संस्कृत विवि के पंचांग का शुरू हो गया नया साल, इस वजह से अब तक नहीं हो सका प्रकाशन
सावन से लेकर आषाढ़ तक कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पंचांग की होती है तिथि। 30 जून तक हो जाता था प्रकाशन इस बार स्थायी कुलपति नहीं होने के चलते हुई परेशानी।
दरभंगा, [राघव झा]। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पंचांग का प्रकाशन अभी तक नहीं हो सका है। जबकि, पिछले साल के पंचांग की उपयोगिता आषाढ़ तक ही थी। सावन से नए की शुरुआत हो जानी चाहिए। पंचांग छपकर नहीं आने से इसके सहारे पर्व-त्योहार की जानकारी लेने के साथ उपयोग करने वाले पंडितों में निराशा है। संस्कृत विवि के पंचांग के प्रकाशन की शुरुआत वर्ष 1978-79 में हुई थी। हर साल 30 जून तक प्रकाशन हो जाता था। पिछले वर्ष 70 हजार पंचांग का प्रकाशन हुआ था। इसकी कीमत 70 रुपये प्रति पंंचांग थी। इस बार इसकी कीमत 80 रुपये होगी। प्रकाशन का जिम्मा विवि ने जिस बालाजी प्रेस को दिया है, उसने 31 जुलाई तक उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है। इसके बाद यह बाजार में उपलब्ध होगा। यह पहली बार होगा, जब तय समय के बाद पंचांग लोगों तक पहुंचेगा।
इस कारण हुई देरी
पंचांग की छपाई में देरी का कारण स्थायी कुलपति का नहीं होना है। यहां दो मई से कुलपति का प्रभार डॉ. राजेश सिंह के पास है। नई निविदा व वित्तीय अधिकार नहीं होने से पंचांग को लेकर कोई निर्णय नहीं हो सका। बाद में ्रप्रभारी कुलपति ने राजभवन से निर्देश लेकर पंचांग प्रकाशन पर पहल की।
मिथिला समेत पूरे देश में विवि पंचांग की अपनी अलग पहचान : विवि पंचांग की मिथिला समेत पूरे देश में अलग ही पहचान है। जहां भी मिथिला के लोग रहते हैं, वे यह पंचांग अवश्य खरीदते हैं। मिथिला में व्रत, त्योहार, मुहूर्त आदि इस पंचांग के अनुसार ही तय किया जाता है।
पंडित शुभ काम के लिए तिथि तय नहीं कर पा रहे
डॉ. रामचंद्र झा कहते हैं कि विश्वविद्यालय के पंचांग में मिथिला परंपरा के तहत शुभ मुहूर्त का समावेश किया जाता है। इसके तहत विवाह, उपनयन, पूजा-पाठ के लिए शुभ दिन, मुंडन व अन्य शुभ कार्यों की तिथि निर्धारित की जाती है। इस पंचांग का प्रकाशन नहीं होने से पंडित शुभ काम के लिए तिथि तय नहीं कर पा रहे हैं। पूर्व कुलपति डॉ. सर्वनारायण झा कहते हैं कि जबतक विश्वविद्यालय पंचांग का प्रकाशन नहीं हुआ है, तबतक इसके दो-चार पेज विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर डाल देनी चाहिए। इससे लोगों को तिथि व मुहूर्त के बारे में जानकारी मिल जाएगी।
31 जुलाई तक पंचांग का प्रकाशन हो जाएगा
कुलानुशासक श्रीपति त्रिपाठी कहते हैं कि विश्वविद्यालय पंचांग का प्रकाशन मिथिला परंपरा का आधार मानकर किया जाता है। इसके लिए अलग-अलग पंचांग का प्रकाशन करने वाले पंडितों को विश्वविद्यालय में एकसाथ लाकर शास्त्र के अनुसार तिथि निर्धारित तय की जाती है। ताकि एकरूपता बनी रहे।
प्रभारी कुलपति डॉ. राजेश सिंह ने कहा कि पंचांग के प्रकाशन में कुछ दिक्कतें थीं, जो दूर कर ली गई हैं। 31 जुलाई तक विश्वविद्यालय पंचांग का प्रकाशन हो जाएगा।