वैशाली व मुजफ्फरपुर में एनडीए की जीत से बदलेगी जिले की सियासी फिजां
अगले विधानसभा चुनाव में राजद पर बढ़ेगा और दबाव। इस पार्टी के सर्वाधिक विधायक होने पर भी कहीं नहीं दिखा दबदबा। नतीजे आए तो सारे समीकरण व अटकलें ध्वस्त हो गए।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मतदान से पूर्व वैशाली लोकसभा सीट पर चुनावी पंडित कांटे की टक्कर मान रहे थे। मगर, जब नतीजे आए तो सारे समीकरण व अटकलें ध्वस्त हो गए। लोजपा की वीणा देवी ने उन विधानसभा क्षेत्रों में भी डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह को पछाड़ा जहां राजद के विधायक हैं। बरूराज और साहेबगंज में अंतर 40 हजार। वहीं मीनापुर में वीणा को 32 हजार की लीड मिली। इस परिणाम से अगले विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से राजद पर दबाव बढ़ेगा। साथ ही जिले की राजनीतिक फिजा भी बदल जाएगी। क्योंकि जिले के एक राजद विधायक पहले से पार्टी की लाइन से अलग बयान देते रहे हैं।
वे विधानसभा चुनाव में पार्टी छोड़कर एनडीए के बैनर तले मैदान में उतर जाएं तो आश्चर्य नहीं। वहीं राजद के ही एक अन्य विधायक का जदयू से नाता रहा है। इस क्षेत्र से भी राजद प्रत्याशी डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह को बढ़त नहीं मिल सकी। ये भी अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में पाला बदल सकते हैं। वहीं कांटी से निर्दलीय विधायक अशोक कुमार चौधरी की जदयू से नजदीकी जगजाहिर हो चुकी है। वे विधानसभा का चुनाव सकरा से भी लडऩे की तैयारी कर रहे। कांटी के पूर्व विधायक व मंत्री अजित कुमार महागठबंधन को लेकर हम से पहले से नाराज चल रहे। उनकी भी अगली रणनीति यहां की राजनीति पर असर डाल सकती है।
इतना ही नहीं जिले की राजनीति में अपना वर्चस्व रखने वाले कई नेताओं ने वीणा देवी के लोजपा प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध किया था। चुनाव प्रचार के दौरान वे खुलकर एनडीए प्रत्याशी का विरोध करते रहे। माना जा रहा कि ये नेता पार्टी की कार्रवाई की जद में आ सकते हैं। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में गायघाट विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारने के बाद चार वर्षों तक राजनीति में अपनी भूमिका की तलाश कर रहीं वीणा संसद पहुंच गई हैं। अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में वे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
मुजफ्फरपुर लोकसभा चुनाव में स्वजातीय दो नेताओं में संघर्ष दिखा। कारण, यहां की राजनीति में निषाद की भूमिका हमेशा रही है। राज्य की तीन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार देने वाली वीआइपी को एक जगह भी सफलता नहीं मिली। यहां तक कि खगडिय़ा से पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी को भी पराजय झेलनी पड़ी। वहीं अजय निषाद ने बड़ी जीत दर्ज की। कैप्टन जयनारायण के बाद निषाद समाज किन्हें अपना नेता मान रहे यह भी स्पष्ट हो चुका है। अगले विधानसभा चुनाव में इसका भी असर दिखाई पड़ेगा।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप