असमय ही काल कवलित हो गया पंडौल सूत मिल, हजारों लोग झेल रहे बेरोजगारी
1986 में पंडौल औद्योगिक क्षेत्र परिसर में हुई थी स्थापना। 2000 मार्च के आते-आते मिल बंद हो गई। मशीन के कीमती उपकरण की हो गई चोरी। सरकार नहीं कर रही बकाया राशि का भुगतान।
मधुबनी, [प्रदीप मंडल]। मधुबनी लोकसभा चुनाव की गर्मी धीरे-धीरे उपर की ओर है। ऐसे में पंडौल औद्योगिक केंद्र परिसर में खंडहर बने उद्योगों की चर्चा ना हो ये तो बेईमानी होगी। सरकार किसी की भी बने चुनाव कोई भी हो प्रखंड की कुछ समस्याएं ऐसी हैं जो दशकों से चुनावी भाषण में आकर्षण का केंद्र बन आम जनों को ठगने के काम आ रही है। ऐसे में पंडौल सूत मिल की समस्या जिससे आज हजारों बेरोजगारी झेल रहे हैं कि चर्चा जोरों पर है। मिल बंद होने से एक झटके में छह सौ कर्मी बेरोजगार हो गए।
पंडौल सूत मिल की स्थापना वर्ष 1986 में पंडौल औद्योगिक क्षेत्र में की गई थी। जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र व राजीव गांधी के छोटे भाई संजय गांधी के द्वारा किया गया था। किसी समय इस सूत मिल में 600 से अधिक कर्मी काम करते थे लेकिन वर्ष 2000 आते-आते मिल में महज 367 कर्मी रह गए थे। मार्च 2000 आते-आते मिल बंद हो गई। आज भी पंडौल सूत मिल को चालू होने की उम्मीद की ओर बुनकरों की टकटकी लगी है। वर्ष 2000 से यह मिल बंद पड़ा है। पंडौल औद्योगिक क्षेत्र परिसर में वर्ष 1986 में इस सूत मिल की स्थापना की गई थी।
मिल में करीब बीस करोड़ की लागत से नवीनतम तकनीक की मशीनें एवं आधारभूत संरचना यहां तैयार की गई थी। उत्पादन भी शुरू हुआ। अच्छी उपलब्धि एवं सही उत्पादन की चर्चा सर्वत्र होने लगी परन्तु विभागीय उदासीनता के कारण उत्पादन ठप होने से मिल बंद हो गया। प्रतिदिन की उत्पान क्षमता आठ क्विंटल प्रतिदिन थी। 25 हजार की स्पैंडल क्षमता रहने के बावजूद महज 14 हजार स्पैंडल क्षमता का ही उपयोग किया गया। मिल के कुछ कर्मियों की नौकरी का समायोजन दूसरी जगह कर ली गई। लेकिन दैनिक एवं स्थायी कर्मियों के समक्ष बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो गई।
ऐसे कर्मी रोजगार के तलाश में अन्यत्र पलायन कर गए। मिल के 300 मजदूरों व 30 कार्यालय कर्मियों के वर्ष 1991 के मार्च से वर्ष 1992 के नवंबर तक तथा नवंबर 1998 से मार्च 2000 तक के बकाए वेतन करीब एक करोड़ राशि का भुगतान वर्ष 2000 से लंबित है। वेतन भुगतान को लेकर मिल के कर्मियों द्वारा जिला उद्योग केन्द्र पर नाराजगी व्यक्त किया जाता रहा है। भुगतान को लेकर कर्मियों ने वर्ष 2015 में हाई कोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे जहां अभी भी मामला अधर में लटका हुआ है।
राज्यपाल के द्वारा मार्च 2018 में बकाया भुगतान का आदेश दिया जा चुका है परंतु पीएफ विभाग व उसके कर्मी किसी भी रिकार्ड के नहीं रहने का बहाना बना गरीबों को ठग रहे हैं। नतीजा जिस मिल के सूत विदेशों तक जाते थे आज वह स्वंय अपनी दुर्दशा पर रो रही है। सूत मिल की वर्तमान दशा पर उपेंद्र साह ने कहा की कभी बेरोजगारों को रोजगार देने वाली यह सूत मिल आज भूत बंगला बन कर रह गया है। राज्य व केन्द्र सरकार व नेताओं की सूची में यह एक चुनावी समस्या बनकर रह गई है।
पवन कुमार साह ने कहा की मिल में उत्पादन शुरू होने का लाभ यहां के बड़ी संख्या में बुनकरों को मिलेगा मिल बंद होने से बुनकरों को बाहर से सूत की खरीदारी करनी पड़ रही है। रामचंद कुमार ने कि इस मिल से रोजगार का एक अवसर प्राप्त हुआ जो असमय की कालकवलित तो गया। सुधाकर ने कहा कि असमय में बंद हो जाने से यहां के स्थानीय लोगों से रोजगार छीन लिया गया। यह राष्ट्रीय मुद्दा है। जिस पर कहीं भी आवाज हमारे जनप्रतिनिधि नहीं उठा पा रहे हैं।
मुखिया अरविंद कुमार उर्फ मुन्ना सिंह ने कहा कि सूत मिल के कर्मियों का भुगतान कर मिल को फिर से चालू किया जाए ताकि यहां के श्रमिकों को रोजगार मिल सके। समाजसेवी शितेशचंद्र झा ने कहा कि चुनाव के समय सभी दल के नेता अपने भाषणों में सूत मिल चालू करने व बकाया भूगतान की बात कहते रहे हैं लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हो सका है। उल्टे सूता मिल के सभी छोटे बड़े मशीन चोरी हो चुके हैं। अब महज वहां एक खंडहर ही बचा हुआ है।
कर्मी अरूण कुमार झा ने कहा कि मिल बंद होने के दो दशक बाद भी कर्मियों का बकाया नहीं मिला है । बेरोजगार हो चुके कर्मीयों की पारिवारीक हालत दयनीय हो चुकी है। कर्मी अमलकांत झा ने कहा कि राज्यपाल के द्वारा ज्ञापांक 17/15 दिनांक 14 मार्च 2018 के द्वारा कर्मियों के बकाया भुगतान करने का दिशा निर्देश दिया जा चुका है। परन्तु अब तक भुगतान नहीं हो सका है।