नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय छठ व्रत शुरू, हर ओर भक्ति का माहौल
लोक आस्था का महापर्व छठ आज से, 36 घंटे तक रहना पड़ता है निर्जला उपवास। आरोग्य प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए है सूर्य षष्ठी का व्रत।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। 'सुन लऽ अरजिया हमार हे छठी मैया... ' आदि पारंपरिक गीतों के बीच लोक आस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान रविवार को नहाय-खाय से शुरू हो गया। बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी पं. विनय पाठक बताते हैं कि सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण व वर्षकृत्यम में भी इस महापर्व की चर्चा है। इसमें व्रती 36 घंटे तक निर्जला रहते हैं। पूरी आस्था व निष्ठा के साथ इस पर्व को मनाया जाता है। नदी व पवित्र जलाशयों के किनारे लाखों की तादाद में व्रती अघ्र्य देते हैं।
प्रकृति के निमित्त है सूर्य को पहला अर्घ्य
पं. बैजू पाठक बताते हैं कि पहला अघ्र्य यानी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्यी प्रकृति के निमित्त है। प्रकृति, षष्ठी माता हैं। परमपिता ब्रह्मा की मानस पुत्री। वे निस्संतान को संतान देती हैं और संतान की रक्षा करती हैं। कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह भगवान सूर्य को प्रात:कालीन अघ्र्य प्रदान किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य को अघ्र्य देने से व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते। सुबह के अर्घ्या में गंगाजल के साथ दूध का भी प्रयोग होता है। सायंकालीन अर्घ्यर गंगा जल से दिया जाता है।
की जाती है छठी मैया की उपासना
आरोग्य, सौभाग्य व संतान की खातिर भगवान भास्कर और ब्रह्मा की मानस पुत्री छठी मइया की आराधना की जाती। व्रती कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन निर्जला व निराहार रहकर छठी मइया की पूजा करते हैं। छठ महापर्व को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। लाखों छठ व्रती मंगलवार की शाम डूबते सूरज को अर्घ्या प्रदान करेंगे।
ग्रह गोचरों का बन रहा शुभ संयोग
चकबासु के राजेश उर्फ मुन्ना शास्त्री बताते हैं कि इस बार छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान में ग्रह-गोचरों का शुभ संयोग बन रहा। रविवार को नहाय-खाय पर सिद्धि योग, मंगलवार 13 नवंबर को सायंकालीन अघ्र्य पर अमृत व सर्वार्थसिद्धि योग और प्रात:कालीन अघ्र्य पर बुधवार की सुबह छत्र योग का संयोग बन रहा।
छठी मइया की कृपा से जी उठा मृत बालक
वर्षकृत्य के एक आख्यान के अनुसार, प्रियव्रत नामक एक राजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। ऋषि कश्यप की सलाह पर उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ किया। जिससे उन्हें संतान की प्राप्ति तो हुई, मगर वह मृत पैदा हुआ। अपने मृत बालक को सीने से लगाए राजा एकटक आसमान की ओर देखते रहे। उनके सीने से मृत बालक को हटाने की हिम्मत किसी को नहीं हो रही थी। इस बीच आसमान से एक दिव्य देवी प्रकट हुईं। वह और कोई नहीं, षष्ठी देवी थीं। दैवी प्रेरणा से राजा ने उनकी स्तुति की। माता के आशीर्वाद से राजा का मृत बालक जीवित हो उठा। इसके बाद राजा की आज्ञा से हर शुक्ल पंचमी को षष्ठी देवी की पूजा होने लगी। कार्तिक व चैत्र मास में भी छठ पूजा होने लगी।