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नई शिक्षा नीति की सच्चाई और मंशा में खासा अंतर

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 पूरी तरह शिक्षक शिक्षा एवं जन विरोधी है। इस देश में बड़े बड़े शिक्षक संगठनों एवं शिक्षाविदों के होते हुए किसी को भी ड्राफ्ट कमेटी में शामिल नहीं किया गया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 01:59 AM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 06:11 AM (IST)
नई शिक्षा नीति की सच्चाई और मंशा में खासा अंतर
नई शिक्षा नीति की सच्चाई और मंशा में खासा अंतर

मुजफ्फरपुर। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 पूरी तरह शिक्षक, शिक्षा एवं जन विरोधी है। इस देश में बड़े बड़े शिक्षक संगठनों एवं शिक्षाविदों के होते हुए किसी को भी ड्राफ्ट कमेटी में शामिल नहीं किया गया। इस तरह मनमाने तरीके से नई शिक्षा नीति तैयार की गई। ये बातें ई देवाशीष राय ने कही। वे आज प्रगतिशील शिक्षक संघ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कहा कि वास्तव में भारत के गौरवशाली इतिहास को बढ़ावा देने के नाम पर प्रतिक्रियावादी परंपरा को लागू करना चाहती है।

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परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए बीआरए बिहार विवि के पूर्व कुलपति डॉ. रवींद्र कुमार रवि ने कहा कि शिक्षा, संस्कृति, नीति नैतिकता मूल्यबोध अपने समय के अर्थव्यवस्था का ऊपरी ढांचा होता है। इसमें किसी को अलग नहीं किया जा सकता है।

विषय प्रवेश रिटायर्ड प्रधानाध्यापक डॉ. हरेराम महतो ने किया। सेमिनार की अध्यक्षता डॉ. विजय कुमार जायसवाल ने की। संचालन प्रगतिशील शिक्षक संघ के महासचिव रामप्रीत राय ने किया। वरीय शिक्षक कन्हैया मिश्र ने धन्यवाद दिया। मौके पर प्रो. अरुण कुमार सिंह, एमएलसी डॉ. संजय कुमार सिंह, एलएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ. ओपी राय, एमडीडीएम की प्राचार्य डॉ. ममता रानी, शिक्षक नेता नागेश्वर प्रसाद सिंह, साहित्यकार बी. ठाकुर समेत अन्य ने अपने विचार व्यक्त किए। सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह गया दर्शनशास्त्र : प्रो.राजेश बीएन कॉलेज, पटना के दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो.राजेश कुमार ने कहा कि आज दर्शनशास्त्र विषय सिर्फ किताबों तक ही सीमित रह गया है। यह विडंबना ही है कि कुछ अशिक्षित व्यक्ति ज्यादा सफल और स्वावलंबी हैं। उनमें आत्मविश्वास भी है। दूसरी ओर शिक्षित व्यक्ति को अगर नौकरी नहीं मिली तो वह किसी काम का नहीं माना जाता है। प्रो.राजेश रविवार को आरके मिशन सेवाश्रम, बेला में 'दार्शनिक क्रिया एवं व्यावसायिक कुशलता' विषय पर बोल रहे थे। कहा कि कोई व्यक्ति केवल धन का उपार्जन कर लेने मात्र से ही सुखी नहीं हो सकता। धन का किस प्रकार उपयोग हो, इसका मूल्य बोध भी होना आवश्यक है। बताया कि बदलते समय के अनुसार हमें अपने सिलेबस को इस ढंग से तैयार करना होगा, जो वर्तमान की चुनौतियों से जुड़ा हुआ हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी भावात्मानंद ने की। मौके पर प्रो.उमेश श्रीवास्तव, हजारी प्रसाद सिंह, विक्रम, देवेंद्र कुमार, सुधीर महाराज, तरुण, केशव, देवेंद्र पांडेय, शुभम आदि भी थे।


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