Lockdown effect : महानगरों से गांव लौटे युवाओं ने फल और सब्जी बेचने से रोजगार की शुरुआत की
Lockdown effect लॉकडाउन ने तोड़ा भ्रम भाने लगी गांव की मिट्टी। गांव में ही मेहनत की रोटी की व्यवस्था करने में जुटे।
मुजफ्फरपुर, [राजेश रंजन]। लॉकडाउन के चलते नौकरी छोड़ महानगर से गांव लौटे युवा और बेरोजगारों को अपने गांव की माटी की खुशबू भाने लगी है। महानगरों की बदहाल स्थिति का सामना कर मीलों की दूरी तय कर गांव लौटे युवा और मजदूरों ने गांव में ही मेहनत की रोटी खाने की ठान ली है। इसकी शुरुआत भी कर दी है। अब गांव के युवा व मजदूर ठेले पर सब्जी और फल लाद कर बेच रहे हैं। यही इनकी आजीविका का जरिया है। युवाओं की यह पहल आसपास के इलाके के प्रवासियों के लिए नजीर बन गई है। यह तस्वीर है मड़वन प्रखंड के मकदुमपुर कोदरिया गांव की।
गांव नही छोडऩे की शपथ
मकदुमपुर कोदरिया इस समय प्रवासियों के आने से गुलजार हो गया है। गांव में पहले इक्के-इक्के लोग दिखाई देते थे। अब यहां चौपाल भी लग रहा है। गुजरात से साइकिल पर सवार होकर घर पहुंचे फरजान, सुल्तान व इरफान तथा ट्रक पर सवार होकर लौटे मो. अली राज व मो. रफी भूल कर भी परदेस का नाम नहीं लेना चाहते। गुजरात में स्पोर्ट्स व पंचर की दुकान चलाने वाले ये लोग अब गांव में ही रहकर कुछ करना चाहते हैं। ठेला लेकर सब्जी व फल की दुकान शुरू कर दिया है। अब इससे ही गुजारा चल रहा है।
गांव में भी मिल सकी इज्जत की रोटी
गुजरात से लौटे मो. शमसुल व मो. वकील व दिल्ली से आए अनवर अपनी फैक्ट्री चलाते थे। कांति देवी व सरिता देवी अपने पति के साथ केरल में रहती थी। कहते हैं कि परदेस में नौकरी का भ्रम अब टूट गया है। वयोवृद्ध मो. इस्लाम कहते हैं कि मैं कभी परदेस नहीं गया। गांव में ही रह कर मेहनत मजदूरी कर बच्चों की परवरिश की। यहां भी काफी संभावना है। मो. असलम कहते हैं कौन कहता है कि गांव में रोजगार नहीं है अगर इच्छा शक्ति हो तो गांव में रहकर ही इज्जत की रोटी मिल सकती है।
हुनर को पहचानें
शीला देवी कहती हैं कि जहां चाह है वहां राह है। अगर हम चाहें तो परदेस से अच्छी कमाई अपने गांव में कर सकते हैं। यहां भी रोजगार के काफी अवसर हैं। लोग गांव में रह कर स्वरोजगार करें और यही अपना जीविकोपार्जन करें। वहीं ताज गुलाम का मानना है कि आदमी अगर अपने हुनर को पहचान ले तो अपने गांव में भी रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। गांव में ही रोजगार कर अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। साथ ही परिवार का भी बेहतर तरीके से भरण पोषण किया जा सकता है।