
डॉ. रिपुसूदन श्रीवास्तव ने कहा कि विषय प्रवर्तन होना चाहिए था। दूसरी बात यह कि यहां मुक्ति का आशय क्या है। मोक्ष के अर्थ में है या जीवन स्थितियों से मुक्ति में है। सेमिनार की स्वागताध्यक्ष व प्राचार्य डॉ. ममता रानी ने कहा कि आज के दौर में स्त्री सुरक्षा ज्वलंत सवाल है।
इस अवसर पर लेखिका डॉ. अंजना वर्मा, डॉ. रश्मि रेखा, डॉ. पूनम सिन्हा, डॉ. पूनम सिंह, डॉ. रमेश ऋतंभर व मीडिया प्रभारी प्रभात कुमार मौजूद रहे। संचालन डॉ. पूनम सिंह ने किया और धन्यवाद डॉ. पुष्पा गुप्ता ने दिया।
आत्मकथा और कहानियों पर चर्चा
दूसरे सत्र में आत्मकथा और कहानियों पर चर्चा हुई। अध्यक्षता कवि आलोचक मदन कश्यप ने की। मुख्य वक्ता बीआरएबीयू ¨हदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सतीश कुमार राय थे। विशिष्ट वक्ता कथाकार आशा प्रभात व प्रो. प्रमोद कुमार थे। धन्यवाद डॉ. सुनीता गुप्ता ने दिया।
शाम को स्व. छवि कुमारी की स्मृति में काव्य गोष्ठी हुई। काव्य पाठ मदन कश्यप और स्मिता वाजपेयी के साथ आमंत्रित कवियों में आशा प्रभात, अंजना वर्मा, रश्मि रेखा, सुनीता कुमारी, सिबतुल्लाह हमीदी, शेखर शंकर मिश्रा, पूनम सिंह, पंकज कर्ण, श्यामल श्रीवास्तव आदि ने किया। अध्यक्षता डॉ. रिपुसूदन श्रीवास्तव ने की। संचालन डॉ. रमेश ऋतंभर ने किया।