सरकारी चादरपोशी की हुई रस्म अदा, नगर निगम की भी हुई चादरपोशी Muzaffarpur News
नगर थानाध्यक्ष ने गद्दीनशीं को सौंपी चादर नहीं शामिल हुए एसएसपी व अन्य अधिकारी। मेयर के नेतृत्व में निकला चादर शामिल हुए मेयर-उप मेयर ।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। हजरत दाता असगर अली खान उर्फ दाता कंबल शाह का सालाना उर्स का उमंग भी कोरोना वायरस की भेंट चढ़ी। उर्स पर आकर्षण का केंद्र रहने वाला सरकारी चादरपोशी भी लॉक डाउन की भेट चढ़ी। इसकी औपचारिक रस्म अदा की गई। नगर थानाध्यक्ष ओम प्रकाश पुलिस बल के साथ आकर सरकारी चादर मजार के गद्दीनशीं मौलाना निजामुद्दीन रजा खां को सौंपा। गद्दीनशीं द्वारा इसे मजार पर चढ़ाया गया। काजी मोहम्मदपुर व मिठनपुरा थाना प्रभारी के अलावा जिला शांति समिति सदस्य तनवीर आलम, डा.एम.राजू नैयर, रेयाज अंसारी, मो. चांद, मो. इकबाल आदि ने कोरोना वायरस के कहर से हिंदुस्तान व पूरे देश की सलामती की दुआ की।
मेयर के नेतृत्व में निकला चादर, शामिल हुए मेयर-उप मेयर
नगर निगम की ओर से भी चादरपोशी की रस्म अदा की गई। निगम के कर्मियों ने भी गद्दीनशीं को चादर सौंपी। इससे पूर्व नगर निगम से मेयर सुरेश कुमार, उप मेयर मानमर्दन शुक्ला आदि ने चादर को रवाना किया।
एसएसपी के नेतृत्व में चादरपोशी की है परंपरा
हर वर्ष नगर थाने से एसएसपी के नेतृत्व में गाजे-बाजे संग चादर जुलूस निकाला जाता रहा है। इसमें जिलाधिकारी के साथ ही प्रशासन व पुलिस के कई वरीय अधिकारी शामिल होते रहे हैं। कोरोना वायरस को लेकर किये गए लॉक डाउन में मजार बंद करने के सरकारी आदेश की वजह से इस बार चादर जुलूस की रौनक खत्म हो गई। पुलिस-प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा चादर लेकर मजार पर पहुंचने के दृश्य को देखने की हसरत इस बार पूरी नहीं हो सकी। इससे पूर्व नगर निगम एवं जेल प्रशासन द्वारा भी चादर गद्दीनशीं को सौंपी गई।
1903 में शुरु हुई सरकारी चादरपोशी की परम्परा
ए सी मान्यता है कि एक बार दाता शाह नगर थाने के समीप सड़क पर पेशाब कर रहे थे। उसी समय अंग्रेज लार्ड की सवारी आ गई। लार्ड ने दाता पर कोड़े चलाए मगर उसका हाथ हवा में ही उठा रह गया। बाद में दाता ने सरकारी कुत्ते-विदेशी डॉग कहते हुए कहा कि अपने देश की हिफाजत कर नहीं सकते, हमारे देश पर हुकूमत करने आये हो। उनके यह कहने पर कि इंग्लैंड सचिवालय में लगी भीषण आग को मैं पेशाब से बुझा रहा हूं।
लार्ड ने जब अपने वतन सम्पर्क साधा तो उसे बताया गया कि भीषण आग बुझाने को पानी की मोटी धार घूम-घूम कर बुझा रही है। पानी कहां से आ रहा है, इसका पता नहीं चल रहा है। इतना ही नहीं बाद में दाता के आर्शीवाद से उसे संतान रत्न की भी प्राप्ति हुई। इसके बाद लार्ड दंपत्ति दाता के मुरीद हो गये। 1903 में दाता के इंतकाल के बाद चेहल्लूम के मौके पर अंग्रेज दंपत्ति ने चादरपोशी की। इसके बाद से यह अनिवार्य कर दिया गया कि जो भी जिले का एसपी होगा, उसकी ओर से उर्स के मौके पर चादरपोशी की जाएगी। उस समय इसके लिए सरकारी फंड से 80 रुपए तय किये गये।