शोध पर शोध, बीमारी रह गई 'अज्ञात'
बच्चों के लिए जानलेवा एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम पर लगातार कई शोध हुए।
मुजफ्फरपुर। बच्चों के लिए जानलेवा एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम पर लगातार कई शोध हुए। कई रिसर्च के बाद रिपोर्ट बनी, पर अंतत: यह बीमारी अपने लक्षणों की वजह से 'अज्ञात' की श्रेणी में ही रह गई। कई बच्चों की मेडिकल रिपोर्ट में बीमारी का स्पष्ट नाम नहीं आ सका, बस लक्षण ही आधार बना रहा। पिछले आठ साल में इससे 1131 बच्चे बीमार हुए, जिनमें 344 की मौत भी हो गई। लेकिन, इन मामलों में असल बीमारी सामने नहीं आ सकी।
'अज्ञात मौत' की दर को कम करने के लिए विभाग ने नई रणनीति बनाई है। आशा, एएनएम व ग्रामीण ट्रेंड चिकित्सकों को भी जागरूक व प्रशिक्षित करने पर सहमति बनी है। शीघ्र ही पीएचसी तक तय मानक के मुताबिक दवा व उपकरण भी उपलब्ध करा दिए जाएंगे। जिला मलेरिया पदाधिकारी सतीश कुमार ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के साथ इस बार पहली बार यूनिसेफ की टीम भी बीमारी के बचाव में सहयोग कर रही है।
बीमारी का आगाज तापमान बढ़ने के साथ शुरू होता है। बरसात होने के साथ ही इस पर विराम लग जाता है। इसके वायरस गर्मी में अनुकूल स्थिति पाकर तेजी से फैलते हैं।
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वायरस जांच की स्थिति
-बीमार बच्चों के खून, पेशाब, रीढ़ के पानी का किया गया नमूना संग्रह।
-आरएमआरआइ पटना, पुणे, सीडीसी दिल्ली व अटलांटा की टीम ने किया नमूने का संग्रह, हुई जांच।
-अटलांटा, पटना व पुणे की जांच रिपोर्ट में बीमारी का कारण वायरस नहीं मिला।
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अमेरिकी टीम ने किया शोध
सीडीसी अमेरिका की टीम के प्रमुख सदस्य डॉ. जेम्स के मुताबिक, गर्मी की दस्तक के साथ टीम ने यहां आकर कैंप किया। पीड़ित बच्चों के खून का नमूना संग्रह किया। जेई, नीपा, इंटेरो वायरस, चांदीपुरा व वेस्टनील वायरस पर शोध हुआ, लेकिन वायरस नहीं मिला।
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बीमारी की यह रही रफ्तार
-नेपाल की तराई में आनेवाले उत्तर बिहार के जिलों में आठ साल से कहर।
-मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी व वैशाली में बीमारी का रहा प्रभाव।
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बीमारी की रोकथाम का प्लान
बीमारी की रोकथाम के लिए संयुक्त अभियान चलेगा। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने विभिन्न विभागों से समन्वय बनाए हैं। पशुपालन विभाग, मत्स्य पालन, आइसीडीएस, पीएचईडी, जिला पंचायतीराज, जिला शिक्षा विभाग, महिला समाख्या समिति, आपूर्ति विभाग, सूचना व जनसंपर्क विभाग, मलेरिया विभाग की संयुक्त टीम बनी है। ये टीमें अपने-अपने स्तर से जागरूकता अभियान चलाएंगी और आगे शोध में सहयोग करेंगी।
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किस साल कितने मरीज
साल-मरीज-मौत
2010-59-24
2011-121-45
2012--336-120
2013-124-39
2014--342-86
2015--75-11
2016--30-04
2017--09-04
2018- 35-11
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बयान
बीमारी का कारण अबतक के शोध में पता नहीं चल पाया है। इस बार लक्षण देखकर इलाज होगा। पांच चिकित्सक को मास्टर ट्रेनर बनाया गया है। सभी अस्पतालों में जांच, दवा व इलाज की व्यवस्था है।
डॉ. ललिता सिंह
सिविल सर्जन