अभिव्यक्ति की सहजता जिस भाषा में हो, वह मातृभाषा
अभिव्यक्ति की सहजता जिस भाषा में हो, वह मातृभाषा है।
मुजफ्फरपुर । अभिव्यक्ति की सहजता जिस भाषा में हो, वह मातृभाषा है। अपने देश में मातृभाषा की स्थिति यह हो गई कि उसका दिवस विशेष मनाना पड़ रहा है। संवैधानिक प्रावधान और जमीनी सच्चाई में फर्क तब नजर आता है, जब विभिन्न क्षेत्रों में ¨हदी भाषा की स्थिति का आकलन करते हैं। सिर्फ दिवस मनाने भर से कुछ नहीं होगा। बीबी कॉलेजिएट के प्लस टू के ¨हदी शिक्षक डॉ. चितरंजन कुमार कहते हैं कि भाषा का प्रश्न हमारे अस्तित्व से जुड़ा है। हमारा अस्तित्व अभिव्यक्ति की मांग करता है। मातृभाषा जहां एक ओर हमें अपने परिवेश से अवगत कराती है। वहीं, दूसरी ओर हमारे अंदर संज्ञानात्मक क्षमता का विकास भी करती है। भारतीय परिदृश्य में भाषा को लेकर विमर्श करें तो संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं, जिसमें ¨हदी भी एक है। भाषा के विकास के विकास क्रम के दौरान ही यह महसूस कर लिया गया था कि ¨हदी भारत वर्ष को एक सूत्र में बांध सकती है। बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का कहना है कि 'राष्ट्रीय एकता की कड़ी को ¨हदी ही जोड़ सकती है।' नलिन विलोचन शर्मा कहते हैं कि 'भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा ¨हदी है।' वास्तव में भाषा का संबंध हमारी आत्मा से आत्मा में बसे उस प्रेम से है जिसमें हम अक्षुण्ण बनाए रखना चाहते हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा था 'भाषा का निर्माण सचिवालय में नहीं होता, भाषा गढ़ी जाती है जनता की जिह्वा पर जनता के दिल में।' भारतीय आजादी के साथ भाषायी वर्चस्व बढ़ने की शंकाओं के कारण ही ¨हदी भाषा का संवैधानिक प्रावधान किया गया।