ये हैं आधुनिक 'सैंटा क्लॉज', रेलवे की नौकरी छोड़ संवार रहे गरीब व अनाथ बच्चों का जीवन
शत्रुघ्न झा कहते हैं वे अपना जीवन गरीब और अनाथ बच्चों को समर्पित कर चुके हैं। किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर उन्हें अपार खुशी मिलती है।
पश्चिमी चंपारण [राहुल वर्मा]। साधारण कद काठी और माथे पर सफेद साफा। कंधे पर झोला और झोले में बच्चों के लिए टाफियां। नाम है शत्रुघ्न झा। इन्हें देखकर बच्चों के चेहरे खिल उठते हैं। नौनिहालों को देख इनके कदम रुक जाते, टॉफियां देते फिर आगे बढ़ते हैं। ये अनाथ व गरीब बच्चों के लिए 'सैंटा क्लॉज' से कम नहीं हैं।
रेलवे की नौकरी छोड़ ये उस अभियान में लग गए, जहां जाने से और कार्य करने से लोग हिचकते हैं। हडबोड़ा नदी के तट पर बने कुष्ठ आश्रम में आज सैकड़ों बच्चे इस शख्स की बदौलत अपनी अंगुलियों से चरखा पर सूत काट रहे हैं। इन बच्चों को आश्रम में प्यार मिलता है, समर्पण की छांव मिलती है और इसी के साथ मिलती है वो
मुस्कराहट जो कभी सैंटा क्लॉज बच्चों को देते थे।
हमारे लिए सैंटा से कम नहीं भाई जी
आश्रम में पढऩे वाले बच्चे शत्रुघ्न झा को भाई जी कहते हैं। वे अपनी समस्याएं सुनाते हैं और शत्रुघ्न उसे पूरा करते हैं। मुकेश मांझी, विजय मांझी, राकेश मांझी, सीता कुमारी, सीमा कुमारी, शांति कुमारी, खुशबू कुमारी, अवधेश कुमार, बीरबल कुमार आदि सैकड़ों बच्चे यह कहने से गुरेज नहीं करते कि उनके लिए सबकुछ भाई जी ही हैं।
ये जीवन बच्चों और गरीबों को समर्पित
विश्व मानव सेवाश्रम के संस्थापक शत्रुघ्न झा कहते हैं वे अपना जीवन गरीब और अनाथ बच्चों को समर्पित कर चुके हैं। किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर उन्हें अपार खुशी मिलती है।