समस्तीपुर: खेतों में बनाएं रखें नमी, निरंतर निगरानी व दवा का प्रयोग जरूरी, जानें विशेषज्ञ का सुझाव
बदलते मौसम में आलू फसल पर झुलसा रोग लग सकता है। जबकि गेहूं की फसल अच्छी होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मौसम में किसी भी फसलों में नमी बनाए रखने पर बीमारी लगने की कम संभावना रहती है।
समस्तीपुर, जासं। मौसम में आए बदलाव से कई फसलों को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे फसलों की निरंतर निगरानी की जरूरत है। डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक, अनुसंधान एवं पौधा विभाग डा. एसके सिंह का बताना है कि इस मौसम से पपीते एवं केले को नुकसान होगा। लेकिन जब तापमान में वृद्धि होगी तो यह फसल भी सामान्य हो जाएगा। इस मौसम में आलू फसल पर पिछेत झुलसा रोग का आक्रमण हो सकता है तो गेहूं की फसल अच्छी होगी। वैज्ञानिकों का बताना है कि ऐसे मौसम में किसी भी फसलों में नमी बनाए रखने पर बीमारी लगने की कम संभावना रहती है। इसलिए किसान अपने खेतों में नमी बनाए रखें।
ऐसे दूर करें फसलों की परेशानी
- वर्तमान मौसम आलू की फसल में पिछेती झुलसा रोग के फैलाव के लिए अनुकूल है। इस रोग में फसलों की पत्तियों के किनारे से झुलसना प्रारंभ होती है। इसके कारण पौधा झुलस जाता है। इसके बचाव के लिए 2 से 2.5 ग्राम इण्डोफिल एम 45 फफूंदी नाशक दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। इस छिड़काव के 8-10 दिनों बाद पुन: दवा का 1.5 से 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। कटवर्म या कजरा पिल्लू कीट का प्रकोप फसल में दिखनें पर बचाव के लिए क्लाेरपायरी फांस 20 ईसी दवा का 2.5 से 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव मौसम साफ रहने पर ही करें।
- पिछात बोयी गई गेहूं की फसल में खर-पतवार नियंत्रण के कार्य को प्राथमिकता दें। फसल में जिंक की कमी के लक्षण (गेहूं के पौधों का रंग हल्का पीला हो जाना) दिखाई दे रहें हो तो 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 1.25 किलोग्राम बुझा हुआ चुना एवं 12.5 किलोग्राम यूरिया को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव मौसम साफ रहने पर करें।
- मटर में फली छेदक कीट की निगरानी करें। यह कीट फलियों में जालीनुमा आवरण बनाकर उसके नीचे फलियों में प्रवेश कर अन्दर ही अंदर मटर के दानों को खाती रहती है। एक पिल्लू एक से अधिक फलियों को नष्ट करता है। 15-20 टी आकार का पंछी बैठका (वर्ड पर्चर) प्रति हेक्टेयर लगाने से इससे मुक्ति मिलती है।
अधिक नुकसान होने पर क्वीनालफास 25 ईसी या नोवाल्युराॅन 10 ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
- अरहर की फसल में फल मक्खी कीट की निगरानी करें। यह कीट जिस स्थान पर खातें है, वहां कवक एवं जीवाणु उत्पन होते हैं। फलस्वरूप ऐसे दाने खाने योग्य नही रह जाते हैं और उपज में काफी कमी आती है। इस कीट से बचाव के लिए करताप हाईड्रोक्लाेराइड दवा 1.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें।
- टमाटर, मटर एवं मक्का की फसल मेंं आवश्यकतानुसार सिंचाई मौसम साफ रहने पर करें।
- सरसों की फसल में लाही कीट की नियमित रूप से निगरानी करें। यह सुक्ष्म आकार का कीट पौधों के सभी मुलायम भागों-तने व फलियों का रस चुसते हैं। ये कीट मधु-स्त्राव निकालते हैं, जिससे पौधे पर फंगस का आक्रमण हो जाता है। तथा जगह-जगह काले धब्बे दिखाई देते हैं। ग्रसित पौधों में शाखाएं कम लगती है। पौधे की वृद्धि रूक जाती है। पौधे पीले पड़कर सूखने लगते हैं। इस कीट से बचाव के लिए डाईमेथोएट 30 ईसी दवा का 1.0 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव मौसम साफ रहने पर
करें।
-मिर्च की फसल में थ्रिप्स कीट की निगरानी करे। यह कीट मिर्च में बांझी/ विषाणु रोग फैलाता है। इससे बचाव के लिए इमिडक्लोप्रीड 17.8 ईसी का 1 मिली या डायमेथोएट 30 ईसी का प्रयोग करें।