Move to Jagran APP

Lockdown effect : आर्थिक संकट से जूझ रहे निजी स्कूल व कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षक

Lockdown effect निजी ट्यूशन पढ़ानेवालों की टूटी कमर। छोटे कोचिंग सेंटरों के शिक्षक भी मुसीबत में। मकान का किराया तक जुटाना हुआ मुश्किल।

By Ajit KumarEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 07:49 PM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 07:49 PM (IST)
Lockdown effect : आर्थिक संकट से जूझ रहे निजी स्कूल व कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षक
Lockdown effect : आर्थिक संकट से जूझ रहे निजी स्कूल व कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षक

समस्तीपुर, जेएनएन। Lockdown effect : कोरोना की वजह से लॉकडाउन की मियाद बढ़ती ही जा रही है। इससे व्यापार जगत के साथ शिक्षा जगत भी संकट के दौर से गुजर रहा है। बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। निजी स्कूलों, बच्चों को ट््यूशन पढ़ाने और कोङ्क्षचग क्लास कराने वाले शिक्षकों का बुरा हाल है। इन शिक्षकों ने कोरोना से बचने के लिए जरूरी शारीरिक दूरी तथा अन्य मानकों का पालन करते हुए ट्यूशन और कोचिंग शुरू करने की अनुमति देने की मांग कर रहे है। कोरोना की वजह से जारी लॉकडाउन का अब चार महीना से अधिक होने को है।

loksabha election banner

ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था एक बड़ा सवाल 

कोरोना की मार व्यापार के साथ शिक्षा जगत भी झेल रहा है। नामी-गिरामी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय प्रबंधन ने ऑनलाइन कक्षा, ऑनलाइन परीक्षा की व्यवस्था कर शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा की ओर मोडऩे की कोशिश की है। लेकिन जिले में ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था किस हद तक कारगर साबित होगा, यह एक बड़ा सवाल है। वहीं सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्र-छात्राओ के लिए ऑनलाइन व्यवस्था कितना सुगम होगा, इस बारे में अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है।

शहर से लेकर गांव तक में है छोटी-बड़ी स्कूलें

शहर में नामी-गिरामी ऊंची-ऊंची इमारतों वाली निजी स्कूल और कॉलेजों के अलावा रोसड़ा, हसनपुर, कल्याणपुर, सरायरंजन व दलङ्क्षसहसराय में भी छोटे-बड़े स्कूल चलाए जा रहे हैं। नर्सरी से कक्षा 5 तक चलने वाले स्कूलों में अच्छी शिक्षा देकर एक बड़ा आदमी बनाने का ख्वाब देखने वाले रिक्शा-वैन चालक, परिचारिका और दिहाड़ी मजदूरों के बच्चे भी पढ़ते हैं। गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले ये लोग बड़ी मुश्किल से स्कूल और ट््यूशन का फीस जुगाड़ कर पाते हैं। वहीं सरकारी नौकरी की तैयारी, मेडिकल और इंजीनियङ्क्षरग में दाखिले के लिए तैयारी कराने वाले नामी-गिरामी कोङ्क्षचग सेंटर से अधिक घरों या किराए के कमरे में छोटे-छोटे कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। सरकारी स्कूल, कॉलेजों से शिक्षा ग्रहण कर गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ युवा शहर में किराए पर कमरा लेकर कोचिंग चलाते हैं। इन कोचिंग सेंटर में सातवीं से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक की तैयारी कराई जाती है।

मकान का किराया जुटाना मुश्किल

इन छोटे-छोटे स्कूलों और कोचिंग सेंटर में पढऩे वाले शिक्षार्थियों और शिक्षकों की आर्थिक स्थिति कमोबेश एक सी होती है। ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाने के लिए मोबाइल, लैपटॉप जैसे कीमती गैजेट की व्यवस्था दोनों के लिए मुश्किल है। स्कूल और कोचिंग सेंटर में बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों में से अधिकांश स्वयं भी शिक्षार्थी भी होते हैं। बच्चों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च उपार्जन करते हैं। लेकिन कोरोना की मार इनके सपनों को अंधेरे की ओर धकेल रहा है। कोरोना की वजह से रिक्शा-वैन चालक और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अभिभावकों के लिए बच्चों का पेट भरना मुश्किल है। स्कूल और ट्यूशन की फीस तो सोच से परे ही है। ट्यूशन फीस नहीं मिलने से ये छोटे-छोटे स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी परिश्रमिक नहीं मिल रहा है। इसके बंद रहने से शिक्षकों की समस्या काफी बढ़ गई। किराए के कमरे में ट्यूशन व कोङ्क्षचग चलाने वालों को दोतरफा नुकसान है। सरकारी शिक्षकों पर तो सरकार मेहरबान है, लेकिन इनकी गुहार कौन सुनेगा।

ऑनलाइन व्यवस्था करना काफी कठिन

गणित शिक्षक प्रशांत कुमार ने बताया की लॉकडाउन की वजह ट्यूशन और छोटे कोचिंग पूरी तरह से बंद हैं। ट्यूशन और घर या किराए पर कोचिंग चलाने वाले शिक्षकों के लिए ऑनलाइन व्यवस्था करना काफी कठिन है। ट्यूशन पढऩे वाले लॉकडाउन के समय का फीस कतई नहीं देंगे। ऐसे में शिक्षकों की समस्या हर दिन के साथ विकराल होती जाएगी। कोरोना से बचने के लिए शारीरिक दूरी, मास्क आदि अन्य मानकों के साथ एक कमरे में कुछ बच्चों को लेकर ट््यूशन व कोङ्क्षचग की अनुमति प्रदान करने के लिए सरकार से मांग की गई है।

किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही

रसायन की शिक्षिका नूतन सिंह ने बताया कम यात्रियों और सुरक्षा मानकों के साथ सरकार बस, ट्रेन और हवाई जहाज चला रही है। उसी तरह एक कमरे में 5 से 10 बच्चों को लेकर ट््यूशन व कोचिंग शुरू किया जा सकता है। राष्ट्रीय आपदा के समय सरकारी दिशा-निर्देश के बिना शुरू करना उचित नहीं है। छोटे-छोटे स्कूलों, ट््यूशन और कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षकों को सरकार और समाज से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है। ऐसे में सरकार को हमारे लिए भी विचार करना चाहिए। श्याम बाबू सिंह ने बताया की स्कूल और कोचिंग में पढ़ाने वाले शिक्षक की आगे की पढ़ाई और घर का खर्च इसी से चलता है। कोङ्क्षचग बंद रहने पर शिक्षार्थी भी फीस नहीं देंगे और उनकी आर्थिक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं होती कि उन पर दबाव दिया जा सके। सरकार को हमारे लिए भी दिशा-निर्देश जारी कर ट््यूशन और कोङ्क्षचग शुरू करने कि अनुमति देनी चाहिए।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.