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चरम पर अव्यवस्था , एक्सपायर होने से दो-तीन महीने पूर्व की दवाओं की होती आपूर्ति Muzaffarpur News

दवाओं की कमी से मरीजों को खरीदनी पड़ती बाजार से दवाएं। तीन चिकित्सकों के कंधे पर 4.15 लाख की आबादी का बोझ। एंटीबायोटिक दवाओं की कमी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 15 Jul 2019 09:18 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jul 2019 09:18 AM (IST)
चरम पर अव्यवस्था , एक्सपायर होने से दो-तीन महीने पूर्व की दवाओं की होती आपूर्ति Muzaffarpur News
चरम पर अव्यवस्था , एक्सपायर होने से दो-तीन महीने पूर्व की दवाओं की होती आपूर्ति Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सरकार के दावों के विपरीत पीएचसी दवाओं की कमी से जूझ रहा है। जो दवा सरकार द्वारा आपूर्ति की जाती है उसके एक्सपायर होने में महज दो-तीन महीने शेष होते हैं। एंटीबायोटिक दवाओं की कमी मरीजों के लिए आर्थिक बोझ से कम नहीं। पीएचसी के दायरे में आने वाले अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र धरफरी, देवरिया, दाउदपुर, सरमस्तपुर, में किसी डॉक्टर के नहीं होने से प्रखंड की 34 पंचायतों की 4.15 लाख की आबादी पीएचसी पर ही निर्भर है। सृजित 10 पदों के खिलाफ मात्र तीन चिकित्सक तैनात हैं। एएनएम के तबादले के कारण पीएचसी में नर्सो की संख्या कम हो चुकी है और 10 पद खाली पड़े हैं। छह ड्रेसर का पद खाली है। एक फार्मासिस्ट अन्य कार्यों में व्यस्त रहते है। एक सफाई कर्मी से पीएचसी की सफाई संभव नहीं।

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प्रतिदिन आते तीन सौ मरीज

पीएचसी में प्रतिदिन तीन सौ मरीजों का इलाज किया जाता है। व्यवस्था में सुधार का आलम है कि अब चिकित्सा पदाधिकारी कॅ. उमेशचंद्र शर्मा, डॉ. ओमप्रकाश, डॉ. मणिशंकर चौधरी आउटडोर में मरीजों का इलाज करते हैं। भीड़ को संभालने के लिए गार्ड के पसीने छूट जाते हैं। इमरजेंसी इलाज कराने वालों में अधिकतर को रेफर करना नियति बन गई है।

लो वोल्टेज से प्रभावित होता इलाज

पीएचसी में जेनरेटर सही तरीके से नहीं चलाने से उपकरण आधारित चिकित्सा बाधित हो जाती है। लो वोल्टेज के कारण मरीजों का पुर्जा तक नहीं कट पाता और मरीज घंटों लाइन में इंतजार करने को विवश रहते हैं। मरीजों को मिलने वाला सरकारी भोजन वर्षो से बंद है। घटिया भोजन देने की शिकायत पर पूर्व बीडीओ रत्नेश कुमार ने भोजन पर रोक लगा दी थी जिससे किचेन शेड में अब भी ताले लटक रहे हैं।

जांच के नाम पर मरीजों का दोहन

पीएचसी में टीवी की जांच होती है। शेष जांच के लिए अस्पताल के इर्द-गिर्द कुकुरमुते की तरह लेबोरेट्री संचालित हो रहे हैं। बड़ी बात तो यह है कि सामान्य मरीजों को भी कुछ चिकित्सक जांच लिख देते हैं जहां गरीब मरीजों का आर्थिक दोहन होता है।

मरीजों को स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं

पीएचसी में मरीजों को स्वच्छ पेयजल मयस्सर नहीं होता। परिसर के एक कोने में कचरों का अंबार लगा है। वहीं, पानी के लिए एक अदद चापाकल है। प्रखंड के सुदूर चक्की सुहागपुर चिन्ताम्नपुर चांदकेवारी की दूरी अस्पताल से 20-35 किमी तक है। काफी उम्मीद से गरीब इलाज कराने यहां आते हैं और घंटों लाइन में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

मरीजों की व्यथा कम नहीं

चांदपुरा गांव के दहाउर राय, मिर्जापुर की बबिता देवी, कल्याणपुर के मनोज सिंह, बंदी गांव के अवध पटेल आदि मरीजों ने बताया कि यहां सभी रोगों की एक दवा दी जाती है। सर्दी-जुकाम से अलग वाले मरीजों को रेफर किया जाता है या निजी क्लीनिक में भेज दिया जाता है। हालत है कि पुर्जा पर ओआरएस लिखा जाता है वो भी बाजार से खरीदने को कहा जाता है।

सुधार की किसी ने नहीं की पहल

पीएचसी में चिकित्सकों की मनमानी हो या किसी तरीके का गोलमाल, आज तक किसी संगठन या सामाजिक स्तर पर सुधार के लिए कोई पहल नहीं की गई। यही वजह है कि आज अस्पताल में कुव्यवस्था का आलम है। सरकार द्वारा लेबोरेट्री खोला गया ताकि आवश्यक जांच हो और मरीजों का आर्थिक दोहन नहीं हो, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं दिखता। फर्जी तरीके से कई लेबोरेट्री चल रहे जहां मरीजों का आर्थिक दोहन होता है। पीएचसी के चिकित्सक निजी क्लीनिक खोल बैठे हैं। चिकित्सा पदाधिकारी उमेशचंद्र शर्मा ने कहा कि सरकारी स्तर पर जो उपलब्ध है उसके मुताबिक मरीजों का उचित इलाज कर दवा दी जाती है। कर्मियों की कमी से संचालन में परेशानी होती है। बावजूद कोशिश रहती है कि मरीजों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो।


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