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संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहे पंजी अभिलेख

पंजी प्रथा या इसका अभिलेख चौदहवीं शताब्दी के तीसरे दशक से मौजूद है। लगभग सात सौ वर्ष से मैथिल ब्राह्मण व कायस्थ इसी पंजी के आधार पर वैवाहिक संबंध निर्धारण कार्य करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Jul 2018 09:44 AM (IST)Updated: Tue, 03 Jul 2018 09:44 AM (IST)
संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहे पंजी अभिलेख
संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहे पंजी अभिलेख

मुजफ्फरपुर। पंजी प्रथा या इसका अभिलेख चौदहवीं शताब्दी के तीसरे दशक से मौजूद है। लगभग सात सौ वर्ष से मैथिल ब्राह्मण व कायस्थ इसी पंजी के आधार पर वैवाहिक संबंध निर्धारण कार्य करते हैं। एक तरह से यह शादी का निबंधन है। यह पूर्णतया वैज्ञानिक कसौटी पर कसा हुआ है। परंतु कालांतर में इसके प्रति उपेक्षा का भाव आने से आज पंजी अभिलेख नष्ट होने के कगार पर हैं। इसे बचाने एवं संरक्षित करने का प्रयास नहीं रहने से पंजीकारों की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है।

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प्राचीन अभिलेख रखरखाव के अभाव में अधिकांश तो नष्ट हो गए जो कुछ भी बचा है वह भी नष्ट हो जाने की स्थिति में आ गया है। स्थित तो यहां तक आ गई है कि पंजीकारों की संख्या जो पहले सौ के आसपास थी अब गिनी-चुनी गई है। पंजी से पूर्व स्मरण के आधार पर अधिकार निर्णय 14वीं सदी के दूसरे दशक तक पंजी प्रथा का वर्तमान पंजी प्रथा का प्रचलन नहीं हुआ था।लोग छिटपुट रूप से वंश परिचय रखते थे। जिसके आधार पर वैवाहिक अधिकार का निर्णय स्मरण के आधार पर बनाए गए पूर्वजों के नाम गोत्र के आधार पर होता था। राज हरि¨सह देव के समय पंजी प्रबंध बना और पंजीकार वंश परिचय का नियमानुसार अभिलेख रखने लगे। उन्हें सौराठ सभा सहित पूर्णिया, मंगरौनी, भराम, भगवतीपुर, जरैल,कछुआ चकौती, कोइलख सहित अन्य स्थानों पर राजाश्रय मिला। कालांतर में सौराठ इसका प्रमुख केंद्र रह गया जो अद्यपर्यंत विद्यमान है।

धौत परीक्षा उत्तीर्ण करना था जरूरी पंजीकार विश्वमोहन चंद्र मिश्र ने कहा कि पंजी प्रथा प्रारंभ होने से पहले संकलन के बाद महाराज दरभंगा के राजाश्रय में इसकी दस वर्ष की पढ़ाई का कोर्स था। पढ़ाई के बाद धौत परीक्षा ली जाती थी। जिसमें सफल होने वाले को पंजीकार का दर्जा दिया जाता है। जिस कारण यह विधा दारभंगा राजत्वकाल तक जीवित रहा। बाद में इसके शिक्षण की व्यवस्था समाप्त हो गई। जिस कारण जो वंशानुगत आधार पर इस पेशा को लोगों ने अपना लिया। जो वर्तमान में निष्प्राण सा हो गया है। श्री मिश्र ने कहा कि हमने भी वंशानुगत इसे धारण किया।हमारे पास चार सौ वर्ष पुराना अभिलेख है। जिसे बचाकर रखना मुश्किल हो रहा है। पंजी का कंप्यूटीकरण जरूरी सौराठ विकास समिति के अध्यक्ष सतीश चंद्र मिश्र ने कहा कि समय आ गया है कि पंजी अभिलेख का कंप्यूटराईजेशन हो। इससे प्राचीन अभिलेख संरक्षित हो जाएंगे। हां इसका अधिकार पंजीकारों के पास ही रहे। ताकि सही तरीके से इसमें आने वाले पीढ़ी के सदस्यों को जोड़ा जा सके। कहा कि इसके लिए समिति के सदस्य विचार कर रहे हैं। सौराठ सभा गाछी में एक पंजी भवन मौजूद है। जिसमें कंप्यूटर सहित अन्य संसाधन के उपलब्ध कराने की जरूरत है। जिसके लिए प्रयास चल रहा है।


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