यहां झोपड़ी में चल रहा है स्कूल
मुजफ्फरपुर। सरकार प्राथमिक शिक्षा को सुधारने की चाहे जितनी कवायद कर ले मगर सरकारी उदासीनता, विभागीय
मुजफ्फरपुर। सरकार प्राथमिक शिक्षा को सुधारने की चाहे जितनी कवायद कर ले मगर सरकारी उदासीनता, विभागीय लापरवाही और संसाधनों की भारी कमी के कारण मधुबनी जिले के अंधराठाढ़ी प्रखंड में शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह बदहाल हो चुकी है। संसाधन का अभाव और विषयवार शिक्षकों की भारी कमी प्राथमिक शिक्षा के स्तर को चौपट कर रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की धरातलीय पड़ताल के सिलसिले में द्रैनिक जागरण ने राजकीय प्राथमिक विद्यालय बटौआ का दौरा किया।
बटौआ प्राथमिक विद्यालय का हाल देखकर हम भौचक रह गए। वहां स्कूल के नाम पर सिर्फ एक टूटा फूटा क्षतिग्रस्त कमरा है। जो बुरी तरह खराब हो चुका है। जगह जगह छत टूटकर गिरता रहता है। स्कूल का बरामदा भी पूरी तरह टूट फुट चुका है। उसी एक कमरे में आफिस, रसोई घर और पहली से पांचवी तक के बच्चों को पढ़ाया भी जाता है। हालांकि दर के मारे अंदर कोई देर तक बैठना नहीं चाहता है। स्कूल में ना शौचालय है ना चापाकल है और न ही स्कूल का कोई कैंपस है। हालात ये है कि पानी के लिए और एमडीएम बनाने के लिए भी पड़ोस से पानी लाना पड़ता है।
स्कूल में सात शिक्षक कार्यरत हैं। जिसमे तीन महिला शिक्षिका हैं। राजकुमार चौधरी प्रधानाध्यापक के प्रभार में हैं। श्री चौधरी के अनुसार विद्यालय में नामांकित छात्र छात्राओं की संख्या 240 है। बुधवार को इनमें से 209 बच्चे उपस्थित बताए गए।
1984 में स्थापित इस स्कूल को आज तक जमीन हासिल नहीं हो सकी है। बगल में करीब 22 कट्ठा सरकारी भूमि है। जिसमें स्कूल का नया भवन बनाने की योजना प्रस्तावित है। मगर वो पूरी जमीन अतिक्रमित है। बार बार लिखने और प्रशासन के प्रयास के बाद भी जमीन को खाली नहीं कराया जा सका है जिससे कि स्कूल को शिफ्ट किया जा सके।
हम करीब 10 बजे के आस पास विद्यालय पहुंचे। एचएम को अपना परिचय देकर उनसे जानकारी लेना शुरू किया। स्कूल में एक भी छात्र उपस्थित नहीं थे। सभी शिक्षक बाहर ही बैठे थे। प्रधानाध्यापक ने बताया कि एमडीएम कर के बच्चों को छुट्टी दे दी गई। इतनी भीषण गर्मी में बच्चो को कहां बिठाते। कमरे में डर के मारे कोई शिक्षक या छात्र बैठते नहीं। इतनी धूप में बच्चों को बाहर भी नहीं बिठा सकते। पीछे गाय और बकरियां बंधी थी तो आगे एक दुकान था। कोने में ढेर सारा कचरा भी जमा था। स्कूल के सामने एक झोपड़ी थी। पता चला कि इसी झोपड़ी में एमडीएम बनता है। बैठने की जगह नहीं होने के कारण बच्चे स्कूल में नहीं टिकते हैं। खासकर वर्षा के दिनों में पूरा स्कूल घुटनों भर पानी मे डूब जाता है।