समाजसेवा के जाग्रत स्वर थे सुरेश अचल, रहे लोहिया के विचार से प्रभावित
जाने-माने कवि और लेखक के साथ राजनीति के थे योद्धा। वे आजीवन लोक जीवन के संघर्ष में ही व्यस्त रहे। अपनी कविताओं का कोई संग्रह अपने जीवनकाल में प्रकाशित नहीं किया।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सुरेश प्रसाद 'अचल' एक जाने-माने कवि व लेखक ही नहीं, समाजसेवा के एक जाग्रत स्वर और राजनीति के मूल्यधर्मी योद्धा भी थे। वे आजीवन लोक जीवन के संघर्ष में ही व्यस्त रहे। इसका एक प्रमाण यह भी है कि 'बिहार डाक' समाचार पत्र के संपादक और मुद्रक होते हुए भी उन्होंने अपनी कविताओं का कोई संग्रह अपने जीवनकाल में प्रकाशित नहीं किया। 'धूप और संस्कृति' उनकी एकमात्र और पहली काव्य-कृति रही, जिसे प्रकाशित करने का श्रेय उनके पुत्र पूर्व उपमेयर विवेक कुमार और समीक्षा प्रकाशन के डॉ.राजीव कुमार को जाता है।
उनके पुत्र श्री कुमार बताते हैं कि साहित्य के साथ-साथ समाजवादी नेताओं का उनके यहां केंद्र रहा। यूं कहें कि उनके पिता सुरेश अचल ने राजनीतिक पाठशाला ही खोल रखी थी। वे पूरी तरह लोहियावादी रहे। कर्पूरी ठाकुर से लेकर जॉर्ज साहब तक का उनके यहां आना लगा रहता था। मुजफ्फरपुर के साथ-साथ सीतामढ़ी उनका मूल रूप से कार्यक्षेत्र रहा। अपने जीवनकाल में इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। नवयुवक समिति के आरंभिक कार्यकलापों में उनकी महत्वपूर्ण भागीदारी रही।
इसके संस्थापक नटवर, मोहन लाल गुप्ता आदि के साथ भी इन्होंने काम किया। समाज के पिछड़ों और छोटी जातियों को गोलबंद करने के लिए इन्होंने अनवरत संघर्ष किया। 1952 से राजनीतिक मंच पर सक्रिय होने के बाद कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। जनता दल के जिलाध्यक्ष भी रहे। आज का कौमुदी महोत्सव उन्हीं की स्मृतियों में समर्पित है। 5 मई 1993 को उनका अवसान हुआ।
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