बिहार के इस सेवानिवृत्त शिक्षक की अलग थी सोच, दिवंगत माता-पिता व धर्मपत्नी की याद में बनवाया मंदिर, उनकी मूर्तियों की रोज होती है पूजा
समस्तीपुर जिले के विभूतिपुर प्रखंड अंतर्गत मिश्रौलिया गांव निवासी दयानंद महतो ने अपने दिवंगत माता-पिता को दिया देवी-देवता का दर्जा। उनके साथ अर्द्धांगिनी की भी प्रेम भरी स्मृति में उनकी मूर्तियों की पूजा की पारिवारिक परंपरा शुरू की।
समस्तीपुर, [विनय भूषण]। जिले के विभूतिपुर प्रखंड अंतर्गत मिश्रौलिया गांव निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक दयानंद महतो का अपने माता-पिता प्रति ऐसी श्रद्धा रही कि उन्हेंं हीं देवी-देवता मान लिया। साथ ही धर्मपत्नी के प्रति भी अगाध प्रेम रहा। उन तीनों के निधनोपरांत दयानंद ने तीन कट्ठा जमीन खरीदकर मंदिर का निर्माण करवाया। उसमें राजस्थान के जोधपुर से माता-पिता की ग्रेनाइट की प्रतिमा बनवाकर स्थापित की और पूजा-अर्चना करने लगे। दयानंद अब खुद भी इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनके वंशज आज भी उस परंपरा का पूरी निष्ठा से निर्वाह कर रहे हैं। अब इस मंदिर में उनका तैलचित्र भी लगाया जा चुका है। दूर-दराज से लोग इस मंदिर को देखने के लिए पहुंचते हैं।
सुबह-शाम मंदिर में होती आरती
इस मंदिर में सुबह-शाम आरती बदस्तूर जारी है। पर्व-त्योहारों के अवसर पर दोनों मूर्तियों को नए कपड़े पहनाना, पुण्यतिथि पर विशेष आयोजन करना भी परिवारजन नहीं भूलते।
माता-पिता का प्रेम और पत्नी की यादें
दयानंद वर्ष 2003 में सेवानिवृत्त हुए थे। उनकी माता पानवती देवी का वर्ष 1987, पिता दात्तू महतो का वर्ष 1996 और पत्नी सावित्रि देवी का वर्ष 2010 में निधन हो गया। उसके उपरांत वर्ष 2011 में उन्होंने मंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिमाएं स्थापित करवाईं। 26 नवंबर 2019 दयानंद का भी निधन हो गया।
मंदिर में तीन मूर्तियां और एक तैलचित्र
इस मंदिर में ग्रेनाइट की तीन मूर्तियां स्थापित हैं। यह दिवंगत दयानंद महतो के माता-पिता और उनकी पत्नी की है। जबकि, मंदिर में दयानंद महतो का तैलचित्र भी रखा है, जिसे उनके निधनोपरांत उनके पुत्रों ने मंदिर में प्रतिमाओं के साथ श्रद्धापूर्वक रखा।
घर की बहू करती हैं नियमित पूजा
दिवंगत दयानंद महतो के चार पुत्र हैं। बड़े पुत्र सुशील कुमार सिल्चर में डाक अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं। सुनील कुमार सेना में मेजर के पद से रिटायर्ड, सुरेन्द्र कुमार सरकारी शिक्षक और सुधीर कुमार प्रभाकर पोस्ट मास्टर हैं। यूं तो सभी पारिवारिक सदस्य मंदिर के पुजारी हैं। लेकिन, गांव में नियमित रह रहे शिक्षक सुरेन्द्र कुमार की पत्नी किरण कुमारी पुजारन की मुख्य भूमिका में हैं। बच्चों में पूजा, पम्मी, गौरव और उज्ज्वल समेत स्वजन कहते हैं कि पुरखों से प्राप्त ज्ञान और संस्कारों ने परिवार को बहुत कुछ दिया है। मंदिर के भीतर प्रवेश करने के बाद शांति की अनुभूति होती है। ऐसा लगता है कि दुनिया छोड़ गए अभिभावक अब भी उनके साथ हैं। जनता महाविद्यालय सिंघिया बुजुर्ग के पूर्व संस्थापक प्राचार्य राम बहादुर सिंह कहते हैं कि इस मंदिर का संदेश व्यापक स्तर पर है। इससे प्रेरणा पाकर सभी व्यक्ति को अपने बुजुर्ग माता-पिता के प्रति सम्मान भाव रखना चाहिए।