सत्तू संक्रांति कल, इस अवसर पर सत्तू खाने और दान करने की विशेष परंपरा, जानें इसका महत्व
सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ खत्म होगा खरमास शुरू होंगे शुभ कार्य। 14 मार्च को सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के साथ लग गया था खरमास।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सूर्य के सोमवार, 13 अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करते ही रुके हुए सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे। इसके साथ ही सूर्यदेव का राशियों में गोचर का एक चक्र भी पूरा हो जाएगा। जानकारों के मुताबिक, करीब तीस दिनों के अंतराल पर सूर्यदेव एक-एक करके सभी बारह राशियों में गोचर करते हैं।
ये चक्र मेष राशि से शुरू होकर मीन राशि तक चलता है और फिर मेष राशि से दुबारा शुरू हो जाता है। इसलिए सोमवार से सूर्य का राशि चक्र फिर से शुरू हो जाएगा। साथ ही सूर्यदेव के मेष राशि में प्रवेश करने से मीन खरमास भी खत्म हो जाएगा और बीते एक महीने से जो शादी-विवाह आदि मांगलिक कार्य बंद थे, वे भी फिर से शुरू हो जाएंगे। हालांकि लॉक डाउन होने के कारण लोगों को अभी निराशा होगी।
मालूम हो कि 14 मार्च को सूर्यदेव के मीन राशि में प्रवेश करते ही खरमास लग गया था। रामदयालु स्थित मां मनोकामना देवी मंदिर के पुजारी पं.रमेश मिश्र और हरिसभा चौक स्थित राधाकृष्ण मंदिर के पुजारी पं.रवि झा बताते हैं कि सूर्यदेव का मेष राशि में प्रवेश करना मेष संक्रांति कहलाता है। इसे सत्तू संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चना या जौ से बने सत्तू को खाने व दान करने की परंपरा है। साथ ही जल और कुंभ, यानी मिट्टी के घड़े के दान का भी महत्व बताया गया है। स्नान, तिलों द्वारा पितरों का तर्पण तथा मधुसूदन भगवान के पूजन का विशेष महत्व है।