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बिहार के सोमेश्वर दुबे जो कभी खुद थे उपेक्षित, अब लड़ रहे उपेक्षितों की लड़ाई; जानिए

कुष्ठ रोगियों के अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे बिहार के पूर्वी चंपारण निवासी सोमेश्वर दुबे। छुआछूत के खिलाफ 20 वर्षों से चला रहे मुहिम उपेक्षित 45 परिवारों को दिलाई पहचान।

By Murari KumarEdited By: Published: Wed, 12 Aug 2020 10:42 AM (IST)Updated: Wed, 12 Aug 2020 10:42 AM (IST)
बिहार के सोमेश्वर दुबे जो कभी खुद थे उपेक्षित, अब लड़ रहे उपेक्षितों की लड़ाई; जानिए
बिहार के सोमेश्वर दुबे जो कभी खुद थे उपेक्षित, अब लड़ रहे उपेक्षितों की लड़ाई; जानिए

मुजफ्फरपुर [अमरेंद्र तिवारी]। देश की आजादी के बाद भी छुआछूत बड़ी समस्या रही। कुष्ठ रोगी इसके सर्वाधिक शिकार हुए। इलाज की सुविधा के बावजूद लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे। उन्हें गांव से बाहर रहने पर मजबूर करते थे। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में तीन दर्जन से अधिक कुष्ठ पीडि़त उपेक्षा की जिंदगी जी रहे थे। इलाज की सुविधा नहीं मिल रही थी। भीख मांगकर जिंदगी कट रही थी। ऐसे में आगे आए 60 वर्षीय सोमेश्वर दुबे। उन्होंने इसके खिलाफ मुहिम शुरू की। उनकी 20 वर्षों की मेहनत का फल है कि कुष्ठ पीड़ित अब सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं। उनके बच्चे पढ़ रहे हैं।

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   पूर्वी चंपारण के कोटवा निवासी किसान सोमेश्वर 1990 में कुष्ठ पीड़ित होने के बाद लिटिल फ्लावर कुष्ठ अस्पताल, रक्सौल में भर्ती हुए। वहां उनकी मुलाकात मुजफ्फरपुर के मोतीपुर प्रखंड निवासी एक कुष्ठ रोगी से हुई। उनसे पता चला कि मोतीपुर में 40 ऐसे कुष्ठ रोगी हैं, जो उपेक्षा का दंश झेल रहे। भीख मांगकर गुजारा करते हैं। वर्ष 2000 में बीमारी से मुक्त होने के बाद कुष्ठ रोगियों की जिंदगी संवारने के संकल्प के साथ वे यहां पहुंचे। उनके इलाज की व्यवस्था कराई। रहने के लिए गांधी ग्राम कुष्ठ आश्रम की स्थापना की। फिर तो अन्य जगहों से भी कुष्ठ पीड़ित आने लगे। धीरे-धीरे बूढ़ी गंडक के किनारे करीब ढाई एकड़ सरकारी जमीन पर 45 परिवारों की पूरी बस्ती ही बस गई। यहां चापाकल से लेकर सड़क और बिजली तक की व्यवस्था है। आंगनबाड़ी केंद्र है।

बच्चों को स्कूल से जोडऩे के लिए संघर्ष

कुष्ठ रोगियों के बच्चों की पढ़ाई बड़ी चिंता थी। स्कूलों में उनका दाखिला नहीं लिया जा रहा था। फिर क्या था सोमेश्वर ने प्राथमिक शिक्षा के लिए आश्रम में ही एक स्कूल खोल दिया। इसमें वे खुद पढ़ाने लगे। साथ ही सरकारी स्कूलों में दाखिले के लिए संघर्ष जारी रहा। उनके प्रयास से आश्रम के स्कूल में चौथी कक्षा तक की पढ़ाई के बाद पांचवीं में सरकारी स्कूल में नामांकन कराया जाने लगा।

 पीड़ित स्वस्थ होने के साथ भिक्षाटन से मुक्त हों, इसके लिए पशुपालन से लेकर अन्य कार्य शुरू किया। भिक्षाटन से मुक्ति के लिए 2009 में सम उत्थान नामक संस्था बनाई। राज्य स्तरीय मुहिम का असर यह हुआ कि इन्हें बिहार शताब्दी कुष्ठ कल्याण योजना का लाभ मिलने लगा। परवरिश योजना के तहत कुष्ठ रोगियों के बच्चों को 1500 रुपये मासिक प्रोत्साहन राशि मिलने लगी।

साकार हो रहा गांधीजी का सपना

बीमारी से ठीक होने के बाद बस्ती में ही पशुपालन कर रहे सुखल पासवान व विनोद राय कहते हैं कि तिरस्कार की जिंदगी से मुक्ति मिली है। किराने की दुकान चला रहे जोगी ठाकुर कहते हैं कि गांधी ग्राम में गांधीजी का सपना साकार हो रहा है। सोमेश्वर कहते हैं कि सामाजिक परिवर्तन आया है। लोग मदद के लिए आगे आते हैं। पहले की तरह तिरस्कार की भावना नहीं है।  

इस बारे में मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. एसपी सिंह ने कहा कि गांधी ग्राम कुष्ठ आश्रम में समय-समय पर शिविर लगाकर स्वास्थ्य जांच की जाती है। जरूरतमंद को दिव्यांगता प्रमाणपत्र व योजनाओं का लाभ दिया जाता है।


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