कभी हाथियों के वार को भी झेल जाती थीं बेतिया घराने के राज हवेली की दीवारें, आज रख-रखाव के बगैर दरक रहीं
समय के थपेड़े सहते सहते बेतिया राज की हवेली ध्वस्त होने के कगार पर। इसे बचाने के लिए पहल की दरकार है। जिससे राजघराने की गौरवशाली यादों को सहेजा जा सके।
पश्चिम चंपारण, [सौरभ कुमार]। बेतिया राजघराने की गौरवशाली यादें समेटे उस राज की हवेली आखिरी सांसें गिन रही है। खंडहर में तब्दील होती जा रही इस हवेली से इतिहास के अनगिनत उल्लेखनीय पन्ने जुड़े हुए हैं। प्रशासनिक बेरुखी ने इस ऐतिहासिक धरोहर को इतना कमजोर बना दिया कि कभी हाथियों के वार को आसानी से झेल लेने वाली दीवारें अब रखरखाव नहीं होने से दरक रहीं हैं। कभी भी यह हवेली मलबे में तब्दील हो सकती है।
वन संपदा की देखरेख के लिए बनी थी हवेली
जानकारों के मुताबिक 17 वीं शताब्दी में बेतिया के महाराजा दिलीप सिंह ने इस हवेली का निर्माण यहां की वन संपदा की देखरेख के लिए कराया था। महाराज बदलते रहे। लेकिन हवेली रोशन रहीं। जब भी महाराज आखेट के लिए आते, यह हवेली उनकी विश्राम स्थली हुआ करती थी। राज घराने के अंतिम शासक हरेंद्र किशोर की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजी हुकूमत ने बेतिया राज को तत्काल अपने प्रभाव में ले लिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने इस हवेली के आस-पास दो आरा मशीन लगवा कर इसको रेंज आफिस का रूप दे दिया था।
आजादी के बाद प्रखंड कार्यालय बना
देश की आजादी के बाद वर्ष 1955 में बगहा को प्रखंड घोषित किया गया। उस वक्त इसी हवेली में प्रखंड कार्यालय खोला गया। तब इसके निचले भाग में कार्यालय और उपरी भाग में कर्मचारियों का आवास हुआ करता था। यहां 1970-72 तक प्रखंड कार्यालय चलता रहा। वर्तमान हाल यह है कि देखरेख के अभाव में ानसामे, चिरान मशीनें, अस्तबल अब मटियामेट हो चूके हैं। वर्ष 2015 में आए भूकंप के झटकों के बाद तो इसकी दरो-दीवारों ककी चूलें हिल गईं।
मरम्मत के लिए बेतिया राज को आग्रह का निर्णय
निवर्तमान एसडीएम विशाल राज ने बगहा-दो प्रखंड परिसर स्थित ऐतिहासिक हवेली की मरम्मत के लिए बेतिया राज को पत्र लिखकर आग्रह करने का निर्णय लिया था। अब यहां एसडीएम शेखर आनंद की पदस्थापना हुई है, जिनसे इस दिशा में पहल की आस है।