अनपढ़ मां ने समझा शिक्षा का महत्व, तभी तो मजदूरी कर बेटे को बना दिया वर्दीवाला
पश्चिम चंपारण के रामनगर प्रखंड की सुदामा देवी ने पति की मौत के बाद किसी ने नहीं दिया साथ तो घर की देहरी लांघ किया संघर्ष।
By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 10:40 AM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 10:40 AM (IST)
प.चंपारण, [विभोर कुमार]। एक मां ने अनपढ़ होने के बाद भी शिक्षा का महत्व समझा। तभी तो पति की मौत के बाद मजदूरी कर घर चलाने के साथ पांच बच्चों को पढ़ाया। इसका फल भी मिला। बेटियों की शादी हो चुकी है। एक बेटा बिहार पुलिस की वर्दी पहन नौकरी पा चुका है। ये हैं रामनगर प्रखंड के बकवा गांव की सुदामा देवी। गांव के लोग आज उनकी मिसाल देते हैं।
शादी के सात वर्ष बाद पति चंद्रिका राम अचानक दुनिया से रुखसत हुए तो सुदामा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। तीन बेटियों और दो बेटों की परवरिश की जिम्मेदारी आ पड़ी। बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया। घर में सिमटी रहने वाली सुदामा ने बाहर कदम रखा और बच्चों के लिए मजदूरी शुरू की। पूरे दिन दूसरों के खेतों पर पसीना बहातीं। उससे जो आमदनी होती, बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध होता।
निरक्षर होने के बाद भी उन्होंने शिक्षा का महत्व समझा। सभी बच्चों का नामांकन एक स्कूल में कराया। सुबह बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरे दिन कड़ी मेहनत करतीं। उनकी परवरिश की ही देन है कि एक बेटा बिहार पुलिस में नौकरी कर रहा। तीनों बेटियों का विवाह हो चुका है। सुदामा अपने बेटों के साथ रहती हैं। अब मजदूरी नहीं करनी पड़ती। बेटे मां को आदर्श मानते हैं।
ससुराल और मायके वालों ने मोड़ लिया मुंह
सुदामा कहती हैं, बचपन गरीबी में बीती। परिवार में शिक्षा का माहौल नहीं था, इसलिए पढ़ नहीं पाई। कम उम्र में ही शादी हो गई। पति के घर आई तो झोपड़ी में ही स्वर्ग जैसा सुख मिलता था। अचानक पति की तबीयत खराब हुई तो रुपये के अभाव में ठीक से इलाज नहीं हो सका। एक दिन वे दुनिया छोड़कर चले गए। सास-ससुर समेत परिवार के किसी भी सदस्य ने साथ नहीं दिया। मायके वालों ने भी मुंह मोड़ लिया। तब मैंने तय किया कि बच्चों की बेहतर परवरिश करूंगी। खेतों में काम किया। दूसरों के घर बर्तन धोया। उनकी पढ़ाई के लिए अपनी खुशी त्याग दी।
लोगों के तानों ने दी आगे बढऩे की हिम्मत
पति की मौत के बाद लोग ताने कसते थे। तरह-तरह की बातें करते। कहते थे, बच्चों को अफसर बनाने चली है। घर आकर खूब रोती थी। लोगों के तानों ने हिम्मत दी। बड़े बेटे कोशिला ने मैट्रिक के बाद राजमिस्त्री का काम सीखा। उसके बाद काम का बोझ कम हुआ। तीनों बेटियों को मैट्रिक तक पढ़ाया। छोटे बेटे संजय ने इंटर तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद तैयारी शुरूकी। महीनों की मेहनत के बाद हाल ही में उसका चयन बिहार पुलिस में हुआ। संजय कहता है कि मां के त्याग और बलिदान की बदौलत वह इस मुकाम पर है।
एसडीपीओ रामनगर रणधीर कुमार ङ्क्षसह का कहना है कि कठिन दौर में सुदामा ने जो हिम्मत दिखाई उससे सफलता मिली। अन्य लोगों को उससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
शादी के सात वर्ष बाद पति चंद्रिका राम अचानक दुनिया से रुखसत हुए तो सुदामा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। तीन बेटियों और दो बेटों की परवरिश की जिम्मेदारी आ पड़ी। बच्चों का पेट भरना मुश्किल हो गया। घर में सिमटी रहने वाली सुदामा ने बाहर कदम रखा और बच्चों के लिए मजदूरी शुरू की। पूरे दिन दूसरों के खेतों पर पसीना बहातीं। उससे जो आमदनी होती, बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध होता।
निरक्षर होने के बाद भी उन्होंने शिक्षा का महत्व समझा। सभी बच्चों का नामांकन एक स्कूल में कराया। सुबह बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरे दिन कड़ी मेहनत करतीं। उनकी परवरिश की ही देन है कि एक बेटा बिहार पुलिस में नौकरी कर रहा। तीनों बेटियों का विवाह हो चुका है। सुदामा अपने बेटों के साथ रहती हैं। अब मजदूरी नहीं करनी पड़ती। बेटे मां को आदर्श मानते हैं।
ससुराल और मायके वालों ने मोड़ लिया मुंह
सुदामा कहती हैं, बचपन गरीबी में बीती। परिवार में शिक्षा का माहौल नहीं था, इसलिए पढ़ नहीं पाई। कम उम्र में ही शादी हो गई। पति के घर आई तो झोपड़ी में ही स्वर्ग जैसा सुख मिलता था। अचानक पति की तबीयत खराब हुई तो रुपये के अभाव में ठीक से इलाज नहीं हो सका। एक दिन वे दुनिया छोड़कर चले गए। सास-ससुर समेत परिवार के किसी भी सदस्य ने साथ नहीं दिया। मायके वालों ने भी मुंह मोड़ लिया। तब मैंने तय किया कि बच्चों की बेहतर परवरिश करूंगी। खेतों में काम किया। दूसरों के घर बर्तन धोया। उनकी पढ़ाई के लिए अपनी खुशी त्याग दी।
लोगों के तानों ने दी आगे बढऩे की हिम्मत
पति की मौत के बाद लोग ताने कसते थे। तरह-तरह की बातें करते। कहते थे, बच्चों को अफसर बनाने चली है। घर आकर खूब रोती थी। लोगों के तानों ने हिम्मत दी। बड़े बेटे कोशिला ने मैट्रिक के बाद राजमिस्त्री का काम सीखा। उसके बाद काम का बोझ कम हुआ। तीनों बेटियों को मैट्रिक तक पढ़ाया। छोटे बेटे संजय ने इंटर तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद तैयारी शुरूकी। महीनों की मेहनत के बाद हाल ही में उसका चयन बिहार पुलिस में हुआ। संजय कहता है कि मां के त्याग और बलिदान की बदौलत वह इस मुकाम पर है।
एसडीपीओ रामनगर रणधीर कुमार ङ्क्षसह का कहना है कि कठिन दौर में सुदामा ने जो हिम्मत दिखाई उससे सफलता मिली। अन्य लोगों को उससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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