खतरे में नौनिहाल : शिक्षक लगा रहे गुहार, मगर सरकार नहीं सुन रही पुकार
सरकार लाख गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कहे लेकिन विभाग की लापरवाही से मासूम ब'चों पर मौत का साया हमेशा मंडराता रहता है। इसकी बानगी पश्चिमी चंपारण जिले के गौनाहा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय विशुनपुरवा, दोमाठ में देखी जा सकती है।
मुजफ्फरपुर। सरकार लाख गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात कहे लेकिन विभाग की लापरवाही से मासूम बच्चों पर मौत का साया हमेशा मंडराता रहता है। इसकी बानगी पश्चिमी चंपारण जिले के गौनाहा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय विशुनपुरवा, दोमाठ में देखी जा सकती है। 1985 में निर्मित जर्जर दो कमरे वाले भवन में यह विद्यालय संचालित किया जा रहा है। जर्जर भवन कभी भी गिर सकता है। इससे मासूमों सहित शिक्षक भी जान हथेली पर रखकर अध्ययन अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। इस खतरनाक भवनवाले कमरों की स्थिति को देखकर रूह कांप जाएगी। छत नहीं गिरे उसके लिए प्रधान शिक्षक ने अस्थायी ईंट पिलर लगवाया है। जब-जब अधिकारी निरीक्षण को पहुंचे तो उनका ध्यान शिक्षकों की उपस्थिति, एमडीएम एवं अन्य योजनाओं पर ही केंद्रित रहती है।
सांसत में मासूमों की जान
विद्यालय के प्रभारी शिक्षक गो¨वद प्रसाद बताते है कि कई बार जिला शिक्षा पदाधिकारी के कार्यालय में लिखकर गुहार लगा चुका हूं। बीआरपी के कनीय अभियंता ने सभी विद्यालय के जर्जर हालत के लिए लिखित रूप से विभाग को रिपोर्ट भेज दी है, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई भी पहल नहीं की गई। यहां पढ़ने वाले थारु जनजाति समुदाय के 108 मासूमों की जान सांसत में है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो बेतिया से भी बड़ी घटना किसी दिन घटित हो सकती है। विद्यालय की छत का प्लास्टर उखड़ चुका है। अंदर जंग लगे छड़ साफ दिख रहे हैं। दीवार की बिम फट चुकी है। ऐसे में मासूम बच्चों का भगवान ही सहारा है। फर्श पर बैठकर पढ़ने को विवश छात्र
आदिवासी बहुल इस गांव में 1985 में विद्यालय के लिए दो कमरों को बनाया गया। तब छात्र भी कम थे। लेकिन छात्रों की संख्या बढ़ने के बावजूद कमरों की संख्या नही बढ़ी । शिक्षक व ग्रामीण अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर खासा ¨चतित है। ग्रामीण व मुखिया पति सुनील महतो बताते है कि विद्यालय में 108 बच्चे पढ़ रहे है। शौचालय की भी कमी है। बच्चे फर्श पर बैठकर पढ़ने को मजबूर है। बेंच नही है। बाढ़ के समय तो विद्यालय में बच्चे कीचड़ सनी फर्श पर बैठकर पढ़ने को मजबूर हो जाते हैं। 32 साल बाद भी यह विद्यालय अपने लिए सुरक्षित भवन की आस लगाए हुए हैं।