15 वर्षों में भी नही छंटा जल विद्युत परियोजना पर छाया ग्रहण
मुजफ्फरपुर। बगहा, वर्ष 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बगहा में तीन जल विद्युत परियोजनाओ
मुजफ्फरपुर। बगहा, वर्ष 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने बगहा में तीन जल विद्युत परियोजनाओं का शिलान्यास किया था। बगहा प्रखंड के धोबहां, कटैया और बरवल में बिजली उत्पादन केंद्र स्थापित किए जाना था। समय परवाज भरता रहा। जमीन अधिगृहित हुई। काम भी शुरू हुआ। इस बीच अचानक काम पर ब्रेक लग गया और अभियंता वापस लौट गए। दुर्भाग्य की बात यह है कि इनमें एक भी परियोजना पूरी नहीं हो सकी। परियोजना पर लगा ग्रहण 15 वर्ष बाद भी नही छंट पाया और खेती योग्य कई एकड़ जमीन बर्बाद हो गई। यदि इन परियोजनाओं का निर्माण पूरा हो जाता तो फिर शायद बिजली उत्पादन के मामले में बगहा पुलिस जिला आत्मनिर्भर हो गया होता। करोड़ों रुपये खर्च किए गए । उस वक्त गांव को रोशन करने के उद्देश्य से वाल्मीकिनगर में पानी से बिजली बनाने की योजना के तहत तीन पनबिजली घर निर्माण की आधारशिला रखी गयी। उसके लिए चयनित स्थलों पर भूमि अधिग्रहण कर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया। लेकिन कार्य प्रारंभ के कुछ ही दिनों के बाद इस अति महत्वाकांक्षी योजना को ग्रहण लग गया तथा निर्माण कार्य ठप हो गया। राशि के अभाव के कारण इस परियोजना को बंद कर दिया गया। तत्कालीन प्रबंध निदेशक एलपी सिन्हा सेवा निवृत होने बाद किसी प्रबंध निदेशक की पदस्थापना नही की गई। सरकार के उर्जा सचिव के जिम्मे जल विद्युत परियोजना का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। स्थाई तौर पर अभियंता नहीं
जल विद्युत परियोजना वैसे तो पूरे बिहार में है । लेकिन इस परियोजना के लिए एक अदद ऐसा इंजीनियर नही मिला जिसको बीएचपीसी का अपना कहा जाए। हमेशा ही यहां किसी विभाग से लेकर ही अभियंताओं की नियुक्ति हुई है। कोई ¨सचाई विभाग तो कुछ बिजली बोर्ड से लेकर यहां अभियंताओं को रखा जाता रहा है । उनका मियाद पूरा होने पर उन्हे पुन: संबंधित विभाग में वापस भी भेजा जाता रहा है। सिविल के इंजीनियर ज्यादातर जल संसाधन या ¨सचाई विभाग के होते हैं और इलेक्ट्रिकल या मेकेनिकल को बिजली विभाग से लिया जाता रहा है।
कोतराहा परियोजना का बुरा हाल वैसे पूर्व से वाल्मीकिनगर के कोतराहा व छवघरिया के समीप दो जल विद्युत परियोजना संचालित है। निर्माण के साथ ही छवघरिया जल विद्युत परियोजना ने काम करना बंद कर दिया। इसके संचालन की जवाबदेही बीएचपीसी को दिया गया था और बीएचपीसी के पदाधिकारी अपनी कर्तव्यनिष्ठा का अनुपालन करते हुए पटना की एक निजी एजेंसी के हाथों इसका संचालन सौंप दिए। वही से इसके बुरे दिन की शुरुआत हो गई। पूर्णत: जापानी तकनीकि पर आधारित मशीन का रखरखाव अप्रशिक्षित लोगों के हाथों में सौंप इसका संचालन होने लगा था। समयानुसार रखरखाव नही होने का नतीजा हुआ कि मशीन खराब होने लगा और खर्च निरंतर बढ़ने लगा।
पानी की कमी से उत्पादन बंद
कोतराहा जल विद्युत परियोजना की हालत भी यह है कि नहर पानी रहने पर बिजली का उत्पादन होता है। नहर में पानी बंद तो उत्पादन पूर्णरूपेण नहर पर आधारित है ।अगर नहर बंद हो जाए तो परियोजना भी बंद हो जाता है । ऐसी स्थिति में विभाग द्वारा स्केप चैनल के निर्माण पर आवश्यकता जताई गई है। जिस पर कुछ हद तक काम भी हुआ। भूमि अधिग्रहण भी किया गया ।लेकिन विभागीय शिथिलता का परिणाम है कि यह परियोजना नहर के परिचालन पर ही आधारित हो कर रह गया है।
वाल्मीकिनगर विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि जल विद्युत परियोजना के विकास के लिए सरकार स्तर पर बात की गई है। शीघ्र ही इस परियोजना के सु²ढ़ीकरण का काम किया जाएगा। पानी की समस्या को लेकर भी विभाग के अधिकारियों से बात की गई है।