नेपाल में भारत विरोधी गतिविधियों को इस तरह हवा दे रहे हैं वहां के तथाकथित राष्ट्रवादी संगठन
कोरोना वायरस की चिंता के बीच नेपाल में कालापानी और लिपुलेख को लेकर चल रही तरह-तरह की चर्चाएं। सुगौली संधि के अनुसार बेतुका है विवाद।
पूर्वी चंपारण, जेएनएन। नेपाल में भारत विरोधी गतिविधियों को हवा देने के लिए इनदिनों भारत विरोधी संगठन सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। नेपाल भारत के कब्जेवाले कालापानी और मानसरोवर जाने वाले लिपुलेख मार्ग पर अचानक अपना अधिकार जताने लगा है। जिसे भारत विरोधी संगठन हवा देने में लगे हैं। यह सब कोरोना वायरस महामारी के बीच चल रहा है। जिसको लेकर विश्व समुदाय चिंतित है।
नेपाल ने अचानक भारत-नेपाल के बीच भूमि विवाद का राग अलापना शुरू कर दिया है। जिसे दोनों देशों के संबंध पर असर पड़ने लगा है। सीमावर्ती क्षेत्र के प्रबुद्ध लोग इस पर सवाल उठाने लगे हैं। भारत ने दो साल पहले सड़क निर्माण कार्य शुरू किया था। सड़क का उद्घाघाटन करीब सात माह पूर्व हुआ। इस बीच नेपाल या चीन ने कोई आपत्ति नहीं की। इसी सवाल ने नेपाल की ओली सरकार को कठघरे में ला दिया है। इस संबंध में सीमावर्ती क्षेत्र के नेपाल मामलों के जानकर लोगों से दैनिक जागरण से अपनी बात साझा की।
वर्तमान विवाद बिल्कुल बेतुका
प्रो. डॉ. अनिल कुमार सिन्हा का कहना है कि भारत नेपाल का संबंध कोई नया नहीं है। सदियों से चले आ रहे संबंधों में खटास डालने का कुत्सित प्रयास लंबे समय से नेपाल में हो रहा है। लेकिन, वैसे प्रयासों को कभी भी सफलता नहीं मिली और न ही मिलेगी। सुगौली संधि के अनुसार कालापानी क्षेत्र के पास उठा विवाद बिल्कुल ही बेतुका है। वह क्षेत्र भारत का सदैव रहा है। जिस सड़क निर्माण को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है, वह कोई एक दिन में नहीं बनी है। नेपाल में न ही औपचारिक और न ही अनौपचारिक विरोध किया। सड़क जब बनकर तैयार हो गई और उसका उद्घाटन हो गया तो नेपाल आगे आकर विरोध करने लगे। यह क्या दर्शाता है? उस क्षेत्र में चीन का वर्चस्व सदैव से रहा है और भारत की उभरती शक्ति को देखकर वे बेचैन हो उठे हैं।
नेपाल को उकसा रहा चीन
वहीं, जदयू के रक्सौल नगर अध्यक्ष सुरेश कुमार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार स्वयं चीन विरोध करने में असमर्थ था। इसलिए उसने नेपाल में सत्तासीन भारत विरोधी शक्ति को उभार कर उकसा रहा है। इसका परिणाम है यह विरोध। नेपाल के सत्तासीन दल की मानसिक एवं व्यवाहारिक गतिविधियां सब को ज्ञात हैं। उनका चीन के प्रति झुकाव भी किसी से छिपा नहीं है। नेपाल में विगत दो दशकों से भारत विरोधी वातावरण बनाने का सतत प्रयास चलता रहा है। सड़क निर्माण भारतीय भूभाग का भाग विवाद रहित रहा है। नेपाल में इसके विरोध में उठ रहे आवाज से हम भारतीय स्तब्ध हैं। नेपाल चीन का मोहरा बन रहा है जो उसके हित में नहीं है।
पूरा प्रकरण चीन प्रायोजित
युवा समाज सेवी सह निदेशक भारती पब्लिक स्कूल प्रो.मनीष दुबे का मानना है कि सड़क निर्माण को लेकर सोशल साइट पर चल रही बात भारत विरोधी है और अत्यंत ही दुखदाई है। यह पूरा वातावरण चीन प्रायोजित है। नेपाल सरकार की गैर जिम्मेदाराना हरकत कहीं न कहीं आग में घी डालने का काम कर रही है। नेपाल सरकार जिस विषय पर आज आवाज उठा रही है वह विवाद रहित रहा है। भारत सरकार से कभी भी उसने इस विषय पर चर्चा तक नहीं की। लेकिन, जब चाइना को लगा कि भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है तो उसके उकसाने पर नेपाल आज सदियों पुराने संबंध में बट्टा लगाने का काम कर रहा है। नेपाल के अंदर लंबे समय से भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं जो मूलतः चीन के द्वारा निर्देशित हैं। आज पुनः वह शक्ति इस विषय को उठाकर भारत के विरोध में एक भावना खड़ा करना चाह रही है। यह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। कृत्रिम राष्ट्रवाद का नारा देकर लोगों को भारत के विरोध में खड़ा किया जा रहा है । जो नेपाल के हित में कतई नहीं है। लंबे समय से पहाड़ों पर रहने वाले भोले भाले नागरिकों को भड़का कर भारत के विरुद्ध खड़ा किया जा रहा है।
विवाद का सामने आना दुखद
डॉ. स्वयंभू शलभ कहते हैं कि पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है। अभी हर देश के आगे अपने नागरिकों के जीवन की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है। ऐसे संकट के समय में भारत और नेपाल के बीच सीमा से जुड़े विषय का एक विवाद के रूप में सामने आना दुखद है। भारत हमेशा ही नेपाल के साथ एक अग्रज की भूमिका निभाता रहा है। नेपाल के विकास से लेकर वहां की जनता के हर सुख दुःख में भारत बराबर का सहभागी रहा है। लिपुलेख पर नक्शे को लेकर जो भी मतभेद सामने आया है, मुझे आशा है कि कोरोना संकट से उबरने के बाद दोनों देश आपसी समझदारी से इसका सौहार्दपूर्ण हल निकाल लेंगे। जो भी गलतफहमी है वह दूर हो जाएगी। दोनों देश के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच पूर्व की संधि का आधार भी है।