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वरदान की बजाए अभिशाप बनी तिरहुत नहर, सैकड़ों एकड़ जमीन बर्बाद

हाल मुशहरी प्रखंड क्षेत्र से गुजरने वाली नहर का। अरबों का खर्च भी हुआ बेकार। नहर का दूसरा फेज भी शुरू। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के समय इस कार्य को मंजूरी दी थी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 31 May 2019 09:05 AM (IST)Updated: Fri, 31 May 2019 09:05 AM (IST)
वरदान की बजाए अभिशाप बनी तिरहुत नहर, सैकड़ों एकड़ जमीन बर्बाद
वरदान की बजाए अभिशाप बनी तिरहुत नहर, सैकड़ों एकड़ जमीन बर्बाद

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मुशहरी प्रखंड क्षेत्र से गुजरने वाली तिरहुत नहर वरदान की बजाए अभिशाप बन गई। जबकि इसकी खुदाई से लेकर ईंट सोलिंग तक अरबों रुपये खर्च किए गए। इतना ही नहीं, इसके लिए अधिग्रहित सैकड़ों एकड़ जमीन भी बर्बाद हो गई। 1970 के आसपास जब केंद्र में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार थी, उस वक्त इस कार्य को मंजूरी दी गई थी। इसके निर्माण का मुख्य उद्देश्य था कि नेपाल से आने वाले विनाशकारी जल को नहर के माध्यम से किसानों की खेत तक पहुंचाना। ताकि कृषि को अधिक लाभकारी बनाया जा सके। साथ ही भूगर्भ जल का स्तर बना रहे ताकि गर्मियों में कुआं व चापाकल के पानी का स्तर बना रहे।

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कार्य स्वीकृति के बाद स्थल पर हुआ था काफी विरोध

कार्य की स्वीकृति के बाद जब अभियंताओं की टीम आई तो कार्य का काफी विरोध हुआ। लोगों का कहना था कि बांध निर्माण के बाद मुशहरी प्रखंड का अधिकांश भाग बूढ़ी गंडक व तिरहुत नहर बांध के बीच आने से असुरक्षित हो जाएगा और तटबंध टूटने के बाद जानमाल की क्षति अधिक होगी। वहीं, जमीन की अधिक बर्बादी होगी। इसमें वैसे किसान अधिक थे जिन्हें बसने लायक ही जमीन थी। जिस समय यह कार्य शुरू हुआ उस अवधि में जयप्रकाश नारायण भी बिहार में ही थे। दिल्ली से आई टीम ने जेपी समर्थकों को काफी समझाया कि इसके निर्माण से भविष्य में काफी लाभ होगा।

खेतों तक नहीं पहुंचा पानी

खेतों की सिंचाई को लेकर निर्मित नहर बाद में अधिकारियों के लिए एटीएम का काम करने लगी। पुल बनाने से लेकर सोलिंग करने, ऊंचीकरण में अधिकारी लगे रहे। बावजूद नहर का पानी खेतों तक नहीं पहुंचाया गया। इससे इतर समस्या है कि सूखे के समय तो इसमें लेकिन कभी कभी अभिशाप भी बनता रहा है। इसकी मूल वजह यह है कि सूखा के समय इसमें पानी नहीं छोड़ा जाता है।

   जब जब नेपाल तरफ पानी का ओवरलोड होता है तो पानी छोड़ा जाता है जिस कारण जहां से यह नहर निकली है वहां से लेकर जिले के मुरौल प्रखंड के महमदपुर तक में दर्जनों जगह तटबंध टूटने से सैकड़ों एकड़ खेतों में लगी फसल बर्बाद करती है जिसका खामियाजा किसान भुगतते हैं जिन्हें कोई सरकार द्वारा इसके एवज में राहत तक नहीं मिलती है। हां, अधिकारियों की चांदी ही चांदी कटती है।

विरोध के बाद भी नहर निर्माण का दूसरा फेज फिर शुरू

इस नहर का दूसरा फेज फिर शुरू किया गया है जिसका समस्तीपुर से आगे तक विस्तार होगा। इसमें भी सैंकड़ों एकड़ जमीन बर्बाद होगी। इसे देखते हुए मुरौल के जनप्रतिनिधियों, तिमुल के पूर्व अध्यक्ष विरेन्द्र राय, मीरापुर के पूर्व मुखिया मोहनपुर आदि ने कई माह तक जन आंदोलन चलाया, लेकिन सरकार ने एक न सुनी और इस जन आंदोलन को कुचल दिया गया। इस मामले को अबसे पहले जितने भी सांसद व विधायक हुए, किसी ने नहीं उठाया और आमलोगों के वोट से जीत कर जाते रहे पटना दिल्ली। जनता के हित को किसी ने नहीं उठाया।

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