थारू नहीं लेते दहेज, वर पक्ष लाता रिश्ता, कई पीढिय़ों से चली आ रही परंपरा
सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ पहले से ही सतर्क है थारू समाज। शादी में उपहार स्वरूप रुपये या दो पहिया वाहन देने पर सख्त पाबंदी। बेटी होने पर परिवार के लोग खुशियां मनाते हैं।
पश्चिम चंपारण, [सौरभ कुमार]। सख्त कानून के बाद भी दहेज प्रथा नहीं रुक रही है। दहेज के लिए रिश्ते ठुकरा दिए जातेे। गर्भ में बेटियां मार दी जातीं। इसके विपरीत पश्चिम चंपारण में रहने वाला थारू समाज में दहेज का प्रचलन ही नहीं है। बेटी के विवाह के लिए पिता को वर पक्ष के यहां जाने की जरूरत नहीं। वर पक्ष ही रिश्ता लेकर आता है। यह परंपरा जिले के 214 गांवों में कई पीढिय़ों से चली आ रही। इन गांवों में रहने वाले थारुओं की आबादी दो लाख 57 हजार है।
इनमें से कई पढ़-लिखकर डॉक्टर, इंजीनियर और अधिकारी बन गए। इसके बाद भी दहेज प्रथा इन्हें छू नहीं सकी। बेटी होने पर परिवार के लोग खुशियां मनाते हैं। थारू समाज में नारी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा। बेटियां खेतीबारी में पिता का हाथ बंटाने के साथ पढ़ाई भी करती हैं। थारू समाज की दर्जनों बेटियां बिहार स्वाभिमान बटालियन में नौकरी कर रही।
शादी के लिए कन्या की राय जानी जाती
परंपरा के अनुसार, वर पक्ष कन्या के घर विवाह का प्रस्ताव लेकर जाता है। शादी के लिए कन्या की राय जानी जाती है। यदि वह शादी के लिए सहमत होती तो बात आगे बढ़ती है। लड़की पक्ष इस शादी के लिए कुछ शर्तें भी रखता, जिन्हें वर पक्ष को मानना पड़ता है। महुअवा कटहरवा पंचायत की महिला मुखिया ज्ञानु देवी व देवरिया तरुअनवा पंचायत की मुखिया श्रीमती देवी बताती हैं कि आपसी सहयोग की वजह से दोनों परिवारों के बीच आत्मीयता प्रगाढ़ होती है।
विवाह में बहन-बहनोई की भूमिका महत्वपूर्ण
थारू समाज में शादी संपन्न कराने की जिम्मेदारी लड़के और लड़की के पिता की नहीं, बल्कि गजुआ और गजुआइन यानी बहनोई और बहन की होती है। लड़की-लड़का पसंद आने के बाद दोनों पक्ष एक दूसरे को शगुन के तौर पर एक धोती में एक रुपये का सिक्का गांठ बांधकर देते। शादी के दिन वर पक्ष से दुल्हन के लिए एक सेट कपड़ा भेंट स्वरूप दिया जाता है। शादी के दिन बरात निकलने से पहले वर पक्ष बहन-बहनोई के साथ अपने गांव के ब्रह्मस्थान पर पूजा-अर्चना करता है।
रुपये और वाहन के लेनदेन पर सख्त पाबंदी
थारू समाज में शादी में उपहार स्वरूप रुपये या दो पहिया एवं चार पहिया वाहन देने पर सख्त पाबंदी है। इसे नहीं मानने वालों को सामाजिक बहिष्कार का दंड मिलता है। थारू कल्याण महासंघ के अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद ने कहा कि दहेज, भ्रूण हत्या व बाल विवाह जैसी कुप्रथा के प्रति थारू समाज बेहद संवेदनशील है। महिलाएं पुरुषों की भांति खेतों में काम करती हैं। घर की जिम्मेदारी भी संभालती हैं। फिर उन्हें पुरुषों से अलग कैसे माना जा सकता है। थारू समाज दहेज के लेनदेन का सख्त विरोध करता है। कानून तोडऩे वालों के लिए सामाजिक दंड का प्रावधान है।