प्रदूषण का बढ़ रहा है खतरा, रोकथाम को सामुदायिक भागीदारी जरूरी
कचरा निस्तारण के कुप्रबंधों के साथ अन्य मानवीय कृत्यों से पर्यावरण हो रहा है प्रदूषित। सरकारी स्तर पर की जा रही कोशिशें नहीं हैं प्रभावी आम लोगों की भागीदारी भी जरूरी।
मोतिहारी, [जेएनएन]। प्रकृति की व्यवस्था में लगातार हो रहे मानवीय हस्तेक्षपों ने पर्यावरण में असंतुलन की स्थिति पैदा कर दी है। इस बात से सभी वाकिफ भी हैं। बावजूद इसके इस समस्या पर कारगर अंकुश नहीं लग पा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दे सेमिनार या डिबेट तक ही सीमित हैं। हालांकि इसका दुश्प्रभाव हर जगह महसूस किया जा रहा है। बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों, कस्बों या गांव तक प्रकृति अपना प्रभाव छोड़ रही है। इतना सब कुछ जानते हुए भी वातावरण में प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में हम अपना योगदान दे रहे हैं। जब इसकी रोकथाम की बात आती है तो इसे सरकारी व्यवस्था के जिम्मे छोड़ हम मुंह मोड़ लेते हैं।
सरकार ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत तो कर दी, लेकिन क्या इस अभियान में हमें अपनी जिम्मेदारियों का एहसास है? ठीक है कि कचरा प्रबंधन सरकारी व्यवस्था का एक हिस्सा है। वे कम या ज्यादा काम कर भी रहे हैं। मगर कचरा प्रबंधन उस समय बेकार हो जाता है जब हमारी लापरवाही व्यवस्था पर हावी हो जाती है। इस पर नियंत्रण के लिए सामूहिक प्रयास की दरकार है।
सार्वजनिक स्थानों पर यह सूचना चस्पा की जाती है कि यत्र-तत्र गंदगी न फैलाएं। मगर उस बात को हम नजरअंदाज कर देते हैं। उसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ता है। आज स्थिति यह है कि जाने अनजाने हम प्रदूषण को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। पढि़ए मोतिहारी से संजय कुमार सिंह एवं संजय परिहार की रपट।
अस्पताल भी नहीं कर रहे मानकों का पालन
प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में अस्पतालों का भी बड़ा योगदान है। वहां उत्सर्जित होने वाले अवशिष्ट पदार्थों के निस्तारण को लेकर सरकारी स्तर पर कुछ मानक भी तय किए गए हैं। उन मानकों के पालन की अनिवार्यता है। आमतौर पर देखा जाता है कि अस्पमाल से निकलने वाले कचरों को खुले में फेंक दिया जाता है। फिर उसका दुश्प्रभाव वातावरण में फैलता रहता है। यह बात एक दिन की नहीं है। इसका क्रम लगातार जारी रहता है। हालांकि सरकारी सख्ती के बाद स्थिति में कुछ सुधार जरूर हुआ है, मगर वह काफी नहीं है।
सरकार ने सभी सरकारी-गैरसरकारी अस्पतालों को प्रदूषण नियंत्रण संबंधी प्रमाण पत्र लेने की अनिवार्यता कर दी है। बावजूद इसके कई निजी अस्पताल उन निर्देशों का पालन नहीं कर पा रहे हैं। इस बात को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे अस्पतालों को चिन्हित कर उन्हें सील तक कर देने का फरमान जारी किया है। मोतिहारी के कई निजी अस्पताल इस फरमान के दायरे में हैं। मगर अब तक कार्रवाइ्र नहीं हो सकी है।
वाहनों की जांच की नहीं है कारगर व्यवस्था
प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में वाहनों की बढ़ रही संख्या भी एक बड़ा कारण है। खासकर पुराने व खटारा वाहन भी सड़कों पर धड़ल्ले से चल रहे हैं। इनके कारण जहां दुर्घटना की आशंका बनी रहती है, वहीं इनके बेहिसाब धुएं वातावरण को जहरीला बना रहे हैं। हालांकि इसकी जांच के लिए सरकारी स्तर पर व्यवस्था की गई है। मगर वह व्यवस्था प्रभावी नहीं है। मोतिहारी जैसे छोटे शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकारी जांच के लिए कारगर व्यवस्था नहीं है। स्वाभाविक है कि ऐसे वाहनों को बेखौफ सड़कों पर चलाया जाता है। इनके अलावा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के हो रहे बड़े स्तर पर जेनरेटर भी प्रदूषण को बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। इनके लिए शायद कोई मानक निर्धारित नहीं है।
'अमृतÓ योजना का भी नहीं दिखा असर
मोतिहारी शहर में महत्वाकांक्षी योजना 'अमृतÓ को धरातल पर उतारने के बाद स्वच्छता की उम्मीद जगी थी। मगर कचरों के ढेर के सामने यह भी बौना साबित हो गई। नियमित उठाव नहीं होने से इसका दुर्गंध राह चलना मुश्किल करता है। इस स्थिति में शहर को 'अमृतÓ बनाना एक चुनौती से कम नहीं है। इसके लिए आम आदमी को भी आगे आना होगा। सिस्टम को भी अपनी व्यवस्था में सुधार लाना होगा। ठोस पहल करनी होगी। नगर परिषद द्वारा लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी स्वच्छता का कोई असर नहीं दिख रहा। शहर में जगह-जगह हरे और ब्लू रंग के कूड़ेदान लगाने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं है। मुख्य सड़क पर कौन कहे गली-मोहल्लों में भी कूड़ों का अंबार लगा है। मुख्य पथ के चौक-चौराहों पर ऐसे कई जगह हैं, जहां कूड़ादान कचरों से भरा पड़ा है। कचरा का उठाव नहीं होने से स्थिति नारकीय बनती जा रही है।
नगर परिषद के संसाधनों के अलावा शहर की सफाई के लिए सिलीगुड़ी के एक निजी कंपनी भी लगी हुई है। जिसे घर-घर जाकर कूड़ा उठाने की जिम्मेवारी दी गई है। बावजूद इसके नप प्रशासन कचरा प्रबंधन में विफल साबित हो रहा है। नगर परिषद कचरे का निष्पादन शहर से बाहर नेशनल हाइवे पर करती है। जिसके कारण वहां आसपास रहने वाले लोग परेशान हैं। पछुआ हवा के कारण कचरे उड़ कर घरों में चले जा रहे हैं।
बताया गया है कि नगर परिषद द्वारा जमला में कचरे के निस्तारण के साथ-साथ उसकी प्रोसेङ्क्षसग कार्य के लिए तीन करोड़ की लागत से प्रोसेङ्क्षसग प्लांट लगाया गया है। लेकिन प्लांट तक वाहन जाने के लिए संपर्क सड़क का आभाव है। जिसके कारण प्लांट का शुभारंभ नहीं हो सका। हालांकि कंपनी द्वारा अपने स्तर से कचरे को प्लांट तक पहुंचा कर फर्निस आयल और कंपोस्ट का निर्माण किया जा रहा है।
शहर में लगाए गए हैं एक हजार कूड़ेदान
चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष समारोह के दौरान नगर परिषद ने आनन-फानन में 80 लाख की लागत से एक हजार डिब्बे (कूड़ादान) शहर के मोहल्लों व गलियों में लगा दिए। लेकिन स्थिति पूर्व की तरह ही बनी है। कूड़ेदानों को व्यवस्थित तरीके से नहीं लगाने के कारण यह इधर-उधर गिरे पड़े हैं। कई तो टूट कर बिखरे पड़े हुए हैं। वहीं, डब्बों का कचरा सड़क पर बिखरने एवं इन पर पशुओं के मंडराने से संकट और बढ़ गया है।
नगर परिषद के सफाई संसाधन
ट्रैक्टर टाली-5, टाटा मैजिक- 38, सुपर सकर डिसिल्टींग मशीन- 1, सकर डिसिल्टींग मशीन का टैंकर- 2, जेसीबी- 2, सेक्सन मशीन- 2, टीपर-2, बॉबकाट- 4, नाली मैंन- 1, लिङ्क्षफ्टग वाहन- 2, ई-रिक्शा, हैंड ट्रॉली- 50, अंबेस्टर- 1, आल्टो- 1, स्कारपियो- 1
नप में सक्रिय सफाई कर्मचारी
- स्थाई महिला सफाई कर्मचारी- 41
- स्थाई पुरुष कर्मचारी- 60
- संविदा पर बहाल सफाई कर्मचारी- 113
सफाई उपकरण व कर्मचारियों पर प्रतिमाह खर्च
- वाहन के ईधन के रुप में खर्च- 03 लाख रुपये
- वाहनों के खराब होने पर खर्च- 10 लाख
- सफाई कर्मचारियों के वेतन मद में- 20 लाख
इस संबंध में मोतिहारी नगर परिषद ईओ विमल कुमार ने बताया कि शहर को स्वच्छ बनाए रखने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। शहरवासियों से भी सहयोग अपेक्षित है। कूड़ा-कचरे आदि को सड़क पर यत्र-तत्र नहीं फेंके। कूड़ा-कचरा को रखने के लिए नप ने निर्धारित जगह पर कूड़ेदान लगा रखा है। नगर परिषद जल्द ही अपने जमीन पर कचरे का निस्तारण करना प्रारंभ करेगी। नप का प्रोसेङ्क्षसग प्लांट तैयार है। संपर्क पथ के लिए टेंडर हुआ है। इसके पूरा होते ही कचरा की डंपिग के साथ उसका प्रोसेङ्क्षसग कार्य भी प्रारंभ हो जाएगा।
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