घरों में गूंजने लगे सामा-चकेवा के गीत, बहनों में दिख रही उमंग
यह उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष से सात दिन बाद शुरू होता है। यह उत्सव भाई- बहन के संबंध को मजबूत करता है।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक लोक पर्व सामा-चकेवा शुरू हो गया है। शाम ढलते ही बहनें अपनी सखी सहेलियों संग टोली में लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकलती हैं। डाला में सामा चकेवा को सजा कर सार्वजनिक स्थान पर बैठ कर गीत गाती हैं। सामा खेलते समय वे गीत गाकर आपस में हंसी - मजाक भी करती हैं। भाभी ननद से और ननद भाभी से लोकगीत की ही भाषा में ही मजाक करती हैं। अंत में चुगला का मुंह जलाया जाता है और सभी युवतियां व महिलाएं पुन: लोकगीत गाती हुई अपने - अपने घर वापस आ जाती हैं। ऐसा आठ दिनों तक चलेगा।
मिथिला की प्रसिद्ध संस्कृति का अंग
पंडित प्रभात मिश्र बताते हैं कि यह सामा-चकेवा का उत्सव मिथिला की प्रसिद्ध संस्कृति और कला का एक अंग है, जो सभी समुदायों के बीच व्याप्त सभी बाधाओं को तोड़ता है। यह उत्सव कार्तिक शुक्ल पक्ष से सात दिन बाद शुरू होता है। आठ दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है और नौवें दिन पूर्णिमा को सभी बहनें अपने भाइयों को धान की नयी फसल का चुरा एवं दही खिला कर सामा-चकेवा की मूर्तियों को तालाबों में विसर्जित कर देती हैं। गांवों में तो इसे जोते हुए खेतों में विसर्जित किया जाता है। यह उत्सव भाई- बहन के संबंध को मजबूत करता है।